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अविवाहित लड़के लड़कियां इस सावन में करें सिर्फ ये छोटा सा काम, तय होगी अच्छी शादी

शिवलिंग की आराधना हमारे देश के अलावा विदेशों में भी की जाती है। यूनान में ‘फुल्लुस’ तथा रोम में ‘प्रयसस’ नाम से शिवाराधना होती है। यूनान, रोम तथा मिस्र आदि देशों में फाल्गुन माह में शिवपूजा वसंतोत्सव के रूप में होती है। यहां शिवलिंग के साथ बैल की पूजा के भी प्रमाण मिलते हैं। ‘फुल्लुस’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के फलेंश शब्द से हुई है। इसका अर्थ है फल प्रदान करने वाले देवता जो शीघ्र प्रसन्न होते हैं।

भगवान शिव की उपासना में ‘ओऽम नम: शिवाय’ मंत्र पंचाक्षर बीज मंत्र माना गया है। यही कारण है कि देश तथा विदेश में शंकर की पूजा युक्तिपूर्वक की जाती है। ‘ओम नम: शिवाय’ बीजमंत्र का जप शीघ्र फलदायी है। शिवलिंग को ‘ज्योतिर्लिंग’ भी कहा जाता है। हमारे देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो भगवान शिव के विशेष रूप में माने गए हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ, अम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर तथा धुष्मेश्वर शामिल हैं। ये सभी भारतवर्ष के उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम भागों में स्थित हैं।

विवाह में आ रही बाधा के लिए सोमवार के दिन युवक-युवती को शिवालय में स्नान कर, पीले वस्त्र धारण कर ध्यान करना चाहिए और इस श्लोक का कम से कम दो माह तक पाठ करना चाहिए। सोमवार को अखंड घी का दीपक जलाना खासा लाभ देता है।
वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नम: श्रेष्ठाय
नमो रुद्राय नम: नमो कालाय नम:
कलविकरणाय नम: बल विकरणाय नमो

शिव पूजा की आवश्यक बातें
शिव पूजा में दूर्वा, तुलसी-दल चढ़ाया जाता है। तुलसी की मंजरियों से पूजा अधिक श्रेष्ठ मानी गई है।

शंकर को बिल्व पत्र विशेष प्रिय है। कटा-फटा बिल्व पत्र पूजा योग्य नहीं होता। आक के फूल, धतूरे का फल भी शिवपूजा की विशेष सामग्री है किंतु सर्वश्रेष्ठ पुष्प है नीलकमल। बिल्व पत्र चढ़ाते समय बिल्व पत्र का चिकना भाग मूर्ति की ओर रहे, इस प्रकार चढ़ाया जाना चाहिए।

तुलसी और बिल्व पत्र सर्वदा शुद्ध माने जाते हैं। ये बासी नहीं होते। कुंद, तमाल, आंवला, कमल, पुष्प, अगस्त्य पुष्प आदि भी पहले दिन तोड़कर लाए हुए दूसरे दिन उपयोग में आते हैं।

भगवान शंकर की पूजा में तिल का प्रयोग नहीं होता और किसी भी चम्पा का पुष्प चढ़ाया जाता है। शिव की परिक्रमा में सम्पूर्ण परिक्रमा नहीं की जाती है। जिस तरफ से चढ़ा हुआ जल निकलता है, उस नाली का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। वहां से प्रदक्षिणा उल्टी की जाती है।

भगवान शंकर के पूजन समय करताल नहीं बजाया जाता। पूजा के समय पूर्व या उत्तर मुख बैठना चाहिए। यदि संभव हो तो आराधक को आराधना के समय सिले वस्त्र नहीं पहनने चाहिएं।

स्नानादि से शुद्ध होकर आसन भी शुद्ध ग्रहण करना चाहिए।

इसके अलावा भस्म, त्रिपुंड और रुद्राक्ष-माला शिव पूजन के लिए विशेष सामग्री है जो पूजक के शरीर पर होनी चाहिए।

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