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अमीरों की तरह जीने वाले गरीबी में मरे!

शायद ही कोई यकीं करेगा की करोड़ों-अरबों की कमाई करने वाले फिल्म स्टार्स कभी मुफलिसी में भी जी या मर सकते है! बड़ी संख्‍या में लोग इस बात पर इत्तेफाक नही रखेंगे लेकिन फ़िल्मी कहानी सी लगने वाली वाली उनकी यह दुनिया उससे कही पर है। हकीकत में अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव में कुछ ऐसे भी कलाकर थे जो बेहद गरीब और अकेले थे। मरते समय उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी।
मीना कुमारी:
मीना कुमारी ने अभिनय की दुनिया में अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी.1 अगस्त 1932 को जन्मी मीना कुमारी 31 मार्च 1972 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं। इतनी कम उम्र में ही वह ‘साहब बीबी और गुलाम’, ‘मैं चुप रहूंगी’ और ‘आरती’ जैसी फिल्‍में कर सुपरस्‍टार बन गई थीं। फिल्म ‘पाकीजा’ का गीत ‘चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो…’ काफी पॉपुलर हुआ। इतना सबकुछ होने के बाद मीना की मौत जब हुई तब वह बिलकुल कंगाल थीं। इलाज के लिए अस्‍पताल में भर्ती मीना के पास बिल भरने के लिए पैसे तक नहीं थे,एक डॉक्‍टर ने उनका बिल भरा था।

रूबी मेयर्स:
रूबी मेयर्स यानी कि सुलोचना नाम भी किसी परिचय का मोहताज नहीं थी.1907 को जन्‍मीं रूबी मेयर्स 10 अक्टूबर 1983 को इस दुनिया को छोड़ चल बसी.रूबी मेयर्स ने 1930 के दशक में फिल्‍म इंडस्ट्री की शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक थीं। नील कमल, खट्टा मीठा जैसे फिल्‍में करने वाली रूबी मेयर्स को भी अंतिम समय में काफी गरीबी और अकेलापन झेलना पड़ा।

चंद्र मोहन:
1905 में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में पैदा हुए चंद्र मोहन 1930-1940 के दशक में पर्दे पर छाए रहे। यह अपनी आवाज और खास तौर पर ग्रे कलर की आंखों की वजह से काफी फेमस हुए। करीब 20 से अधिक फिल्‍मों में काम करने वाले चंद्र मोहन की जिंदगी में एक समय ऐसा आया जब वो अकेले से पड़ गए थे.44 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले चंद्र मोहन ने भी आखिरी वक्‍त में काफी गरीबी झेली।

नलिनी जयवंत:
बॉलीवुड की टॉप क्‍लास की एक्‍ट्रेस में सुमार नलिनी जयवंत 1926 में जन्‍मीं और वर्ष 2010 में दुनिया को अलविदा कह गई। नलिनी ने नास्तिक, बंदिश, काला पानी, किशोरी, मिस्टर एक्स जैसी फिल्‍मों में काम किया।नलिनी भी जीवन के अंतिम दौरा में काफी परेशान रहीं,शायद यही वजह रही कि तीन दिन तक उनकी मौत की खबर किसी को नहीं हुई।

कुक्कू मोरे:
एंग्लो-इंडियन कुक्कू मोरे को पहली बार-डांसर के रूप में देखा जाता रहा है। उस दौर में अपने एक डांस के 6000 रुपये लेती थीं। यह काफी फेमस भी हुई थीं,लेकिन बाद में इन्‍हें कैंसर की बीमारी हो गई। बीमारी और कंगाली की वजह से 52 साल की उम्र में ही वह इस दुनिया से विदा हो ली।

भारत भूषण:
फिल्‍म बैजू बावरा से फिल्‍मी दुनिया में छाए भारत भूषण 1992 को 72 वर्ष की उम्र में अलविदा कह गए। इन्‍होंने भाईचारा, सुहागरात, उधार, रंगीला राजस्थान जैसी फिल्‍मों में काम किया। भरत भूषण्‍ ने जीवन के आखिरी दिनों में काफी गरीबी झेली। जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें अपनी दो कारें भी बेचनी पड़ीं।

विमी:
विमी ने बी आर चोपड़ा की फिल्‍म हमराज से काम शुरू किया। विमी एक आजाद खयालो वाली महिला थी। इन्‍हीं वजहों से विमी का अपने पति और परिवार से भी दूर हो गईं।शराब की लत की वजह वह लगभग कंगाल सी हो गई थीं। कंगाली की वजह से ही आखिरी समय में उन्‍हें अपना इलाज नैनावती अस्‍पताल के साधारण वार्ड में करवाना पड़ा।

ए.के.हंगल:
वर्ष 1914 में जन्‍में ए.के. हंगल ने नाना, पिता, नेता, स्कूल मास्टर, रिटायर्ड जज, डॉक्टर, प्रोफेसर, पंडित, संत, कर्नल जैसे तमाम किरदारों में नजर आए। सैंटा क्रूज के एक छोटे से फ्लैट में रहने वाले हंगल आखिरी समय में अकेले ही रहे। वह अंतिम वर्षों में कई बीमारियों की चपेट में थे। इसके अलावा तंगी से जूझते हुए वर्ष 2012 में उनकी मृत्यु हो गई थी।

भगवान दादा:
फिल्‍म ‘अलबेला’ सहित कई सुपर हिट फिल्मों में वह जबरदस्‍त रोल में नजर आए। ‘भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे’ गाने में इनके ठुमके आज भी लोगों को अच्‍छे से याद हैं। सुपरस्‍टार बनने के बाद इनके पास चेंबूर में बंगला, स्टूडियो और कीमती कारें सब हो गईं थी, लेकिन हादसे में उनकी यह अकूत संपत्ति आगजनी की भेंट चढ़ गए। हालात कुछ यूँ बदले कि उन्हें चेंबूर के बंगले से निकालकर दादर की चॉल में रहना पड़ा।

अचला सचदेवा:
बलराज साहनी की जोहराजबीं से पॉपुलर हुई अचला वर्ष 1920 में पेशावर में जन्‍मीं और वर्ष 2012 को दुनिया को अलविदा कह गईं। दो बच्चों की मां होने के बाद भी जीवन के अंतिम दिनों में वह बिलकुल अकेली रहीं। जिस समय वह हॉस्पिटल में भर्ती थी वहाँ उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।

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