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मुर्गीपालन में सहायक बनेगी बेकार पड़ी फ्रिज 

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) लखनऊ और केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (CARI) बरेली के बीच सहयोगात्मक कार्यक्रम के परिणामस्वरूप सैकड़ों आम के बागों में मुर्गीपालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

बागों मे मुर्गी पालन संभव

मलीहाबाद में ही नहीं राज्य के विभिन्न हिस्सों के किसान मुर्गीपालन के लिए अपने बागों का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं। कारी-देवेन्द्रा, कारी-श्यामा, कारी-अशील और कड़कनाथ जैसी गैर-पारंपरिक नवविकसित नस्लों के चुनाव के कारन बागों मे मुर्गी पालन संभव हो सका। ये नस्लें स्थानीय हैचरी में उपलब्ध नहीं हैं और देश के विभिन्न हिस्सों से अत्यधिक मांग के कारण बरेली में आईसीएआर संस्थान से अधिक चूजों की आपूर्ति नियमित रूप से होना संभव नहीं है।

मलीहाबाद के किसानों की इन नस्लों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक छोटी सामुदायिक हैचरी की स्थापना की गई। क्योंकि किसानों के पास अंडे देने और हैचरी बनाए रखने की कोई अनुभव नहीं था इसलिए उनका प्रदर्शन लगभग औसत दर्जे का था। CARI के निदेशक, डॉ मंडल के साथ विचार-विमर्श में कुछ “फार्मर फर्स्ट परियोजना” के अंतर्गत किसानों को बरेली स्थित संसथान में हैचरी सञ्चालन की कला और विज्ञान में अनुभव प्राप्त करने के लिए भेजने का निर्णय लिया गया।

हैचरी के रख-रखाव और चूजों के उत्पादन के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण देने के लिए तीन दिनों के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई जो आमतौर पर यह ट्रेनिंग 15 दिनों में पूरी होती है। इसका एक महत्वपूर्ण उद्देश्य किसानों को मलीहाबाद में की जा रही गलतियाँ से अवगत करना था। उन्होंने पूरे समर्पण के साथ प्रशिक्षण पूरा किया, जो सुबह जल्दी शुरू होकर शाम को 6 बजे तक चलता था। ख़ुशी और आत्मविश्वास से भरे प्रशिक्षु समझ चुके थे कि हैचिंग करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। उपयुक्त अंडे का चयन, स्वच्छता, नमी आदि का का महत्व समझाया गया। उन्हें चूजों के लिंग प्रभेद के लिए सेक्सिंग के लिए भी प्रशिक्षित किया गया । ये प्रशिक्षित “चिक सेक्सनर” इस कौशल के माध्यम से अतिरिक्त पैसा कमा सकते हैं।

नई नस्ल के चूजों की बढ़ती मांग के साथ छोटी हैचरी के साथ उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना मुश्किल है। आईवीआरआई के एक प्रसिद्ध पोल्ट्री विशेषज्ञ डॉ आरबी राय से चर्चा की गई, तो उन्होंने आईसीएआर-सीआईएसएच में एक कार्यशाला आयोजित करने का सुझाव दिया,जिसके माध्यम से पुराने अनुपयोगी फ्रिज को कम लागत वाली हैचरी में परिवर्तित किया जा सकता है। ये कम लगत की हैचरी निश्चित रूप से विशेष पोल्ट्री नस्लों के उत्पादित चूजों की संख्या में वृद्धि करने में सहायक होगी।

आयोजन से मलीहाबाद के किसान उत्साहित

CISH और CARI आम के बाग मुर्गी पालन के लिए आवश्यक नस्ल के चूजों के उत्पादन के लिए किसानों को इस तकनीक का विस्तार करने के लिए समझौता ज्ञापन करेंगे। संस्थान में सितंबर में एक दिवसीय प्रशिक्षण प्रस्तावित किया गया है, जिसमें एवियन इंस्टीट्यूट के डॉ त्यागी और उनकी टीम द्वारा पुराने फ्रिज को छोटी हैचरी में परिवर्तित करने काप्रयोगिक प्रदर्शन किया जायेगा। इस तरह के आयोजन से मलीहाबाद के किसान उत्साहित हैं। उसी दिन डॉ आर बी राय किसानों के साथ बागों में पोल्ट्री प्रबंधन में अद्यतन करने के लिए बातचीत करेंगे। यह अनोखी सफल बाग में मुर्गीपालन CARI और डॉ. राय का मार्गदर्शन के कारण सफल हो सका। संस्थान में चल रही “फार्मर फर्स्ट परियोजना” के अंतर्गत किसानों ने बाद चढ़ कर बाग लिया जिसके कारण आस पास के गाँव से किसान अनुभवी किसानो से ज्ञान एवं विशेष नस्लों के चूजे भी प्राप्त कर रहे हैं।

ICAR-CARI द्वारा प्राप्त की गई इन नस्लों के प्रमाणित पैतृक मुर्गे एवं मुर्गियां सामुदायिक किसानों को प्रदान किया गया है। पैतृक पक्षियों से प्राप्त अंडे के चूजे नस्लों की पैतृक विशेषताओं को सुनिश्चित करेगा। किसानों ने इन पैतृक पक्षियों द्वारा उत्पादित अंडे से चूजे व्यावसायिक हैचरी के माध्यम से हासिल करने की भीकोशिश की है। कई कारण से इन मूल्यवान अंडों में से केवल कुछ ही चूजे किसानो को मिल पाते थे। कमर्शियल हैचरी की दिलचस्पी इन नई नस्लों के चूजों में ज्यादा हिस्सेदारी की होती है क्योंकि इनकी बाजार कीमत ज्यादा है। कुछ किसान देसी ब्रूडर मुर्गी का उपयोग करके चूजों के उत्पादन में विशेषज्ञ बन गए हैं। लेकिन ये सभी प्रयास आवश्यकता के अनुरूप संख्या में चूजे उपलब्ध नहीं करा पा रहें है। इन परिस्थितियों में किसान फ्रिज से लेकर हैचरी रूपांतरण तक की कार्यशाला के लिए उत्साहित हैं। अबतक किसानों को चूजे निकालने का थोड़ा व्यवहारिक ज्ञान था परन्तु ICAR-CARI द्वारा संचालित हैचरी प्रबंधन पर बहुत ही विशिष्ट पेशेवर प्रशिक्षण द्वारा उनमें आत्मविश्वास एवं अनुभव हो चुका है।

सामुदायिक तौर पर अंडों का उत्पादन

तकनीक जानकारी के आदान-प्रदान एवं वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन के द्वारा ही किसान आम के बागों में मुर्गी पालन को टिकाऊ एवं लाभकारी बनाने में सफल होंगे। कबाड़ी के पास या घर में बेकार पड़े फ्रिज का इस्तेमाल कर घरेलू स्तर पर हैचरी बनाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है, जिससे सामुदायिक तौर पर अंडों का उत्पादन किया जा सकता है। इससे किसान अपने गांव में ही अच्छी नस्ल के चूजे उपलब्ध करा पाएंगे, साथ ही दूसरे गांव में चूजों की आवश्यकता की पूर्ति करने में सफल होंगे।

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