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श्रीकृष्ण सिखाते है कैसे किया जाता है मनुष्य से प्यार व किस प्रकार हासिल होगी जीवन में सफलता

कृष्ण में हमें उनका बहुआयामी व्यक्तित्व दिखाई देता है. वे परम योद्धा थे, लेकिन अपनी बहादुरी का इस्तेमाल साधुओं के परित्रण (रक्षा) के लिए करते थे. वे एक श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ थे, लेकिन उन्होंने इस सियासी कुशलता का इस्तेमाल जन-कल्याण के लिए किया. वे परम ज्ञानी थे.

उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग लोगों को मनुष्यता के आसान  सुगम रूप को सिखाने में किया. उनमें प्रेम एवं ज्ञान का अद्भुत समन्वय था. प्राचीन  आधुनिक साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोमय एवं प्रेममय लीलाओं से ओत-प्रोत है. उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटल पर जो छाप छोड़ी है वह अमिट है.

कृष्ण सिखाते है कैसे किया जाता है प्यार
कृष्ण सिखाते हैं कि प्यार कैसे किया जाता है. जिन प्रेमियों में एक-दूसरे के प्रति आदर  सम्मान नहीं, जिनमें एक-दूसरे का ख्याल रखने की भावना नहीं, उनमें प्यार कैसे होने कि सम्भावना है? युद्ध  प्रेम में अंतर यह है कि युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं, जबकि प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं. कृष्ण के ज़िंदगी पर ध्यान दें तो पाएंगे कि वे सबको सुख देना चाहते थे, सबके साथ रहना चाहते थे  सबका ख्याल रखना जानते थे.

अपनी लीलाओं में उन्होंने यही सब दर्शाया है. वे संगीत में रमने वाले, बांसुरी से सबका दिल जीतने वाले थे. कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र भी था जिसे वे प्रतिरोध के साधन के रूप में इस्तेमाल करते थे. वे योग के ज्ञाता थे. उन्होंने मानुष-धर्म को समझाया. कृष्ण भारतीय जन-मन के प्राण हैं.

कृष्ण ने बोला असफल हो जाते हैं तो अपनी रणनीति बदलें
कृष्ण कहते हैं कि अगर आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो अपनी रणनीति बदलिए, न कि लक्ष्य. वह कहते हैं कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है  जब तर्क नष्ट होता है तब आदमी का पतन हो जाता है. जो व्यवहार आपको दूसरों से पसंद न हो, वैसा व्यवहार आप दूसरों के साथ भी न करें.

ज्ञानी आदमी ज्ञान  कर्म को एक रूप में देखता है, वही ठीक अर्थ में देखता है. आसक्ति से कामना का जन्म होता है. जो मन को नियंत्रित नहीं करते, उनके लिए वह दुश्मन के समान काम करता है. काम में कुशलता को योग कहते हैं. कृष्ण ने गीता में बोला है कि स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है. आत्मा को न तो किसी शस्त्र से काटा जा सकता है  न ही जलाया जा सकता है, क्योंकि आत्मा तो अमर है.

मुसीबत के समय ना मिले सफलता तो हौसला ना हारे
कृष्ण हमें यह भी सिखाते हैं कि मुसीबत के समय या सफलता न मिलने पर हौसला नहीं हारनी चाहिए. इसके बजाय पराजय की वजहों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए. समस्याओं का सामना करें. एक बार भय को पार कर लिया तो फिर जीत आपके कदमों में होगी. उन्होंने लोगों का व्यर्थ चिंता न करने  भविष्य के बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का मंत्र दिया.

कृष्ण बताते हैं कि इंसान को दूरदर्शी होना चाहिए  उसे हालात का आकलन करना आना चाहिए. जब किसी आदमी को अपने बल पर विश्वास नहीं रहता तभी ज़िंदगी में आने वाले संघर्षो का सामना करने के लिए वह खुद को योग्य नहीं मानता! ऐसी स्थिति में वह अच्छे गुणों को त्याग कर दुगरुणों को अपनाता है! अर्थात मनुष्य के ज़िंदगी में दुगरुणता जन्म ही तब लेती है जब उसके ज़िंदगी में आत्मविश्वास नहीं होता.

संघर्ष  चुनौतियां ज़िंदगी के लिए लाभकारी
कृष्ण समझाते हैं कि प्रयत्न  चुनौतियां ज़िंदगी के लिए फायदेमंद होती हैं. प्रत्येक नया प्रश्न प्रत्येक नए उत्तर का द्वार खोलता है. कृष्ण को दो रूपों में प्रमुखत: देखा जाता है-बाल कृष्ण  योगेश्वर कृष्ण. ज्ञानी कृष्ण की इस रूप में पहचान करता है कि उसकी आत्म-जागृति कृष्ण की जागृति के समान होती है. आदमी संकल्प करे तो उसकी चेतना भी कृष्ण के समान विकसित हो सकती है.

महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने अजरुन से कहा, ‘मैं इस शरीर से भिन्न हूं. मैं शुद्ध आत्मा हूं. तू भी शुद्ध आत्मा है. तेरे तात, भाई, गुरु  मित्र जिनसे तू यह युद्ध करनेवाला है, वे भी शुद्ध आत्मा हैं. युद्ध करना तेरे लिए निश्चित कर्म फल है, इसलिए तुम्हें यह काम आत्मा की जागृति में रहकर करना है. इस जागृति में रहकर अगर तुम लड़ाई करते हो तो तुम नए कर्म में नहीं बंधोगे  पुराने कर्म समाप्त कर पाओगे, जिससे तुम्हारा मोक्ष होगा.

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