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लोक आस्था का महापर्व-छठ व्रत

छठ व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित एक विशेष पर्व है। भारत के कई हिस्सों में खासकर यू.पी.और बिहार में तोइसे महापर्व के रुप में मानाया जाता है। शुद्धता,स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह लोकपर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है।छठ व्रत में छठी माता की पूजा होती है और उनसे संतान व परिवार की रक्षा कावर मांगा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से छठमैया का व्रत करता है। उसे संतान सुख जरुर प्राप्त होता है।
हर वर्ष कार्तिक महिने के शुक्ल पक्ष में दीवाली के चैथे दिन से शुरु होकर सातवें दिन तक चलता है। चतुर्थी के दिन नहा खाये तथा पंचमी के दिन खरना यानी के गुड़ में चावल का खीर बनाया जाता है। उपले और आम के लकड़ी से मिट्टी के चूल्हें पर फिर सादे रोटी और केला के साथ मां को याद करते हुए अग्रासन निकालने के बाद धूप हुमाद के साथ मां की पूजा करने के बाद पहले व्रती खाती है फिर घर के अन्य सदस्य खाते हैं। इसी के साथ मां का आगमन हो जाता है। तत्पश्चात षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवानबनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों तथा टोकरीयों में भरकर नदी,तालाब,सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है।जिसे छठ घाट कहा जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं। और फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत के दौरान रात भर जागरण किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुनरूसंध्या काल की तरह डालों में पकवान,नारियल,केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं। अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है। कथा के बाद छठ घाट पर प्रसाद वितरण किया जाता हैऔर फिर सभी अपने-अपने घर लौट आते हैं। तथा व्रत करने वाले इस दिन पारण करते हैं। यह क्रम खरना के दिन से व्रती लगातार36घंटे निर्जल एवं निराहार रहते हुए व्रत करती है। इसलिएइसे कठिनतम व्रत कहा गया है।

कार्तिक मास मेंषष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ
व्रत की शुरुआत रामायण काल से हुई थी। लोक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को त्रेतायुग में माता सीता ने तथा द्वापर युग में पांडु की पत्नी कुन्ती ने की थी जिससे कर्ण के रुप में संतान पाई थी। पांडव की पत्नी द्रौपदी ने भी इस व्रत को कियाथा।हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। वास्तव में इनकीरोशनी से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है। इनकी किरणों से धरती में फल,फूल,अनाज उत्पन्न होता है । सूर्य षष्टी या छठ व्रत भी इन्हीं भगवान सूर्य को समर्पित है । इस महापर्व में सूर्य नारायण के साथ देवी षष्टी की पूजा भी होती है।छठ पूजन कथानुसार छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्नकरने के लिए भक्तगण भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुएमां गंगा-यमुना या किसी अन्य नदी या जल स्त्रोत के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। इस ब्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है
तथा इस व्रत को करने वाले सभी प्राणियों की मनोकामनाये पूर्ण होती है। यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। और यहभगवान सूर्य को समर्पित है। बिहार और पूर्वांचल के निवासी आज जहां भी हैं वेसूर्य भगवान को अर्ग देने की परंपरा को आज भी कायम रखे हुए हैं। यही कारण है कि आज यह पर्व बिहार और पूर्वांचल की सीमा से निकलकर देश विदेश में मनाया जाने लगा है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बड़ा ही कठिनहै। इसमें शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्यदेव थे। इसलिए भगवान राम जब लंका से रावण वध करके अयोध्या वापस लौटे तो अपने कुलदेवता का आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल,मिष्टान एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्यको अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालनाशुरु किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्यषष्ठी का पर्व मनाने लगे । एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा प्रियव्रत थे उनकी पत्नी थी मालिनी। राजा रानी निरूसंतान होने से बहुत दुरूखी थे। उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई परंतु नौ महीने बाद जब उन्होंने बालक को जन्म दिया तो वह मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत इस से अत्यंत दुरूखी हुए और आत्म हत्या करने हेतु तत्पर हुए । प्रियव्रत जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुईं।
देवी ने कहा प्रियव्रत मैं षष्टी देवी हूं। मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होतीहै,मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं। अतरूतुम मेरी पूजा करोतुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्लषष्टी तिथि को देवी षष्टी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई । औरउसी दिन से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है। इस त्यौहार को बिहार,झारखंड,उत्तरप्रदेश एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हर्षोल्लास एवं नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार की यहां बड़ी मान्यता है। इस महापर्व में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने केलिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं। व्रत चार दिनों का होता है पहले दिनयानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा खाते हैं । तत्पश्चातषष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों तथा टोकरीयोंमें भरकर नदी,तालाब,सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं। और फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत के दौरान रात भर जागरण किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुनरूसंध्या काल की तरह डालों में पकवान,नारियल,केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं। अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी की कथा कही और सुनी जाती है। कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है

फिर सभी अपने-अपने घर लौट आते हैं। तथा व्रत करने वाले इस दिन पारण करते हैं।
इस पर्व के विषय में मान्यता है कि षष्टी माता और सूर्य देव से इस दिन जो भीमांगा जाता है वह मनोकामना पूरी होती है । इस अवसर पर मनोकामना पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं। सूर्य को दंडवत प्रणामकरने का व्रत बहुत ही कठिन होता है,लोग अपने घर में कुल देवी या देवता कोप्रणाम कर नदी तट तक दंड देते हुए जाते हैं।
दंड प्रक्रिया के अनुसार पहले सीधेखडे होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से जमीन पर लेटकर दाहिने हाथ से जमीन पर एक रेखा खींची जाती है.यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार बार दुहरायी जाती है । भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ हिन्दू पंचांगके अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनायाजाता है। इस साल छठ पर्व24अक्टूबर से27अक्टूबर,2017तक मनाया जाएगा।

 

मार्कण्डेय पुराण में छठ पर्व के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

 

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