वक़्फ़ मुद्दे पर सरकार के जवाब में तर्क कम धमकी ज़्यादा है
लखनऊ। वक़्फ़ मुद्दे (Waqf issue) पर केंद्र सरकार (Central Government) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में तार्किक जवाब दाखिल नहीं कर पायी है। उसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट पर अपनी बहुमत का धौंस जताने, उसकी संवैधानिक हैसियत को नज़र अंदाज़ करने और अगले मुख्य न्यायाधीश आरएस गवई पर दबाव बनाने की रणनीति देखी जा सकती है। ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम (AICC Secretary Shahnawaz Alam) ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 192 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट से यह कहना कि वक़्फ़ क़ानून को चुनौती देना न्यायिक समीक्षा के मूल सिद्धांत के खिलाफ़ है, संविधान पर हमला है। क्योंकि संविधान सुप्रीम कोर्ट को संसद की किसी भी कार्यवाई की समीक्षा का सिर्फ़ अधिकार ही नहीं देता बल्कि उसे बहुमत के बल पर अपनी मर्ज़ी से संविधान को बदलने से भी रोकता है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार के तर्क को सही माना जाए तब तो भाजपा सरकार संविधान की प्रस्तावना में से सेकुलर और समाजवादी शब्द भी हटा सकती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा है कि प्रस्तावना में संसद भी बदलाव नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि भाजपा संविधान की प्रस्तावना में से इन दोनों शब्दों को हटाने के लिए राज्य सभा में दो बार प्राइवेट मेंबर बिल ला चुकी है और उसके नेता सुप्रीम कोर्ट में भी याचीका दायर कर चुके हैं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अगले मुख्य न्यायाधीश आरएस गवई के सामने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे, अल्पसंख्यक वर्गों को अपने शिक्षण संस्थानों को चलाने का अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 30, पूजा स्थल अधिनियम 1991, यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे आरएसएस के विभाजनकारी और सांप्रदायिक एजेंडे से जुड़े मुद्दे होंगे। नवम्बर तक के कार्यकाल में बीजेपी उनपर दबाव बनाकर अपने पक्ष में फैसले लेने की कोशिश करेगी। उनके सामने भी चुनौती होगी कि वे डीवायी चंद्रचूड़ और रंजन गोगोई की तरह सरकार के दवाव में आ जाएंगे या अपनी स्वायत्तता बचाए रख पाएंगे।
उन्होंने कहा कि जस्टिस गवई से जुड़ा यह तथ्य भी संज्ञान में रखा जाना चाहिए कि दलितों के आरक्षण के बटवारे के पक्ष में वो बोल चुके हैं जो आरएसएस और भाजपा का स्वतंत्र दलित राजनीति को कमज़ोर करने का एजेंडा रहा है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुस्लिम समाज दलितों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा उसके साथ खड़ा रहा है। इसलिए अगर आज अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने वाले अनुच्छेद 25 और 26 पर मनुवादी सरकार हमला करती है तो उन्हें भी खुलकर मुसलमानों के साथ खड़ा होना चाहिए।