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Lucknow University: रीतिकालीन साहित्य को दरबारी कहकर सम्पूर्णता में नकार देना उचित नहीं: प्रो तिवारी

लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग (Hindi and Modern Indian Languages ​​Department) में गुरुवार को हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो कैलाश नारायण तिवारी (Delhi University professor Kailash Narayan Tiwari) ने ‘रीतिकालीन हिन्दी काव्य में शोध की सम्भावनाएं’ (Possibilities of Research in Hindi Poetry of  Ritikaalin) विषय पर अपना गम्भीर वक्तव्य दिया। श्री तिवारी ने कहा कि रीतिकालीन साहित्य को दरबारी कहकर सम्पूर्णता में नकार देना उचित नहीं यही। दरबारी होना कुछ साहित्यकारों की विवशता भी रही होगी।

प्रो कैलाश नारायण तिवारी ने रीतिकालीन साहित्य के कलात्मक वैशिष्ट्य का उल्लेख करते हुए उसमें सन्निहित सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के प्रति चिंता को रेखांकित करते हुए कहा कि रीतिकालीन चुनौतियां भक्तिकाल से कम नहीं हैं। उस समय मुगल के साथ ब्रितानी सरकार भी देश में प्रभाव जमाने लगी थी।

प्रो कैलाश नारायण तिवारी ने कहा कि रीतिकालीन आचार्य कवियों ने संस्कृत की लेखन परम्परा को लक्षणग्रंथ के माध्यम से अक्षुण्ण भी रखा और उसमें अनेक काव्यशास्त्रीय प्रतिमानों की अभिवृद्धि की। रीतिकाल पर शोध करने के नायक नायिका आयाम को छोड़कर आगे बढ़ना होगा।

इस अवसर पर प्रो तिवारी का स्वागत करते हुए प्रो पवन अग्रवाल, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग ने उनके चीन और पौलेन्ड में अध्ययापन कर्म और आलोचना कर्म पर प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।

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इस‌ अवसर पर प्रो रश्मि कुमार, प्रो.सूरज बहादुर थापा, प्रो रीता चौधरी, प्रो हेमांशु सेन, प्रो श्रुति, डॉ रविकांत, डॉ सेंथिल कुमार, डॉ आकांक्षा, डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह आदि शिक्षकों सहित शोध छात्रों ने सम्मिलित होकर आयोजन को सफल बनाया।

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