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Akhilesh संग दिखे जगदंबिका पाल, चर्चाओं का बाजार गर्म

सोशल मीडिया पर वायरल हुई सपा अध्यक्ष अखिलेश Akhilesh यादव और बीजेपी सांसद जगदम्बिका पाल के मिलन की फोटो ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। सांसद जगदम्बिका पाल और अखिलेश का मिलन ऐसे समय हुआ जब लोकसभा चुनाव नजदीक है।

Akhilesh से माता प्रसाद पांडेय की शिकायत

वैसे तो किसी पार्टी के सांसद का दूसरी पार्टी के किसी नेता से मिलने की मनाही नहीं है, सभी एक दूसरे से मिलते ही रहते हैं। 2019 लोकसभा चुनाव पास आते ही सांसदों का पार्टियों से पलायन का दौर शुरू हो गया है। भाजपा सांसद जगदंबिका और सपा अध्यक्ष अखिलेश मिलना भी पलायन मुद्दे को हवा दे रहा है। ख़ास कर तब जब पाल के टिकट पर ग्रहण की चर्चा जोर शोर से चल रही है। 23 अगस्त को लखनऊ में पूर्व सीएम अखिलेश यादव से सिद्धार्थनगर जिले के सपा कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों और बड़े नेताओं की मीटिंग में पूर्व स्पीकर माता प्रसाद पांडेय की शिकायत भी सुनने को मिली थी। जिले के एक कथित सपा नेता ने अखिलेश यादव से माता प्रसाद की जमकर शिकायत की थी। बैठक में माता प्रसाद पांडेय भी मौजूद थे। इस शिकायत के पीछे जिले के एक युवा सपा नेता के हाथ होने की चर्चा है।सिद्धार्थनगर के कथित सपा नेता की माता प्रसाद पांडेय की शिकायत को पूर्व मुख्यमंत्री यादव ने बड़ी ध्यान से सुना।

पाल और अखिलेश का मिलन

इसके बाद दूसरे ही दिन पाल और अखिलेश के मिलन की फोटो वायरल होने का अलग अलग निहितार्थ निकाला जा रहा है। सिद्धार्थनगर जिले के इस इकलौते संसदीय सीट के चप्पे चप्पे पर पाल और अखिलेश के मिलन की चर्चा जोरों पर है।
बता दें कि आसन्न लोकसभा चुनाव में सपा बसपा के बीच गठबंधन की चर्चा है। इस गठबंधन में कांग्रेस के भी शामिल होने की खबरें आती रहती हैं। हालाकि गठबंधन की तस्वीर अभी धुंधली है। ऐसे में तीनों ही दलों के नेता फिलहाल अपनी डफली अपनी राग अलाप रहे हैं। इस सीट पर भाजपा का सांसद होते हुए भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के कई चेहरे उतरने को आतुर है। प्रथमदृष्टया कोई कारण नहीं है कि पार्टी पाल का टिकट काटने पर विचार करे बावजूद इसके इनके टिकट कटने की चर्चा जोर शोर से उड़ाई जा रही है। इसी के साथ अपना दल एस इस सीट से दावेदारी जता रहा है तो एक डॉक्टर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ फोटो खिंचवा कर अखबार और होर्डिंग के जरिए इस बार हम का दावा ठोंक रहे हैं। इसके अलावा भाजपा के और भी कई चेहरे हैं जो टिकट की लाइन में हैं।

भाजपा के कई चेहरे लाइन में

सिद्धार्थनगर के कथित सपा नेता की माता प्रसाद पांडेय की शिकायत को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने बड़ी ध्यान से सुना। अखिलेश के इस मीटिंग के बाद दूसरे ही दिन पाल और अखिलेश के मिलन की फोटो वायरल होने की भिन्न मंशा निकाली जा रही हैं।आसन्न लोकसभा चुनाव में सपा बसपा के बीच गठबंधन की चर्चा है। इस गठबंधन में कांग्रेस के भी शामिल होने की खबरें आती रहती हैं। हालाकि गठबंधन की तस्वीर अभी साफ नहीं है। ऐसे में तीनों ही दलों के नेता फिलहाल अपनी डफली अपनी राग अलाप रहे हैं। इस सीट पर भाजपा का सांसद होते हुए भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के कई चेहरे उतरने को आतुर है। प्रथमदृष्टया कोई कारण नहीं है कि पार्टी पाल का टिकट काटने पर विचार करे बावजूद इसके इनके टिकट कटने की चर्चा जोर शोर से उड़ाई जा रही है। इसी के साथ “अपना दल एस” इस सीट से दावेदारी जता रहा है तो एक डॉक्टर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ फोटो खिंचवा कर अखबार और होर्डिंग के जरिए इस बार हम का दावा ठोंक रहे हैं। इसके अलावा भाजपा के और भी कई चेहरे हैं जो टिकट की लाइन में हैं।

पाल की पृष्ठिभूमि

पूर्वांचल में पाल के अलावा शायद ही कोई सांसद हो जो अपने क्षेत्र में हर मौके पर उपलब्ध हो, जनता से सीधे जुड़ा हुआ हो और क्षेत्र के विकास के लिय संघर्ष करता हो। पाल कांग्रेसी पृष्ठिभूमि के हैं। इसी सीट से वे 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए थे। अचानक परिस्थितयिां बदली और 2014 के चुनाव पाल ने भाजपा की छत्र-छाया में लड़ा। ख्वाब मंत्री पद का था जो न तो कांग्रेस में पूरी हुई और न ही भाजपा में। खुद्दार मिजाज के पाल का राजनीतिक सफर बड़ा उतार चढ़ाव भरा रहा। सेवादल फिर युवा कांग्रेस और फिर कांग्रेस की सीधी राजनीति में चर्चित चेहरा रहे पाल राजनीति की विपरीत धारा में ही कामयाब हुए हैं।

विपरीत परिस्थिति में पाल ने बनाई राह 

1977 की जनता पार्टी सरकार के सत्ता से हटने के बाद जब 1980 लोकसभा का चुनाव हुआ तो बस्ती लोकसभा सीट से पाल कांग्रेस के मजबूत दावेदार थे। इन्हें टिकट नहीं मिला। इसके बाद 1981 में यूपी विधानसभा चुनाव में भी इनका टिकट कट गया। लेकिन इनकी निष्ठा नहीं डिगी। अंततः पार्टी को इन्हें विधान-परिषद् में लेना पड़ा और मंत्री भी बनाया। फिर बस्ती विधानसभा सीट से लगातार कई बार विधायक और मंत्री रहे। इस बीच जब तिवारी कांग्रेस का गठन हुआ था तब भी पाल ने पाला बदला था। वह तिवारी कांग्रेस के टिकट पर खलीलाबाद से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए। कुछ दिन भटकने के बाद वे फिर कांग्रेस में लौट आए और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तक बने।

2004 में उन्हें डुमरियागंज संसदीय सीट से टिकट तब मिला जब इस सीट से कांग्रेस लगभग समाप्त हो चुकी थी और इसके उम्मीदवार 40 हजार वोट में सिमट गए थे। 2004 में पाल चुनाव हार जरूर गए थे लेकिन कांग्रेस का ग्राफ पौने दो लाख तक पंहुच गया था और वह 2009 में वे चुनाव जीतने में सफल हुए। अब जैसी की चर्चा है तो ऐसा लगता है कि पाल को फिर विपरीत परिस्थिति में राजनीति में अपनी नई राह बनानी पड़ सकती है।

 

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