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गंभीर बीमारी से पीड़ित डॉ.ज्‍योतिमा दौड़ लगाकर बनी नेशनल प्‍लेयर, अब जाएंगी चीन

वाराणसी की डॉक्टर ज्योतिमा इन दिनों चर्चा में बनी है। जिन्‍हें कल तक कोई इतना नहीं जानता था आज लोग उन्‍हें मिसाल के तौर पर ले रहे हैं। डॉक्‍टर ज्‍योतिमा एक बेटी, बहू और मां के बाद अब एक नेशनल प्‍लेयर बन कर भारत का प्रतिनिधित्‍व करने चीन जाने वाली हैं। हाल ही में उनका का सेलेक्शन मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप 2017 में हो गया है। डॉक्‍टर ज्‍योतिमा जिन हालातों में नेशनल प्‍लेयर बनी है उसकी कहानी सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
दवाओं संग दौड़ना जरूरी
वाराणसी जिले के बादशाह बाग की रहने वाली डॉक्‍टर ज्‍योतिमा को 2015-16 में कोलेस्ट्रॉल की बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया था। ग्रामांचल महिला महाविद्यालय में हिस्ट्री की टीचर ज्‍योतिमा का चलना फिरना मुश्‍िकल हो रहा था। कोलेस्ट्रॉल और हार्ट प्रॉब्लम 80 प्रतिशत कम हो चुका था। जिससे बीएचयू में प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर उनके पति डॉक्टर शैलेन्द्र सिंह पत्‍नी की इस बीमारी को लेकर परेशान हुए। उन्‍होंने अच्‍छे से अच्‍छे डॉक्‍टरों को दिखाया। इस दौरान डॉक्‍टरों का कहना था कि अगर उनका कोलेस्‍ट्रॉल समय रहते कम न हुआ तो मुसीबत हो जाएगी। इसके लिए दवाओं के साथ दौड़ना जरूरी था।
छह माह रेस करने लगी
ऐसे में बेटे शौर्य की देखभाल और अपनी नौकरी के चलते हर दिन ज्‍यादा से ज्‍यादा दौडऩे जाना संभव नहीं था। इसके अलावा वह ससुराल में ट्रैक सूट पहन कर दौड़ने में भी संकोच कर रही थीं। हालांकि ऐसे में उनके पति ने उनकी हर संभव मदद की। सबसे पहले तो उन्‍होंने समझाया कि जान है तो जहान है। इसके बाद खुद ही ट्रैक सूट लाकर दिया और साथ मैदान पर जाने लगे। जिस समय डॉक्‍टर ज्‍योतिमा मैदान पर दौड़ती थीं उस समय उनके पति बच्चे को संभालते थे। वह हर दिन दौड़ने जाने लगी थीं। जिससे करीब छह महीनों में वह कम मिनटों में लंबी रेस करने लगी थीं।

भागते-भागते यहां पहुंची
ऐसे में एक दिन उनके दिमाग में ख्‍याल आया कि अगर वह इस तरह से दौड़ती हैं तो कंपटीशन में भी हिस्‍सा ले सकती है। जिसके चलते इसी साल 17 फरवरी को हैदराबाद में नेशनल में खेलते हुए तीसरा स्‍थान हासिल किया। अब उनकी चर्चा होने लगी थी। इसके बाद अब हाल ही में इण्डिया टीम में चाइना के लिए एथलीट चैम्पियनशिप के लिए वह चयनित हो गई हैं। डॉक्‍टर ज्‍योतिमा का कहना है कि आज वह अपनों के समर्थन की वजह से यहां पहुंची हैं। बीमारी में भागते-भागते वह इस मुकाम पर पंहुच गई। उन्‍हें खुशी हैं कि वह अपने देश का नाम रोशन करने विदेश जा रही हैं।

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