सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि टूटे हुए रिश्ते, जो भावनात्मक रूप से परेशान करने वाले हो सकते हैं, अपने आप आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं बनते, जब तक इसके पीछे आपराधिक इरादा न हो। मामले में जस्टिस पंकज मित्तल और उज्जल भुइयां की बेंच ने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए यह टिप्पणी की। इस फैसले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी को धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराया था।
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क्या था पूरा मामला?
आरोपी कमरुद्दीन पर आईपीसी की धारा 417 (धोखाधड़ी), 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), और 376 (बलात्कार) के तहत आरोप लगाए गए थे। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया था। लेकिन राज्य सरकार की अपील पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपी को 5 साल की सजा सुनाई और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
एफआईआर के मुताबिक, मृतका की मां ने बताया कि उनकी 21 वर्षीय बेटी और आरोपी 8 साल से एक-दूसरे से प्यार करते थे। अगस्त 2007 में आरोपी ने शादी करने से मना कर दिया, जिसके बाद लड़की ने आत्महत्या कर ली।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया फैसला
जस्टिस मित्तल ने अपने 17-पन्नों के फैसले में लड़की के दो “डाइंग डिक्लेरेशन” (मृत्युपूर्व बयान) का विश्लेषण किया और पाया कि न तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध का आरोप था और न ही आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि, टूटे हुए रिश्ते भावनात्मक रूप से कष्टकारी हो सकते हैं, लेकिन यह अपने आप आपराधिक अपराध नहीं बनते।
अगर कोई पीड़ित आत्महत्या करता है, जो किसी प्रकार की क्रूरता के कारण हो सकता है, तो भी इसे आपराधिक अपराध मानने के लिए आरोपी की मंशा साबित करनी होगी। सिर्फ शादी से इनकार करना, भले ही रिश्ता लंबे समय तक रहा हो, आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं बनता। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि यह मामला एक टूटा हुआ रिश्ता है, न कि आपराधिक आचरण।