रायबरेली। अचलेश्वर महादेव मंदिर शिव भक्तों की श्रद्धा-भक्ति का केंद्र बन गया हैं। प्रतिदिन सैकड़ों लोग बाबा के दरबार में नियमित रूप से हाजिरी लगाने पहुच़ते हैं। सावन के महीने में दिन भर चहल-पहल बनी रहती है। सोमवार को दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमड़ती हैं। शिवरात्रि के मौके पर यहां मेला लगता है। प्रयागराज- लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कस्बा से करीब 7 किलोमीटर दूर सिरसा घाट मार्ग पर अचलेश्वर महादेव का मंदिर (रहवां) चौराहे पर स्थित है। मंदिर का इतिहास अनेकों चमत्कारी घटनाओं से भरा पड़ा है।

बताया जाता है कि लगभग दो सौ वर्ष पहले यहां निर्जन स्थान पर आपको अकोहरी का घनघोर जंगल हुआ करता था। समीप के गांव के एक व्यक्ति की गाय प्रतिदिन जंगल में चरने आती थी। शाम को वापस लौटने पर दूध नहीं देती थी, तब उसकी रखवाली शुरू की गई। गाय जंगल में एक स्थान पर खड़ी हो जाती और उसके थन से दूध धार स्वत: बहने लगती। धीरे-धीरे यह चर्चा आम हो गई। तब कालांतर में निर्जन स्थान पर शुरू हुई। जमीन के अंदर भव्य शिवलिंग पाया गया था। कहां जाता है कि तत्कालीन रहवां रियासत के राजा विश्वनाथ बक्श सिंह ने शिवलिंग को अपने महल में ले जाने के उद्देश्य से वहां पर मजदूरों से शिवलिंग खुदवाना शुरू किया लेकिन हैरत की बात तो यह रही कि काफी गहरे तक मिट्टी खोदे जाने के बाद शिवलिंग का आकार और चौड़ा होता गया।
कई अरघे मिलने के बाद आखिरकार शिवलिंग के नीचे से पानी निकलने लगा। तब राजा ने शिवलिंग को रस्सी में बांध कर हाथियों से खिंचवा कर बाहर निकालने की तमाम कोशिश की, फिर भी सफलता नहीं मिली। शिवलिंग अपने स्थान पर अचल रहा। बाद में इसका नाम अचलेश्वर महादेव पड़ गया। जन सहयोग से मंदिर का भव्य निर्माण कराया गया। परिसर में काल भैरव का और बाउंड्री वाल के बगल में हनुमान जी का मंदिर बना है। सावन माह के अंतिम सोमवार को शिव भक्त डलमऊ के गंगा घाट से कांवर में जल लेकर पद यात्रा करके मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। अब अचलेश्वर चौराहा बड़ी तेजी के साथ व्यवसायिक तौर पर विकसित हो चुका है। रिपोर्ट -दुर्गेश मिश्र