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शहीद किसी जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र का नहीं होता : इंद्रेश कुमार

लखनऊ। शहीद जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र का नहीं होता है। उसकी कोई सीमा नहीं होती है और उसे किसी परिधि में बांधा नहीं जा सकता है। आज़ादी के आंदोलन में गाय और सुअर की चर्बी लगी कारतूस का भारतीय सेना ने बहिष्कार किया। ब्रिटानिया हुकूमत के ख़िलाफ़ भारतीय सैनिक लड़े जबकि उनके पास कोई अत्याधुनिक हथियार भी नहीं थे। अंग्रेज आधी दुनिया पर राज करते थे, उनसे मुकाबला हमारे पूर्वजों ने किया। आप सोच सकते हैं कि पूर्वजों में किस तरह का राष्ट्रप्रेम था। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय अधिकारी इंद्रेश कुमार ने कहीं। वह महापुरुष स्मृति समिति की ओर से परमवीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल आर्देशीर बुर्जोर्जी तारापोर के 96वें जन्मोत्सव पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि आज देश में हमारे अरमानों की लिंचिंग हो रही है। हमारे अरमानों का अपमान रोजाना हो रहा है। हमने आज़ादी की कीमत नहीं चुकाई सिर्फ उसे एंज्वॉय कर रहे हैं। जो लोग देश के टुकड़े होंगे ऐसे नारे लगा रहे हैं वह कौन हैं। जम्मू-कश्मीर के विशेष प्रावधान को लेकर डॉ. भीमराव आंबेडकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने पुरजोर विरोध किया था। यह स्पेशल स्टेटस भारत की एकता और अखंडता को तोड़ने का काम करेगा। नेहरू की जिद के आगे उस समय के पांच मुस्लिम सांसदों ने इस्तीफा दे दिया था। यह सभी सांसद कांग्रेस के थे। उन्होंने यह कहा था कि हो सकता है एक दिन देश की सरकार को सद्बुद्धि आए और 370 अनुच्छेद को खत्म किया जाए। आज जम्मू-कश्मीर को इस अपमान से मुक्ति मिल चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को पूर्णरूप से आजादी दिलाने का काम किया है।

इंद्रेश कुमार ने कहा कि माइनस 40 डिग्री में खड़ा जवान अगर यह सोच ले कि मेरा भी परिवार है तो कैसे देश सुरक्षित रहेगा। ब्रिटिश पीरियड में हमारे यहां लाखों लोगों की मौत हुई। सरकार ने उन्हें बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। बलिदान एक भावना है। मातृभूमि की खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती है। जिन्होंने इस भावना को जाना वह बलिदान के रास्ते पर गए। जिन्होंने नहीं समझा उन्होंने समझौते कर लिए। हम अगर यह तय कर लें कि सोशल मीडिया के जरिये लोगों को जाग्रत करेंगे। आज सकारात्मक ऊर्जा वालों को टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके लोगों को जाग्रत करने का मिशन हाथ में लेना चाहिए। भारत में जीवन मूल्यों के जन-जागरण का भी इतिहास लिखा जाएगा। इस आयोजन को देश के नव जागरण को मुहिम बना दीजिए। तीन तलाक के ख़त्म होने से आठ लाख चालीस हजार औरतों को जिल्लत की जिंदगी से मुक्ति मिली। इतने ही पुरुषों को महिलाओं पर अत्याचार करने से मुक्ति मिली। अनुच्छेद 370 और धारा 35ए से होने वाला एक भी फ़ायदा का कोई तर्क और तथ्य निकलकर नहीं आए। हम हिंदुस्तान के जनता और मीडिया का समय और सामर्थ्य बर्बाद करने में क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं। निष्पक्ष तो सिर्फ थर्ड जेंडर होते हैं। हम सत्य और तथ्य के साथ खड़े हैं। हिंदुस्तान के 130 करोड़ लोगों की संवेदना बनाएंगे। मेरा 25 लाख मुस्लिमों, 25 मुस्लिम देशों, 30 लाख बौद्ध और 10 लाख ईसाइयों से सीधा जुड़ाव है।

श्री कुमार ने कहा कि आने वाले एक दशक में दुनिया हिंदुस्तान को सल्यूट करेगी। एक बार ठीक से हिंदुस्तान को हिलोरे लेने तो दीजिए, फिर देखिएगा कि दुनिया किस तरह आपके अस्तित्व को स्वीकार करेगा। अब अगला नारा लगेगा कि पीओके-पाकिस्तान खाली करो-खाली करो। एक्साइ चीन-चीन खाली करो-एक्साइ चीन-चीन खाली करो। अब पीओके और एक्साइ चीन में तिरंगा ध्वज लहराने का वक्त आने वाला है। जिंदगी में संकल्प लीजिए कि जनभावनाओं के आंदोलन का ज्वार इस बार लखनऊ से उठेगा।

राज्य सूचना आयुक्त सुभाष चंद्र सिंह ने कहा कि इतिहास लिखने और लिखाने का समीकरण मैं अच्छी तरह से जनता हूं। विजेताओं द्वारा इतिहास लिखाया जाता रहा है। जैसे हम अब्दुल हमीद के बारे में अधिक जानते हैं तारापोर के बारे में नहीं जानते हैं। भारतीय अध्येताओं को सिर्फ मध्य इतिहास पढ़ाया गया। हमारी मजबूरी है कि हम सिर्फ वही इतिहास जानते हैं। पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाने वाली हमारे पूर्वज पुस्तक ग़ायब हो गई। यह अचानक नहीं गायब हुई बल्कि साजिशन कराई गई। अब्दुल हमीद को इसीलिए वोटबैंक से जोड़ दिया गया। सुभद्रा सिंह चौहान की एक कविता हम पढ़ते थे खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। तारापोर का आधे से अधिक जीवन उन्होंने देशसेवा में लगाया। आक्रांता सिकन्दर और अकबर को महान बताने वाला इतिहास लिखवाया गया। पुरु को छोड़ने में सिकन्दर महान हो गया और पृथ्वीराज चौहान ने आक्रांता को 13 बार छोड़ा पर वह महान न बन पाए। इतिहास लिखने और लिखवाने का बड़ा पुराना खेल है। यूपीए सरकार में बम विस्फोट के मामले में स्वामी असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित को हिंदू आतंकवादी बताया गया। समय और परिस्थितियां बदलते ही आज सभी बाहर हैं। सरकार न बदलती तो उन तीनों को फांसी होती। तब इतिहास लिखा गया होता कि बम विस्फोट करने पर तीन हिन्दू आतंकवादियों को फांसी दी गई। सावरकर, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस को महान नहीं कहेंगे। अब इतिहास सीधी दिशा में आगे बढ़ रहा है। देश का नैरेटिव बदल रहा है। इतिहास को उसके सही परिप्रेक्ष्य में लिखा जाना चाहिए। सत्ता, शक्ति और धर्मान्तरण की बदौलत लिखा गया इतिहास कूड़ेदान में डाल दिया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी मुरारीदास ने कहा कि महापुरुष स्मृति समिति प्रत्येक महीने कार्यक्रम आयोजित करे, इसकी खुशी मुझे मिलती रहे। विस्मृत कर दिए गए महापुरुषों को पुनः स्मरण और चर्चा में लाया जाए यह एक बड़ा काम होगा। महापुरुषों के जन्मदिन और पुण्यतिथियां हिंदी तिथि और भारतीय परंपरा के हिसाब से आयोजित कराई जाएं।

अध्यक्षता कर रहे भूतपूर्व सैनिक परिषद के संरक्षक दिवाकर सिंह ने कहा कि तारापोर को उत्तर प्रदेश में दो फीसदी लोग भी नहीं जानते होंगे। कर्नल तारापोर को परमवीर चक्र दिया गया था। यह सेना की ओर से दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान है। पंचशील, गुटनिरपेक्षता और हिंदी-चीनी भाई-भाई के नाम पर देश को जहन्नुम में झोंक दिया गया। पूरी तैयारी न होने से 1962 का युद्ध हम हार गए। पाकिस्तान के पास 1965 में हमसे अधिक हथियार थे। सैनिकों में जो देशभक्ति की भावना होती है। सैनिकों में भावना होती है कि हमारी पलटन जीतेगी। अभिनंदन ने जिस वीरता और शौर्य का परिचय दिया वह भारतीय सैनिक की वीरता की कहानी है।

राष्ट्रीय एकता परिषद के अध्यक्ष और सीमैप के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. हरमेश सिंह चौहान ने कहा कि समाज के अंदर काम करने वाले व्यक्ति का नाम तभी होता है जब उसके पीछे समाज खड़ा होता है। तारापोर की स्मृति में भी सब समाज खड़ा हो रहा है। इसलिए उनका नाम भी लोगों की स्मृतिपटल पर अंकित होगा।

सेवा भारती के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. विजय कर्ण ने कहा कि जिस समाज में बुजुर्गों का पद प्रच्छालन किया जाता है, वहां दैवीय आपदा कम आती है। जब कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों के कारण महापुरुष श्रेणी में पहुंच जाता है, तो हम सब उनके जन्मोत्सव को मनाते हैं। यदि शस्त्र न हों तो शास्त्र भी अपनी भूमिका खोने लगते हैं। दोनों मिलकर ही समाज को श्रेष्ठ और समृद्ध बनाते हैं। परमवीर चक्र विजेता तारापोर जैसे महानायक ने पाकिस्तान को 1965 के युद्ध में धूल चटाई। सात पैटन टैंक को उड़ाने वाले तारापोर जी को हम सब याद करके गौरवान्वित हो रहे हैं। उनके इस योगदान से हमें राष्ट्ररक्षा और समाजहित के व्रत का संकल्प ग्रहण करना चाहिए। सबसे पहले देश फिर राज्य और तब परिवार का स्थान आना चाहिए। शक्ति से विहीन केवल तो सिर्फ शव होता है। इसलिए शक्ति के साथ ज्ञान का सामंजस्य होगा तभी भारत देश दुनिया में अग्रणी बन सकेगा।

कार्यक्रम संयोजक और वरिष्ठ पत्रकार भारत सिंह ने कहा कि महापुरुष स्मृति समिति को सात साल पहले स्थापित किया गया था। तबसे समिति की ओर से ऐसे अनगिनत महापुरुषों के जन्मोत्सव आयोजित होते रहते हैं। जो महापुरुष राजनीतिक और तुष्टिकरण के चलते भुला दिए गए उनको पुनः याद किया जाएगा। इस दौरान केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट, कार्यक्रम सह संयोजिका अर्पिता सिन्हा, श्री सुरेंद्र कुमार, श्रीमती ममता सिंह सहित सैकड़ों की संख्या में पत्रकार, अधिवक्ता, शिक्षक और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।

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