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देवताओं का वृक्ष कहा जाने वाला पदम फिर खिल उठा, गुलाबी और सफेद रंग के फूल बढ़ा रहे पहाड़ों की शोभा

देवभूमि उत्तराखण्ड में देवताओं के वृक्ष के रूप में पहचान रखने वाले पंया (पदम) फिर से खिलने लगा है. कभी ये पेड़ विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया था, लेकिन अब फिर से इसका खिलना हिमालय और वन्य जीव-जंतुओं के लिए शुभ माना जा रहा है.

मान्यता है कि ये नागराज का वृक्ष होता है रोजेशी वंश के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम प्रुन्नस सीरासोइडिस है. हिंदी में इसे पद्म या पदमख कहा जाता है. वहीं अंग्रेजी में इसे बर्ड चेरी के नाम से जाना जाता है.

मवेशी इसकी घास नहीं खाते, लेकिन जो खाते हैं उन मवेशियों के लिए ये पोष्टिक आहार है. देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ा ये बहुत ही धार्मिक वृक्ष है, जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगता है पुरातन काल से ही हमारे पूर्वजों ने पंया वृक्ष पर गहन शोध कर इसके लाभों को मानव जीवन के कल्याण के लिए प्रयोग में लिया है

कुदरत की ही देन रहती है जो पदम वृक्ष मधुमक्खियों की इस आवश्यकता की पूर्ति रता है और अपने फूलों को खिलाकर मधुमक्खियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. जिस कारण मधुमक्खियां पराग इकट्ठा कर पूरी सर्दियों का खाना तैयार कर लेती हैं.

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