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नेपाल ने दिया भारत का साथ, चीन के साथ कई समझौतों से किया इनकार

नेपाल दौरे को चीन ‘बहुत सफल’ बता रहा है. जबकि नेपाल ने आख़िरी समय में कई संधियों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है. प्रत्यर्पण संधि, रक्षा समझौता और सीमा पर सड़क निर्माण इन समझौतों पर नेपाल ने आख़िरी समय में साइन करने से इनकार कर दिया है.

हिमालय वाला देश नेपाल ने इन सभी समझौतों पर दस्तख़त करने से इसलिए मना किया क्योंकि इससे देश की संप्रभुता ख़तरे में पड़ सकती है.

रविवार को काठमांडू में जिनपिंग और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बीच शिखर वार्ता के दौरान 18 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. हालांकि इनमें प्रस्तावित प्रत्यर्पण संधि शामिल नहीं थी और इसके बदले आपराधिक मामलों में आपसी कानूनी सहयोग से जुड़े समझौते पर दस्तखत हुए.

दरअसल नेपाल सरकार के एक वर्ग का मानना था कि प्रत्यर्पण संधि का इस्तेमाल तिब्बतियों पर शिकंजा कसने और उनका चीन में प्रत्यर्पण कराने में किया जा सकता है.

बता दें कि नेपाल के साथ तिब्बत की लंबी सीमा लगी है, जिसमें करीब 20 हजार से ज्यादा तिब्बती रहते हैं.

शिखर वार्ता से कुछ दिनों पहले तक दोनों पक्ष एनडीयू को लेकर बातचीत कर रहे थे, हालांकि बाद में स्थानीय विरोध को देखते हुए नेपाल ने इस योजना को टाल दिया.

यह भी माना जा रहा था कि चीन संसद की नई बिल्डिंग का निर्माण करेगा या निर्माण में आने वाली लागत के एक हिस्से को फंड करेगा, लेकिन इस प्रस्ताव को भी आगे नहीं बढ़ाया गया.

दरअसल नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने सरकार से इस तरह के किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने की अपील की थी क्योंकि भारत के साथ भी कुछ इसी तरह के समझौते की बातचीत जारी थी.

नेपाल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री एम पी कोइराला की मौजूदगी में 2 अक्टूबर, 1953 को भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किया था. भारत हालांकि इन समझौते में संशोधन की मांग करता रहा है, जो अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है.

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