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SC/ST Act : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस, 6 हफ्ते में मांगा जवाब

SC/ST Act में सशोधन के खिलाफ गुरुवार को भारत बंद रहा वहीं इस पर राजनीति भी तेज हो गई है। इस बीच यह मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस बार वकील पृथ्वी राज चौहान और प्रिया शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।

SC/ST Act : दलितों को सताने के मामले में

अपनी याचिका में दोनों पक्षों ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के आदेश को लागू किया जाए। एससी-एसटी संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून 2018 में नए प्रावधान 18 A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी। याचिका में नए कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।

शिकायत की प्रारंभिक जांच

20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दिए एक फैसले में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है।

इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था।

 संशोधन बिल संसद में पेश

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशव्यापी विरोध हुआ था। जिसके बाद सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया था और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था।

राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया। इस संशोधन कानून के जरिये एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई है जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है।

संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा यानी अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।

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