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Temple, Mosque और…राजनीति के शकुनि!

सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर Temple मामले को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया है। वो जनवरी में फैसला दे देगा ऐसा उसने कहीं नहीं कहा है। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय 3 महीने बाद उस बेंच का निर्णय करेगा जो मंदिर-मस्जिद मामले पर विचार करेगी कि ‘2.77 एकड़ जमीन पर मंदिर बनेगा या मस्जिद बनेगी या दोनों बनेगा?’ लेकिन इस मामले में कितने साल तक विचार किया जाएगा यह उसने नहीं बताया।

Temple का मुद्दा एक बार फिर..

एक तरफ जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर मामले को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया दूसरी तरफ मंदिर को मुद्दा बनाकर एक बार फिर से प्रदेश को जलाने की तैयारी की जा रही है। लेकिन प्रदेश की जागरूक जनता जान चुकी है कि मंदिर-मस्जिद को मुद्दा बनाकर राम-रहीम को हर बार लड़ाया नहीं जा सकता। इस मुद्दे पर सभी धर्मों के लोगों को खुद से विचार करना होगा ताकि नफरत के नासूर को उसके मूल से समाप्त किया जा सके। ऐसा क्या है कि जंग-ए-आज़ादी की मशाल एक साथ थामने वाले हांथ अब एक दूसरे का साथ छोड़ रहे हैं। क्यो न हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की बात करने वाले लोग मंदिर-मस्जिद मामले पर आम सहमति बनाकर एक निष्कर्ष पर पहुंचे और विश्वभर में सदुपदेश पेश करें।

यह सभी को पता है कि अयोध्या में जन्में भगवान श्रीराम हिंदुओं की आस्था का प्रतीक हैं। जब सिखों के नानक, ईसाई के यशु, मुस्लिम के अल्लाह और हिन्दुओं के राम आराध्य हैं तो राम-रहीम को लेकर झगड़ा कैसा। पक्षकारों को चाहिए कि समय रहते ही दो समुदायों के बीच लगातार बनती जा रही नफरत की खाई को पाटने की पहल करें। वरना हम ऐसे ही धर्म,समाज,मंदिर,मस्जिद और जाति के फेर में पड़कर बंटते रहेंगे और राजनीति के शकुनि राम-रहीम के बीच चित्तविभ्रम फैलाकर अपना हित साधते (महाभारत कराते) रहेंगे।

अनुपम चौहान
अनुपम चौहान

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