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बेटे की लम्बी दीर्घायु के लिए किया जाता है “ललही छठ व्रत”…

भादो महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ मनाया जाता है। ललही छठ को वैसे तो कई नाम है लेकिन पूर्वी उत्तर भारत में इसे “ललही छठ” कहा जाता है।ललही छठ को हरछठ और हलषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही ललही छठ के दिन कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी की जयंती भी मनायी जाती है इसलिए ललही छठ को बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है।

ललही छठ पर करें ऐसे पूजा
इस व्रत में पूजा करने का भी खास विधान है। ललही छठ में पूजा दिन में नहीं बल्कि शाम को होती है। शाम को महिलाओं को चाहिए कि केवल महुआ के दातुन से दांत साफ करें। उसके स्नान कर पूजा के लिए बैठें। पूजा करने के लिए एक खास तरह की मिट्टी जिसे हरछठ मिट्टी कहा जाता है, उसकी वेदी बनायी जाती है। हरछठ मिट्टी की वेदी में पलाश, कुश और झरबेरी की एक-एक झाड़ियां लेकर बांध दें। उसके बाद कच्चे जनेऊ का सूत उसमें बांधते हैं। जनेऊ चढ़ाने के बाद फल या प्रसाद चढ़ा कर कथा सुनी जाती है।

ललही छठ का है बहुत महत्व
ललही छठ का उत्तर भारत के पूर्वी इलाके में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत को करती हैं उनके पुत्र दीर्घायु होते हैं। साथ ही पुत्र रत्न की कामना से भी ललही छठ का व्रत किया जाता है।

छठ से जुड़ी कथाएं
आज कुछ सौ साल पहले एक गांव में एक ग्वालिन रहती थी। ग्वालिन दूध-दही बेचकर अपना गुजारा करती थी। एक बार वह गर्भवती हुई और उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई। प्रसव पीड़ा के दौरान उसने सोचा कि पास के गांव में जाकर दूध-दही बेच आए जिससे कुछ आमदनी भी हो जाएगी और सामान खराब होने से भी बच जाएगा। इसलिए वह दूसरे गांव अपना सामान बेचने के लिए निकल गयी।

दूसरे गांव वह पहुंच भी नहीं सकी थी बीच में उसे तेज प्रसव पीड़ा हुई और वह एक पेड़ के नीचे जा बैठी। वहीं उसी पेड़ के नीचे उसने एक बालक को जन्म दिया। बालक को वहीं छोड़कर गांव में दूध-दही बेचने चली गयी। इधर बालक के पाएक किसान ही हल चला रहा था। उसके बैल भड़क गए और उन्होंने बालक को मार डाला। बालक की मौत से किसान बेहद दुखी हुआ लेकिन वह अपने हालत से लाचार था। तभी वह ग्वालिन भी आ पहुंची और अपने बालक की यह गति देखकर बहुत आहत हुई। उसने लगा कि उसके झूठ और पापों के कारण आज उसके बालक की इतनी दुर्गति हुई। इसलिए उसने प्रण किया कि आज के बाद वह कभी झूठ नहीं बोलेगी।

कुछ खास चीजें ही खाएं
ललही छठ का व्रत करने में कुछ खास नियमों का पालन करना आवश्यक है। ललही छठ के दिन ही बलराम जयंती भी मनायी जाती है इसलिए बलराम जी के अस्त्र हल से पैदा की गई किसी तरह के फल या सब्जी का सेवन नहीं करना होता है। इसलिए महिलाएं इस व्रत में पसही, तिन्नी का चावल या पचहर का चावल खा कर व्रत का पालन करती हैं। साथ ही गाय का दूध या दही का सेवन नहीं किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियां भैंस के दूध इस्तेमाल करती हैं।

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