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जानिए इस एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा-विधान…

हमारे देश में सनातन संस्कृति को व्रत, त्यौहारों और पर्वों की संस्कृति कहा जाता है। हिंदू धर्म में सभी तिथियों का अलग-अलग महत्व है और सभी तिथियां देवी-देवताओं से संबंधित है। इन तिथियों में कुछ तिथियों को उपवास करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इनमें से एक विशेष तिथि और उस दिन किया जाने वाला व्रत एकादशी का है।

शास्त्रोक्त मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक वर्ष में सामान्यत: 24 एकादशी होती है, जो अलग अलग नामों से जानी जाती है और उनके व्रत का फल भी अलग-अलग होता है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस साल उत्पन्ना एकादशी 22 नवंबर शुक्रवार को है।

मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी को इसलिए विशेष माना जाता है क्योंकि इस दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु ने मुरमुरा नाम के राक्षस का वध किया था, इसलिए उनकी विजय के उपलक्ष में इस व्रत को किया जाता है। उत्तर भारत में मार्गशीर्ष महीने में तो दक्षिण भारत में इसको कार्तिक मास में मनाया जाता है।

उत्पन्ना एकादशी की व्रत विधि-
उत्पन्ना एकादशी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। स्वच्छ वस्त्र धारण कर श्रीकृष्ण के नम को जपते हुए पूरे घर में गंगाजल, गौमूत्र या किसी पवित्र जल को छिड़के। पूजा से पहले एक चौक बनाए और उसके ऊपर एक पाट रखे। उसके ऊपर प्रथम पूजनीय श्रीगणेश और श्रीकृष्ण या श्रीहरी की मूर्ति या तस्वीर रखें। पहले भगवान श्रीगणेश का विधि-विधान से कुमकुम हल्दी, मेंहदी, गुलाल, अबीर, अक्षत वस्त्र, फूल, पंचमेवा, ऋतुफल और मिठाई समर्पित करें। इसके बाद श्रीकृष्ण या श्रीहरी का षोडोपचार पूजन करें। देवताओं को भोग लगाने के बाद आरती उतारे ओर फिर प्रसाद को वितरित करे।

उत्पन्ना एकादशी के शुभ मुहूर्त-

उत्पन्ना एकादशी की तिथि – 22 नवंबर, शुक्रवार

उत्पन्ना एकादशी का प्रारंभ – 9 बजकर 1 मिनट से

उत्पन्ना एकादशी का समापन – 6 बजकर 24 मिनट पर

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