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Manto : पार्टीशन के बाद गुजार दी जिंदगी

सआदत हसन मंटो Manto एक ऐसे दीवाने का नाम जिसने बेबुनियाद उम्मीद पर अपने कहानियों की नींव नहीं रखी बल्कि कड़वे यथार्थ को आग में लपेट कर लावा बनाकर अपने अफसाने कहे। उसकी आग उगलती कलम उससे निकलने वाले और रूह को बेदर्दी से थप्पड़ मारते अफसाने ना हिंदुस्तान को पसंद आए और ना ही पाकिस्तान को जहां पार्टीशन के बाद मंटो ने अपनी ज़िंदगी गुजार दी। सिर्फ 42 साल की उम्र में दुनिया से फना हो जाने वाले इस अजूबे कहानीकार का नाम दुनिया के साहित्य में अलग मुकाम रखता है।

Manto के सारे जज्बातों को

नंदिता दास ने एक निर्देशक के तौर पर Manto ‘मंटो’ के उन सारे जज्बातों को कड़वाहटों को उसकी जहर उगलती जुबान को बेहद संजीदगी के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरा है। यह मंटो की आत्मकथा है जिसमें बीच-बीच में कहानियों को पिरोया गया है। फिर भले ‘खोल दो’ हो या ‘ठंडा गोश्त’। उनके फिल्म इंडस्ट्री के अनुभव या उनकी निजी ज़िंदगी के ताल्लुकात को ध्यान में रखते हुए नंदिता ने मंटो के जीवन के सारे आयामों को समेट कर एक खूबसूरत फिल्म बनाई है।

जिन लोगों ने मंटो को पढ़ा है उनके लिए तो यह एक कमाल का तोहफा है मगर जिन लोगों ने मंटो को नहीं पढ़ा उनके लिए यह एक अलग दर्जे का अलहदा सिनेमा है।

अभिनय की बात करें तो नवाजुद्दीन पूरी फिल्म में सिर्फ मंटो ही नजर आए किसी एक फ्रेम में भी यूं नहीं लगता कि वह नवाज है। उनकी पत्नी बनी रसिका दुग्गल ने भी कमाल का परफॉर्मेंस दिया है। इसके अलावा छोटे छोटे किरदारों में ऋषि कपूर, परेश रावल और जाने-माने लेखक और शायर जावेद अख्तर भी नजर आते हैं।

 

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