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अयोध्या मामला: मध्यस्थता के विफल होने के बाद SC में सुनवाई शुरू, सुप्रीम कोर्ट ने गोविंदाचार्य की मांग ठुकराई

सुप्रीम कोर्ट राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मंगलवार से रोजाना सुनवाई कर रहा है। मध्यस्थता के माध्यम से कोई आसान हल निकलने का प्रयास विफल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान गोविंदाचार्य की ओर से राम जन्मभूमि मामले मे सुनवाई करने वाली पीठ से पूरी सुनवाई की कार्यवाही लिखित में रिकार्ड कराने और बाद में उसे रिलीज करने की मांग की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया है।

पीठ में न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। बीते शुक्रवार को मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्‍दों में कहा था कि मध्यस्थता का कोई नतीजा नहीं निकला है। अब मामले पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई की जाएगी। शीर्ष अदालत इस मामले में सुनवाई तब तक जारी रखेगी जब तक सभी पक्षों की बहस पूरी नहीं हो जाती।

पिछली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश हुए वकील राजीव धवन ने इस दलील के संबंध में भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका का जिक्र किया था, जिसमें रामलला की पूजा अर्चना के मौलिक अधिकार की मांग की गई है। धवन की इस दलील पर मुख्‍य न्‍यायाधीश ने कहा कि इन मुद्दों पर बाद में विचार होगा सबसे पहले मामले की रोज सुनवाई शुरू होगी। जब धवन एक-एक करके कई अन्‍य मुद्दों को उठाने लगे तो मुख्‍य न्‍यायाधीश ने कहा कि हम इन्‍हें खुद देख लेंगे और तय कर लेंगे कि इनका क्‍या करना है। आप सुनवाई के लिए तैयार रहिये और अदालत को मत बताइये की उसे क्‍या करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने गत 18 जुलाई को अयोध्या मामले में मध्यस्थता के जरिये सुलह का प्रयास कर रहे तीन सदस्यीय पैनल से मध्यस्थता में हुई प्रगति पर रिपोर्ट मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल की प्रगति रिपोर्ट देखने के बाद पैनल को 31 जुलाई तक का समय और दे दिया था, लेकिन कोर्ट ने रिपोर्ट के तथ्यों को सार्वजनिक करने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि कोर्ट का शुरुआती आदेश मध्यस्थता कार्यवाही को गोपनीय रखने का था। इसलिए तथ्यों को रिकॉर्ड पर दर्ज करना उचित नहीं होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इसमें एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़ा व तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था। इस फैसले को भगवान रामलाल विराजमान सहित हिंदू, मुस्लिम सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कोर्ट में ये अपीलें 2010 से लंबित हैं। गत आठ मार्च को कोर्ट ने विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने के लिए भेज दिया था और इसके लिए तीन सदस्यों का मध्यस्थता पैनल गठित किया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। जिसमें एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़ा एवं तीसरा हिस्सा सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था। इस फैसले को भगवान राम सहित हिन्दू मुस्लिम सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में ये अपीलें 2010 से लंबित हैं और कोर्ट के आदेश से फिलहाल अयोध्या में यथास्थिति कायम है।

सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें, तीन रिट पीटिशन और एक अन्य याचिका लंबित है। सुनवाई की शुरूआत मूल वाद संख्या 3 और 5 से होगी। मूल वाद संख्या तीन निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा है और मूल वाद संख्या पांच भगवान रामलला विराजमान का मुकदमा है। कोर्ट ने शुक्रवार को मामले में बहस करने वाले वकीलों और पक्षकारों से आग्रह किया था कि जिन साक्ष्यों और दलीलों यानी केस ला आदि को वे कोर्ट में पेश करने वाले हैं उसके बारे में पहले से बता दें ताकि कोर्ट स्टाफ उसे कोर्ट के सामने पेश करने के लिए तैयार रखे।

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