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नहीं पता इरादे…..

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मी लगातार बढ़ती जा रही है। सबके अपनी-अपनी जीत के दावे हैं। दावों को मजबूती प्रदान करने के लिये तमाम तरह के तर्क भी दिये जा रहे हैं। इन तर्कों के पीछे मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने का खाका छिपा हुआ है। आरोप,प्रत्यारोप को चुनावी सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। आज स्थिति यह है कि सभी दलों के नेताओं के पास विरोधियों के लिये तो कहने को बहुत कुछ है लेकिन अपने बारे में बोलते समय कहीं न कहीं इनकी जुबान अटक जाती है। कोई भी दल ,ेसा नहीं है जिसे पाक-साफ करार दिया जा सकता हो। समाजवादी पार्टी कुनबे के झगड़े में उलझी हुई है तो अखिलेश पर सरकार के समानांतर गुंडाराज को पालने-पोसने का आरोप लÛ रहा है। सपा राज में गुंडाराज पर लगाम लगाया जाना मुश्किल है, इसका ताजा उदाहरण है बाहुबली अतीक अहमद के गुर्गों द्वारा इलाहाबाद के एक शिक्षण संस्थान में जाकर सुरक्षा कर्मियों के साथ मारपीट और शिक्षकों के साथ अभद्रता किया जाना। सपा में चाचा भतीजे की जंग कभी थमती दिखाई देती है तो कभी यह आग का दरिया नजर आती हैं। मौके की नजाकत को भांप कर बसपा सुप्रीमो मायावती मुस्लिमों पर खूब डोरे डाल रही हैं। वह मुसलमानों को अपने काम गिनवाने के साथ-साथ मुस्लिम भाईचारा सम्मेलन के द्वारा भी लुभा रही हैं। बसपा ने विधानसभा चुनावों में मुसलमानों पर बड़ा दांव लगते हुए करीब सवा सौ टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए हैं। पूरे देश में लगातार हार का मुंह देख रही कांग्रेस यूपी को लेकर ,क बार फिर आशावान है। कांग्रेस की कोशिश अपने परंपरागत दलित, मुस्लिम और किसान वोटरों को साधने की है। कांग्रेस की खाट पंचायत, दलित स्वाभिमान यात्रा राहुल संदेश यात्रा इसी का हिस्सा है।
उत्तर प्रदेश में सत्ता का सियासी वनवास खत्म करने के लिये सबसे अधिक बेचैन भारतीय जनता पार्टी नजर आ रही है। बसपा, सपा और कांग्रेस भाजपा के प्रचार तंत्र के सामने कहीं नहीं टिक रहे। सबसे ज्यादा रैलियां भाजपा ने ही की हैं। भाजपा यूपी में करो या मरो के हिसाब से काम कर रही है। उसे पता है कि यूपी में अगर पार्टी का विजयी रथ ठहर गया तो 2019 में दिल्ली के लिए उसकी राह काफी मुश्किल हो जाएगी। भाजपा की परिवर्तन यात्रा पिछड़ा वर्ग सम्मेलन, युवा सम्मेलन और महिला सम्मेलन से लोगों को जोड़ने की कोशिश जारी है। महिला विंग की कमान मायावती पर विवादित टिपण्णी करने वाले निष्कासित भाजपा नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाती सिंह संभाल रही हैं जो मायावती दयाशंकर प्रकरण से उभरीं हैं।
पार्टी की कोशिश की है लगभग हर जिले में महिला, युवा और पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करके ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जाये। हालांकि अभी तक पार्टी ने एक भी टिकट घोषित नहीं किया है। वैसे कहा यह भी जा रहा है कि यूपी सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में नोटबंदी के पक्ष और विपक्ष में वहां की जनता अपना फैसला सुना सकती है। लब्बोलुआब यह है कि सभी दल अपनी-अपनी जी के दावे तो कर रहे हैं, लेकिन मतदाताओं के इरादों की उन्हें जरा भी भनक नहीं लग रही है

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