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भक्तिभाव के साथ फिर से शुरू हुई कांवड़ यात्रा

सावन मास में शिव आराधना भक्तिभाव और पूरे समर्पण के साथ की जाती है। सावन शिव का प्रिय मास है इसलिए इस मास मे की गई शिव आराधना से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। शिव साधना का एक सर्वप्रिय और शिव को समर्पित उपक्रम है कांवड़ायात्रा। कांवड़यात्रा में पवित्र तीर्थ, नदी, सरोवर से जल भरकर लंबी यात्रा करने के बाद शिव मंदिरों में शिवलिंग पर जल समर्पित किया जाता है।

शिव को समर्पित होता है कांवड़ का जल

सावन मास की शुरूआत के साथ ही कांवड़यात्रा शुरू हो जाती है। कांवड़िए जल भरकर शिव को समर्पित करन् के लिए निकल पड़ते हैं हालांकि कांवड़ यात्रा लंबी होती है और पैदल की जाती है इसलिए इस यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले शुभ मुहूर्त का खास ख्याल रखा जाता है। इस बार सावन मास के पहले दिन शुरू की गई कांवड़यात्रा पर कुछ दिनों के लिए विराम सा लग गया, क्योंकि 19 जुलाई शुक्रवार को दोपहर करीब 3 बजे से पंचक शुरू हो गया था। चूंकी पंचक में लकड़ी खरीदने की निषेध रहता है और कांवड़ लकड़ी की होती है इसलिए इस दौरान कावड़यात्रा शुरू करने वाले कांड़ियों ने कांवड़यात्रा को कुछ दिनों के लिए टाल दिया।

‘चोर पंचक’ ने रोकी थी कांवड़ यात्रा

19 जुलाई से शुरू हुए पंचक को चोर पंचक कहा गया। सनातन संस्कृति के अनुसार पंचक को अवधि को शुभ नहीं माना जाता है। पंचक के अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं। चोर पंचक की समाप्ति 24 जुलाई बुधवार को 3 बजकर 45 मिनट पर हो गई है, इसलिए अब कांवड़यात्रा फिर से भक्तिभाव, श्रद्धा और जोशो-खरोश के साथ निकलने लगी है।

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