भारत आैर पाकिस्तान के इतिहास में 9 सितंबर बेहद महत्वपूर्ण है। इसी दिन 1960 में दोनों देशों के बीच सिंधु जल संधि हुर्इ थी। कहा जाता है कि इस जल संधि से पाकिस्तान को बड़ी राहत मिली थी।
पानी को लेकर बड़े स्तर पर विवाद : सिंधु जल संधि
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार 1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत और पाकिस्तान में देश के विभाजन के बाद सिंधु बेसिन के पानी को लेकर बड़े स्तर पर विवाद पैदा हुआ था। विभाजन के बाद सिंधु नदी का स्रोत भारत में था और पाकिस्तान इस बारे में चिंतित था क्योंकि भारत ने पाकिस्तान की तरफ की सिंधु बेसिन की सहायक नदियों पर नियंत्रण रखा था। खास बात तो यह है कि पाकिस्तान की अधिकांश आजीविका इस नदी पर निर्भर थी।
सिंधु जल संधि
वहीं भारत ने पाक की कूटनीतिक चाल देखते हुए नदी पर नियंत्रण रखने की धमकी दी थी। इस दौरान पाकिस्तान को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 19 सितंबर, 1960 को भारत आैर पाकिस्तान के बीच बीच सिंधु जल संधि हुर्इ। इसमें विश्व बैंक ने एक खास भूमिका निभार्इ थी। उसके नेतृत्व में ही भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षरित किए थे। विश्व बैंक ने ही दोनो देशों के बीच उत्तरी भारत में बहने वाली छह नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी के जल बटवारे को लेकर समझौता कराया था।
पानी पर भारत को पूरा हक
समझौते में सिंधु, झेलम और चिनाब पश्चिमी आैर सतलुज, ब्यास और रावी पूर्वी नदियां मुख्य रूप से शामिल हुर्इ थीं। ये भारत से पाकिस्तान जाती हैं। संधि के तहत पूर्वी नदियों के पानी पर भारत को पूरा हक दिया गया। वहीं पश्चिमी नदियों के पानी के बहाव को बिना किसी रुकावट के पाकिस्तान को देना था। इस जल संधि वाले समझौते के अनुसार भारत को पाक के नियंत्रण वाली नदियों का पानी पीने की अनुमति दी गई थी। एेसे में तटवर्ती इलाका होने के कारण पाकिस्तान को करीब 80 प्रतिशत नदियों का पानी मिला है।
पानी के लिए कोर्इ परेशानी नहीं
यह पानी की एक बड़ी मात्रा है। खास बात तो यह है कि इस समझौते के बाद 1965, 1971 और 1999 के युद्ध होने के बावजूद दोनों देश के बीच इस जल संधि को लेकर कोर्इ मतभेद सामने नहीं आया। पाक को पानी के लिए कोर्इ परेशानी नहीं उठानी पड़ी है। यही कारण है कि 1960 की सिंधु जल संधि को काफी प्रभावी माना जाता है।