महर्षि वेदव्यास महाभारत का आरम्भ प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक में नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। श्रीकृष्ण के नारायणस्वरूप के स्मरण के साथ ज्ञान की देवी सरस्वती से कर गणेश का स्मरण नही करते है। श्रीनारायण भगवान् श्रीकृष्ण, उनके नित्यसखा नरस्वरूप अर्जुन, की लीला प्रकट करने वाली भगवती सरस्वती और उसके वक्ता महर्षि वेदव्यासको नमस्कार कर जय का उल्लेख किया गया जो प्रमाणित करता है की सरस्वती ज्ञान की देवी है जिसका संबंध मन, मस्तिष्क ओर हृदय से जुड़ा माना गया है। सरस्वती के ज्ञान की देवी के रूप में अनेक प्रमाण है किन्तु सरस्वती नदी के रूप में नाद करती हुई प्रवाहित होने के प्रमाण नहीं मिलते है। शतपथ ब्राम्हण के खण्ड 2 पृष्ठ 1089 के अध्याय 7 (शतपथ 7/5/1/31-35) श्लोक में पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय लिखते है कि सरस्वती वाक अर्थात वाणी की देवी है मन ओर वाणी सरस्वती है तथा अध्याय 12 /9/1/14 श्लोक में सरस्वती को जिह्वा सरस्वती कहा है। निघंटु में वाणी के 57 नाम दिये है उनमें से एक सरस्वती भी है। अर्थात् सरस्वती का अर्थ वेदवाणी है। ब्राह्मण ग्रंथ वेद व्याख्या के प्राचीनतम ग्रंथ है। वहाँ सरस्वती के अनेक अर्थ बताए गए किन्तु किसी ने भी उनके जलरूप में प्रवाहित होने का उल्लेक्ष नही किया है। कुछ प्रामाणिक ग्रंथों में उल्लेख किया गया है कि सरस्वती हि गौः।। अर्थात् वाणी, रश्मि, पृथिवी, इन्द्रिय आदि। अमावस्या सरस्वती है। स्त्री, आदित्य आदि का नाम सरस्वती है। अथ यत् अक्ष्योः कृष्णं तत् सारस्वतम्।। आंखों का काला अंश सरस्वती का रूप है।
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भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से संस्कृत वाङ्मय में ज्ञान की देवी वेदस्वरूपा सरस्वती का उल्लेख एक पवित्र नदी के रूप में प्राप्त होता है, पर आज भी सरस्वती नदी की खोज नासा द्वारा लिये गये चित्रों से पुष्टि करने पर यह एक ऐतिहासिक घटना बनकर रह गयी है। सरस्वती ज्ञान की देवी के रूप में आर्यावत में प्रतिष्ठित है जिसे शने-शने विश्व भी मानने लगा है। दुनिया के अधिकांश नगरों का पूर्ण विकास नदियों के किनारे हुआ इस दृष्टि से सरस्वती के मूल मार्ग की खोज हमारे देश में की गई जहां वैदिक संस्कृति की अधिष्ठात्री सरस्वती के होने के प्रमाण नहीं पाये गए, जिन्होने प्रमाण की बात की वह अब तक प्रकट में प्रकाशित नही होने से संशय में है।
दुनिया के लोगों के समक्ष यह यक्ष प्रश्न है की जब सरस्वती ज्ञान की देवी है तब की स्थिति में वह जलरूप में प्रवाहित हुई तो क्या कारण है की वे विलुप्त हो गई? विलुप्त हुई सरस्वती नदी के मूलमार्ग की खोज के कुछ ज्ञात-अज्ञात साक्ष्य इतिहास में मिलते है पर वैदिक ग्रन्थ और पुराणों सहित वेदों में सरस्वती, गंगा, यमुना, कृष्ण आदि ऐतिहासिक शब्द आते हैं जहां सरस्वती कब किस युग में प्रवाहित थी ओर किस काल में वे विलुप्त हुई इसका उल्लेख कहीं देखने को नहीं मिलता है।
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ज्ञान-बुद्धि की देवी सरस्वती का जल रूप में होना रोमांचित करता है किन्तु इस धरा पर देवभूमि उत्तराखण्ड मे सरस्वती के नदी रूप में उद्गम ओर इस धरती को पावन करती अन्य नगरों की यात्रा करना एक खोज ही नही अपितु एक ऐतिहासिक घटना कहा जा सकता है। सरस्वती एक नदी नहीं है, अपितु हमारी संस्कृति ओर इतिहास का एक अमूल्य स्रोत भी है। यह शोध का विषय है की आखिरकार सरस्वती के मूल मार्ग की खोज कब ओर किसने की ओर कौन से नगर सरस्वती के तटों पर रहे है यह अब तक अनुत्तरित है।
वर्षों से प्रयागराज इलाहाबाद में गंगा यमुना ओर सरस्वती के पावन संगम पर आस्था की डुबकी लगाई जा रही है किन्तु वहाँ भी जल रूप में सरस्वती के दर्शन दुर्लभ है, ऋषि मुनि तपस्वी आदि तर्क देते है की सरस्वती यहा विलुप्त है, दिखाई नहीं देती किन्तु गंगा ओर यमुना में मिलती है। त्रिवेणी के इस संगम पर गंगा ओर यमुना के दर्शन तो संभव है किन्तु सरस्वी के दर्शन स्पर्श या उसमें स्नान का एक भी प्रमाण नहीं मिलता है, इसलिए सरस्वती नदी एक मिथक बनकर रह गई है। इस मिथक को तोड़ने का काम कई उपनिषद, वेद पुराण सहित वाल्मीकि रामायण ,तुलसीकृत रामायण, महाभारत करते है, किन्तु सरस्वती नदी के रूप में प्रवाहित रही हो इसका उल्लेख नही मिलता है।
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वेदों ओर उपनिषदों में अनेक स्थान पर सरस्वती, गंगा, यमुना, कृष्ण आदि ऐतिहासिक शब्द का प्रयोग हुआ हैं, आवश्यक नहीं की वे शब्द इन नदियों, वस्तुओं ओर व्यक्तियों के नाम है जो हमारे लिए आराध्य रहे हो, उन शब्दों का तात्विक अर्थ पृथक मिलते है जिसे मनुस्मृति में इस प्रकार लिखा गया है कि- सर्वेषां तु स नामानि कर्माणि च पृथक् पृथक्। वेद शब्देभ्यः एवादौ पृथक् संस्थाश्च निर्ममे।। तो यह प्रमाणित ही है कि सांसारिक वस्तुओं पहाड़ों, नदियों, देशों, मनुष्
वेदों में सरस्वती का उल्लेख धरती के किसी स्थान विशेष पर बहने वाली नदी के रूप में नहीं आया है। न ही वेद में सरस्वती से संबंधित किन्हीं व्यक्तियों का इतिहास है। सरस्वती का उल्लेख ऋग्वेद के सप्तम मण्डल के 95-96 सूक्तों में किया है वही अनेक मंत्र हैं जिनमें सरस्वती का उल्लेख है। लेकिन यह सरस्वती किसी देश में बहने वाली नदी नहीं है। जबकि वेदों के विपरीत महाभारत में सरस्वती नदी का 235 बार उल्लेख है और इसमें इसकी स्थिति को भी प्रदर्शित किया गया है। 3/83 के अनुसार कुरुक्षेत्र सरस्वती के दक्षिण में है और दृषद्वती के उत्तर में है। जिस प्रकार वेदों उपनिषदों सहित उपलब्ध महाभारत, पुरातन ग्रन्थों , नवीन पुराणों, विभिन्न रामायण आदि में सरस्वती को लेकर विरोधाभास नजर आता है वह अनुसंधान का विषय है बाबजूद भारतीय इतिहास ओर लोगों कि श्रद्धा ओर विश्वास में सरस्वती नदी के रूप में प्रतिष्ठित है।
सरस्वती नदी के होने के प्रमाण भी है ओर न होने कि पुष्टि में तर्कों का जाल बिछा हुआ है। प्रमाण के रूप में महर्षि वाल्मीक ने बाल्मीकि रामायण में भरत के ननिहाल से अयोध्या आने के प्रकरण में अन्य नदियों के साथ सरस्वती का उल्लेख किया है- सरस्वतीं च गच उग्मेन प्रतिपद्य च। तथा सरस्वती पुण्यवहा हृदिनी वनमालिनी। समुद्रगा महावेगा यमुना यत्र पाण्डवः।। (महाभारत 3/88/2) वही मनु स्मृति में मनु जी कहते है कि सरस्वतीदृष्द्वत्योर्देवनद्योर्
यहा प्रश्न उठता है कि क्या कारण था कि पुरातन कल में सरस्वती के अस्तित्त्व को प्राचीन संस्कृत साहित्य द्वारा प्रमाणित नहीं कर सका जो किया जा सकता था। ये तथ्यों को समक्ष रख कहा जा सकता है कि इस धरती पर सरस्वती नाम की नदी बहती थी। यह अलग बात है कि आज सरस्वती कि जलधारा का न तो काही नाद ही सुनाई देता है ओर न ही कल कल कलरव का आनंद के साक्षी बनने का गौरव से हम सब वंचित है। गंगा आदि नदियों कि तरह अगर सरस्वती भी होती तो वह भी तीरथों के रूप में अपनी पहचान बना चुकी होती, चूंकि सरस्वती विलुप्त होने से अनेक जिज्ञासाए ओर रहस्य अपने में लिए एक इतिहास बनकर रह गई वही उनका दूसरा रूप ज्ञान की देवी सरस्वती हम सबकी पूज्य बनी हुई है।