सुमित के काम का सातत्य उनका विकास और विशिष्टता : डॉ लीना मिश्र
लखनऊ। कला दीर्घा (Kala Diirgha) अंतर्राष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका एवं गुरुकुल कला वीथिका कानपुर (Gurukul Kala Vithika Kanpur) के तत्वाधान में आयोजित अलीगढ़ के युवा कलाकार सुमित कुमार (young artist Sumit Kumar) की मड़ई प्रदर्शनी का रविवार को गुरुकुल कला वीथिका (Gurukul Kala Vithika) में वरिष्ठ रंगकर्मी राधेश्याम दीक्षित ने दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन किया। उद्घाटन सत्र में सुमित कुमार के नवीनतम कामों पर आधारित पुस्तिका का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया।
प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए मुख्य अतिथि राधेश्याम दीक्षित ने कहा कि ये काम शब्दचित्र हैं। जो कुछ हम लोगों ने अपने बचपन और जीवन में जिया है और कमोवेश उसे भूल भी रहे थे, उसे चित्रों के माध्यम से सुमित कुमार ने जीवंत कर दिया है। एक पल को हम लोग अपने बचपन और उस दुनिया में खो गए, जहां से होते हुए हम लोग कला की दुनिया में आए थे।
प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर सुमित कुमार ने अंग वस्त्र और बाल वृक्ष देकर मुख्य अतिथि राधेश्याम दीक्षित, गुरुकुल के कुलगुरु आचार्य अभय द्विवेदी कलाचार्य एवं कलादीर्घा पत्रिका के संपादक डॉ अवधेश मिश्र, प्रदर्शनी की क्यूरेटर डॉ लीना मिश्र को सम्मानित किया और कहा कि मैंने अपने गुरु डॉ अवधेश मिश्र के सानिध्य में उनके कला के प्रति समर्पण, शिष्यों को आगे बढ़ाने की तत्परता और उनके स्वयं के कलाकार के रूप में तमाम विशिष्टताओं को आत्मसात किया है।
कानपुर के वरिष्ठ कलाकार डॉ हृदय गुप्ता ने कहा कि सुमित एक ऊर्जावान, मृदुभाषी कलाकार हैं और जो संवेदनशीलता उनके व्यक्तित्व में है, वही उनकी कला में दिखती है। प्रदर्शनी की समन्वयक डॉ अनीता वर्मा ने कहा कि मैंने विद्यार्थी जीवन से ही सुमित को देखा है। चित्रण, प्रदर्शन एवं समन्वयन सबमें सुमित की बराबर की रुचि और समर्पण है। यही इनको इनके समकालीनों से अलग करता है। प्रदर्शनी में रणधीर सिंह, दीपा पाठक, डॉ मिठाई लाल, अजय पाठक, अभिषेक पाठक, गोपाल खन्ना, नीतू साहू, प्रशांत, नेहा मिश्रा, अभिनय प्रकाश सिंह, अध्यात्म शिवम झा, राधेश्याम पांडे इत्यादि कानपुर नगर के अनेक कला प्रेमी उपस्थित थे।
आचार्य अभय द्विवेदी ने बताया कि यह प्रदर्शनी कला प्रेमियों के लिए अगले तीन दिनों तक खुली रहेगी। सुमित कुमार की प्रदर्शनी की विषयवस्तु और चिंतन पर बात करते हुए डॉ लीना मिश्र ने कहा कि सुमित कुमार का कला और अपने गुरु के प्रति समर्पण तथा कर्तव्यनिष्ठा इनको कम उम्र में बहुत आगे ले गई है। भारत की ग्रामीण संस्कृति में ख़ास-ओ-आम को आश्रय देती ‘मड़ई’, घास फूस से बनी और छायी गयी एक छत ही नहीं होती, बल्कि यह पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण कोना और भावनात्मक एवं सांस्कृतिक संरक्षा-सुरक्षा कवच होती है। ‘मड़ई’ न केवल ग्रामीण जीवन के पारम्परिक शिल्प का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों की कार्यकुशलता, संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का भी प्रतीक है। उन्होंने कहा कि चूँकि सुमित कुमार अलीगढ़ के एक गाँव से आते हैं और ग्रामीण जीवन का सबसे प्रमुख एवं आकर्षक पहलू उसका भौतिक रूप होता है, इसीलिये गाँवों के नदी-नाले, ऊँची-नीची और उपजाऊ-बंजर भूमि, खेत-खलिहान, गोरू-बछरू और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उनके जीवन से गहरा नाता रहा है।
कला दीर्घा एवं गुरुकुल कला वीथिका द्वारा आयोजित ‘हुलास’ अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी
गाँवों की अधिसंख्य जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न रहती है जो उनके जीवन का मुख्य आधार होता है। सुमित की कला और रचनात्मकता में जो ग्रामीण-जीवन परिलक्षित होता है, वह पुराना गाँव ही है जहाँ एक परिवार की शाखाओं और उपशाखाओं के रूप में एक-दूसरे से जुड़े घर-द्वार या सुकून की तलाश में गाँव से थोड़ा हटकर बना सुन्दर घर, इनारा, मंदिर, खलिहान, फूल-पत्तियों से सजा बगीचा और आसपास के खेतों की सुन्दरता यहाँ के जीवन को समृद्ध करती है। इससे सम्बन्धित सारी गतिविधियाँ एवं तीज-त्यौहार सब सुमित कुमार की कला में प्रकारान्तर से उपस्थित होते हैं।
सुमित का परिवार सनातनी रीति-रिवाजों से गहरे से जुड़ा हुआ है और वह उसी परिवेश में संस्कारित भी हैं, इसीलिए बार-बार, अनेक बार लौटकर भी सुमित न ऊब रहे हैं, न अपने कला प्रेमियों को उबा रहे हैं। वह दर्शकों के समक्ष हर बार नवाचार और बालमन के साथ उपस्थित हैं। कहा जा सकता है कि सुमित कुमार का समर्पण, कठिन परिश्रम और उनके गुरु डॉ अवधेश मिश्र के कुशल मार्गदर्शन का प्रतिफल है, जो वह कला जगत में अपने चित्रण-विषय, कथ्यात्मक-शैली, नवाचार और समृद्ध रंगों की संवेदनशील तानों के दक्षतापूर्ण व्यवहार के लिए वह ध्यातव्य हो गए हैं।