लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी एवम् आधुनिक यूरोपियन भाषा विभाग (Department of English and Modern European Languages) के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को एपी सेन सभागार में ‘गिरमिटिया वंशजों के अभिलेखों के डिजिटलीकरण’ (Digitization Records of Indentured Descendants) विषय पर आधारित कार्यशाला (Workshop) का उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ। इस कार्यशाला में 150 से अधिक प्रतिभागियों की उपस्थिति रही। कार्यशाला में विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों से शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विषय विशेषज्ञों की सक्रिय सहभागिता देखने को मिली। यह कार्यशाला 15 मई से 30 मई तक हाइब्रिड मोड में आयोजित की जा रही है।
इस अवसर पर अंग्रेज़ी एवम् आधुनिक यूरोपियन भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो ओंकार नाथ उपाध्याय ने कार्यशाला की संकल्पना प्रस्तुत करते हुए बताया कि किस प्रकार गिरमिटिया वंशज, श्रमिक बंधुआ मज़दूरों से विभिन्न देशों में प्रशासनिक पदों तक पहुँचे और भारतीय संस्कृति, मूल्यों व जीवनदृष्टि को बनाए रखा।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता डॉ शारदानंद हरिनंदन सिंह, जो स्वयं एक भारतीय गिरमिटिया वंशज हैं, ने जब गिरमिटिया इतिहास पर अपनी बात रखनी शुरू की, तो उनकी आँखें नम हो गईं। डच, अंग्रेज़ी, हिंदी, भोजपुरी आदि भाषाओं के उनके ज्ञान ने उन्हें श्रोताओं से गहरे स्तर पर जोड़ने में सक्षम बनाया। उन्होंने कार्यशाला के इस प्रयास को न केवल शोध की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल बताया, बल्कि इसे गिरमिटिया वंशजों के लिए भी अत्यंत उपयोगी करार दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो जीसी त्रिपाठी ने इस अभिनव कार्यशाला की सराहना करते हुए कहा कि अकादमिक जगत को भारतीय इतिहास के उपेक्षित पहलुओं की और अधिक गहराई से पड़ताल करनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि डॉ चंद्र प्रकाश ने बताया कि किस प्रकार वे एक व्यवसायी एवम् समाज सेवक से भारतीय गिरमिटिया इतिहास के शोधकर्ता बने। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए विस्तृत रूप से बताया की कैसे उन्होंने प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में गिरमिटिया वंशजों के साथ अनगिनत बार संवाद किये एवम् अपने अनुभव को ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक करार दिया।
विश्वविद्यालय की प्रति-कुलपति प्रो मनुका खन्ना ने संरक्षक एवं अध्यक्ष के रूप में मंच की गरिमा बढ़ाई और सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं प्रदान की। समारोह का संचालन डॉ परिधि किशोर ने किया। स्वागत भाषण प्रो निशि पाण्डेय ने दिया। कार्यक्रम का समापन प्रो नाज़नीन ख़ान द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।