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Environment के प्रति जागरुक रहे वरना…

इस संसार में कई ग्रह एवं उपग्रह हैं पर पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन एवं जीव पाये जाते हैं। धरती कभी आग का गोला था, जलवायु Environment ने इसे रहने लायक बनाया और प्रकृति ने मनुष्यों सहित समस्त जीवों, पेड़-पौधों का क्रमिक विकास किया।

Environment के प्रति जागरुक रह के पृथ्वी बचाएं

Environment में प्रकृति और जीव एक दूसरे के पूरक हैं। बिना प्रकृति के न तो जीवन उत्पन्न हो सकता है और न ही जीव। इसीलिए प्रकृति मनुष्य को पर्यावरण संरक्षण की सीख देता है। हमारा शरीर प्रकृति के पांच तत्वों से मिलकर बना है –

क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीरा। पंचतत्व यह अधम शरीरा।

इन पंच तत्त्वों के उचित अनुपात से ही चेतना (जीवन) उत्पन्न होती है। धरती, आकाश, हवा, आग, और पानी इसी के संतुलित अनुपात से ही धरती पर जीवन और पर्यावरण निर्मित हुआ है, जो जीवन के मूल तत्व हैं।

आज बढती हुई आबादी के दंश से पर्यावरण का संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है और प्रकृति कूपित हो रही है। प्रकृति के किसी भी एक तत्व का संतुलन बिगड़ता है, तो इसका प्रभाव हमारे जीवन के ऊपर पड़ता है, मसलन- बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी उद्गार,सुनामी जैसी दैवीय आपदा सामने आती हैं।

ब्राजील के रियों दी जनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मेलन

इस को ध्यान में रखकर सन 1972 में पर्यावरण के प्रति अमेरिका मे 5 जून को चर्चा हुई औऱ तब से लेकर अब तक हर साल 5 जून को “विश्व पर्यावरण दिवस” के रुप में मनाते है। सन 1992 में 174 देशो के प्रतिनिधियों ने पर्यावरण के प्रति चिंता ब्यक्त करते हुए इसके समाधान के लिए ब्राजील के शहर रियों दी जनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मेलन के तहत एक साथ बैठे।

जोहान्सवर्ग में दूसरा पृथ्वी सम्मेलन

कलान्तर में सन 2002 में दक्षिणी अफ्रीकी शहर जोहान्सवर्ग में दूसरा पृथ्वी सम्मेलन हुआ। जिसमें चर्चा हुई कि पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी सभी राष्ट्रों की है, पर ज्यादा खर्चा धनी देश करेंगे। पिछले 20 साल के सफर में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। समाज एवं सरकारी स्तर पर देश दुनिया में काफी प्रयास हो रहे है। परन्तु यह प्रयास तभी कारगर हो सकती है जब हर जन इसके लिए आगे आये। इसके लिए समाज में जागरुकता की कमी को दूर करना होगा, तभी इसके सकारात्मक फल मिल सकते हैँ।

छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण बचाएं

हम और आप छोटे-छोटे प्रयास कर के इस बिगड़ते हुये पर्यावरण को ठीक कर सकते है। मसलन पानी की बर्बादी को रोकना, इसके लिए सीधे नल के बजाये बाल्टी में पानी भरकर गाड़ी को धोना, अपने घर में हो रहे पानी के लिकेज को रोकना गांव- मुहल्लों में बिना टोटी के बहते हुए पानी को रोकना, इसके लिए पडोसी को भी जागरुक करना, व्यक्तिगत वाहन के बजाये सार्वजनिक वाहन का उपयोग करना या फिर कार आदि को पूल करना। अपने घरों में छोटे-छोटे पौधे को गमले में उगाना, कागज के दोनों ओर लिखना, पुरानी किताबों को रद्दी बेंचने के बजाये किसी विद्यार्थी या पुस्तकालय को दान दे देना, घरों में आवश्यक रुप से बिजली के उपकरणों को चलाये रखने के बजाये उपयोग के बाद बंद कर दे आदि जैसे बहुत से छोटे-छोटे उपाय है, जिसे अपनाकर पर्यावरण का ख्याल रख के ही विभिन्न जल स्त्रोतों को बचाया जा सकता है।

वनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग किया जा सकता है। इस कार्य से पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका को साबित कर सकते है और इस पृथ्वी को आने वाले पीढ़ी के लिए सुरक्षित बना सकते हैं।

पर्यवारण के घटक वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली सरकार ने दिल्ली में दो बार ऑड ईवेन का फार्मूला अपना चुकी है, पर पहले की तुलना में दूसरी कामयाब नही हो सकी। केन्द्र सरकार ने भी कई योजनाएं बनाई है पर सही से क्रियान्वयन की कमी से इसके सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे है।

अगर अब भी पर्यावरण के प्रति सचेत नही हुए तो बढ़ती हुई आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन काटना होगा। जिससे प्रदूषण का असर औऱ बढ़ेगा, ग्लोबल वार्मिग होगा तथा वातावरण का ताप बढ़ेगा। अंततः ग्लेशियर पिघलेंगे औऱ समुंद्र का जलस्तर बढ़ेगा औऱ पृथ्वी एक दिन जल में समा जायेगी।

लाल बिहारी लाल

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