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किराये के घर के लिए नही उठाना पड़ेगा जोख़िम,सरकार कर रही…

सरकार साल 2022 तक सबको घर देने का सपना पूरा करने के लिए अटकी परियोजनाओं के घरों के निर्माण में तेजी लाने के कोशिश कर रही है. साथ ही शहरों में खाली पड़े घरों के लिए नियम-कानूनों को सरल बनाकर घरों की मांग को कम करने का कोशिश हो रहा है. इसके लिए सरकार आदर्श किराया कानून लाने जा रही है, जिससे किरायेदारों को अग्रिम भुगतान, सिक्योरिटी  मरम्मत जैसी राशि से छुटकारा मिलेगा  वे सस्ता मकान खरीद पाएंगे. पेश है हिन्दुस्तान टीम की रिपोर्ट–आदर्श किराया कानून लाने की तैयारी
सरकार संसद में जल्द ही आदर्श किराया कानून-2019 लेकर आएगी जिसकी तर्ज पर प्रदेश  केंद्रशासित प्रदेश भी ऐसे कानून लाएंगे. इसके तहत राज्यों में रेरा की तर्ज पर स्वतंत्र एजेंसी स्थापित होगी, जो किराये पर दिए गए मकानों के समझौते के पंजीकरण, नियमन के साथ इससे जुड़े विवादों के निवारण का कार्य करेगी. विशेषज्ञों का बोलना है कि इससे किराये के समझौते-शर्तों  संपत्ति के अधिकारों की वैधानिक ताकत बढ़ेगी. इससे किराये का मकान सस्ता  सरलता से मिलेगा.

सिक्योरिटी, अग्रिम भुगतान का झंझट नहीं रहेगा
प्रस्तावित कानून के तहत किराये का घर लेने पर दो महीने का अग्रिम कर या सिक्योरिटी जमा करने के प्रचलन पर लगाम लगेगी. कानून के तहत मकान को क्षति पहुंचने पर मरम्मत, रंगाई-पुताई, दरवाजे-खिड़कियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी मकान मालिक की होगी. हालांकि किराये की अवधि पूरी होने के बाद भी रहने वाले किरायेदार पर भारी जुर्माने का भी प्रस्ताव है. यह जुर्माना मासिक किराये के दो से चार गुना तक होने कि सम्भावना है.

सरकार ने जनता से भी मांगी राय
विशेषज्ञों का बोलना है कि किराये के कानून में स्पष्टता आने वे लोग भी अपना घर किराये पर देने की सोचेंगे, जो टकराव या कानूनी झमेले की वजह से ऐसा करने से कतराते हैं.आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने इस कानून का मसौदा विचार-विमर्श  आम लोगों की राय जानने के लिए जारी कर दिया है. संबंधित पक्षों के राय-मशविरे को शामिल कर विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष मंजूरी के लिए रखा जाएगा. आम जनता मंत्रालय की वेबसाइट पर इस कानून के विषय में सुझाव दे सकती है. वहीं राज्यों से भी 15 दिन में भी अपनी राय देने को बोला गया है.

घंटों या दिन के हिसाब से किराया
एक रिपोर्ट के मुताबिक, खाली पड़े घरों के लिए ठीक किरायेदारों का न मिलना समस्या है, क्योंकि मकानमालिकों  किरायेदारों को उनकी प्राथमिकताओं  जरूरतों के हिसाब से ठीकघर का पता नहीं चलता. ऐसे घर जो दूरदराज इलाकों में होते हैं, उन्हें भी कोई नहीं लेना चाहता. विशेषज्ञों का बोलना है कि होटलों की तरह शहरी इलाकों में घरों को भी घंटों या दिन के हिसाब से किराये पर दिया जा सकता है. छोटे-मोटे व्यावसायिक कामकाज निपटाने के लिए इनका प्रयोग होने कि सम्भावना है. एक ही किराये की स्थान पर कई पेशेवर छोटे-मोटे कार्य निपटा सकते हैं. अगर मकानमालिक दूरदराज या विदेश में भी हों तो भी दर्ज़ प्रापर्टी डीलर या एजेंसी के जरिये भी मकान दिए जा सकते हैं. ये डीलर मरम्मत नए किराये के कानून में इन सबका उल्लेख होगा.

विकसित राष्ट्रों में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग किराये पर
नैरेडको के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाक्टर निरंजन हीरानंदानी का बोलना है कि संसार भर में रेंटल हाउसिंग बहुत ज्यादा प्रचलित है. अमेरिका जैसे तमाम राष्ट्रों में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग पूरी जिंदगी किराये के मकान में सरलता से गुजार लेते हैं. हिंदुस्तान भी बढ़ती आबादी को देखते हुए इस संभावनाओं का भरपूर प्रयोग कर सकता है. अगर आदर्श किराया कानून आता है तो यह नेशनल रेंटल हाउसिंग नीति का रोडमैप साबित होगा. मकानों के मालिक के साथ मध्यस्थ एजेंसियां  कंपनियां भी इस क्षेत्र में कदम रखेंगी. उन्होंने बोला कि तेजी से बदलते कामकाजी माहौल में लोग एक स्थान पर नहीं टिकते, ऐसे में किराये का मकान ही उनकी जरूरतों को पूरा करता है. ऐसे में ऐसे कानून की कठोर आवश्यकता है.

रेरा की तर्ज पर मिलेगी सुरक्षा, निपटेंगे विवाद
तैयार  निर्माणाधीन घरों के खरीदारों के लिए सरकार दो वर्ष पहले रेरा कानून लाई थी, ताकि बिल्डर मनमानी न कर सकें. इससे मकानों की मूल्य में करीब 20 प्रतिशत की कमी आई  निर्माणाधीन घरों पर तरह-तरह के शुल्क वसूलने पर लगाम लगी. मकानों के निर्माण में देरी होती है तो बिल्डरों पर शिकंजा भी कसा जा सकेगा. वे खरीदारों से जुटाई गई राशि किसी  कार्य में प्रयोग नहीं कर सकेंगे. मकान के साथ मिलने वाली सुविधाओं में भी कोई कटौती नहीं होगी. खरीदारों की शिकायतों के लिए हर प्रदेश में नियामक एजेंसी के तौर पर रेरा का गठन किया गया है.

अहम बातें
* 4.8 लाख खाली पड़े तैयार घर औद्योगिक शहर मुंबई में
* 03-03 लाख के करीब खाली घर दिल्ली-बेंगलुरु में
* 21 दिन तक किराये के कानून पर सुझाव दे सकते हैं लोग

अभी क्या हैं अड़चन
स्पष्ट किराया नीति न होने से तमाम लोग घर किराये पर नहीं देते
कमजोर रेंटल एग्रीमेंट या कम किराये से भी झिझकते हैं लोग
पुलिस या अन्य कानून पचड़ों में पड़ने की संभावना भी रहती है
खाली पड़े घरों से मकानमालिकों के दूर रहने पर भी कब्जे का डर

12 प्रतिशत घर खाली पड़े शहरी इलाकों में
1.12 करोड़ घर खाली हैं 2011 की जनसंख्या के अनुसार
10 वर्षों में दो तिहाई बढ़ गई खाली पड़े घरों की तादाद

बड़ी फैक्ट्रियों के कर्मियों के रहने के लिए इस्तेमाल
एक ही मकान में कई छोटे-मोटे कार्यालय या दुकानें
कम खर्च चाहने वाले स्टार्टअप के लिए मुफीद
छात्रावास या सर्विस अपार्टमेंट के तौर पर प्रयोग बढ़ेगा

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