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जिन्दगी की जद्दोजहद को दर्शाता है उपन्यास डिवाईडेड लाइफ

लखनऊ के रहने वाले एवं पेशे से अधिवक्ता वी.पी सुनील को लेखन का शौक छात्र जीवन में ही हो गया था और विश्वविद्यालय स्तर पर वर्ष 1985 में सामायिक विषय पर लिखे गये लेख को पुरस्कार के लिये भी चुना गया, इस लेखन के बाद के बाद लगभग तीस वर्षो के बाद अपना पहला उपन्यास तीन युवा किरदारों पर केन्द्रित करते हुये डिवाईडेड लाइफ लिखना शुरू किया जो अब बाजारों में आ चुकी है, और हाल ही में अमेजन में प्रमुख दस बेस्टरीड्स में भी यह उपन्यास शामिल हुआ है। उनके पहले ही उपन्यास को मिल रही इस सफलता पर उपन्यास के लेखक वी0पी0 सुनील से हुयी बातचीत के कुछ अंश :-

आपके उपन्यास ‘डिवाईडेड लाइफ’ का मूल सन्देश
उपन्यास ‘डिवाईडेड लाइफ’, दरअसल किसी एक व्यक्ति विशेष की कहानी नहीं है, बल्कि यह हर उस इंसान की कहानी है जो जिन्दगी की जद्दोजहद में ‘डिवाईडेड लाइफ’ जीने को मजबूर है। इस दौड़ में क्या हम वो कर पा रहे हैं, जो हम करना चाहते हैं-शायद नहींस वर्तमान समय में, न तो हमारे विचार स्थिर हो पाते हैं और न ही समाज। जो लक्ष्य हम निश्चित करते हैं क्या हम उसे हासिल कर पाते हैं? इस व्यथा को दर्शाता है यह उपन्यास।

देशभक्ति को व्यक्तिगत जीवन से ऊपर दिखाया
यही सत्य है और संभव भी हैस मैंने अपने उपन्यास के द्धारा यह दर्शाने की कोशिश की है कि देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी हमारे व्यक्तिगत जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसमें एक नायिका अनेक प्रकार की विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी देश के प्रति अपने कर्तव्य से विमुख नही होती है। किसी भी दशा में हार न मानना और संघर्षों से ही बहुमुखी प्रतिभा का विकास करना, यह सन्देश हमें उस नायिका से मिलता है।

भारतीय लड़की का चित्रण करते समय दिमाग में
नायक को मन ही मन में अपना दिल दे चुकी एक परम्परागत भारतीय लड़की किस तरह अपने प्यार को जाहिर करना चाहती है और गलतफहमी पैदा हो जाने पर किस तरह से अपनी नाराजगी व्यक्त करती है, मैंने यह दिखाने की कोशिश की है। संस्कारों में जकड़ी वही लड़की कैसे अपने प्यार को हासिल कर पाती है, यह देखने और समझने की चीज है।

एक आम आदमी के रूप में नायक
‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में शाहरुख खान ने बार-बार बताया है “डोंट अंडरइस्टीमेट दि पॉवर ऑफ ए कॉमन मैन” प्रतिशोध की आग में जल रहा नायक इसके लिए सिस्टम का अपने तरीके से यूज करता है। देखने की बात है कि बदले की भावना मानसिक क्षमता को किस प्रकार प्रभावित करती है। जहाँ तक आम आदमी की क्षमता की बात है, मेरा मानना है कि वह सब कुछ कर सकता है।

‘हनी-ट्रैप’ के रूप में नया विषय
हाँ, ये एक ऐसा विषय है जो हमारे देश को प्रभावित कर रहा है। आये-दिन समाचारों में इस पर कुछ न कुछ पढ़ने को मिल जाता है और इसमें फंसे हुए लोगों के बारे में भी। इन्हीं बातों ने इस पर लिखने के लिए प्रेरित किया। बदलते समय के साथ जिस तरह से व्यक्ति की मानसिकता बदल रही है और मानवता के मूलभूत तत्व जिस तरह से क्षीण हो रहे हैं। मेरा अगला उपन्यास ‘मरते लोग’ इसी विषय पर केन्द्रित है। मैंने इस उपन्यास के द्धारा इस बदलाव पर चोट करने की कोशिश की है।

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