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ऋतुओं को निगलने लगा प्रदूषण

झील की कोखों से जहां झांकते थे,धूप से सोना मढ़े भाप के छल्ले वहां अब मंडराता है घना नीला कुहरा…. ‘हेमंत का गीत गाते हुए अज्ञेय ने कभी इन्हीं पंक्तियों के साथ हेमंत ऋतु का स्वागत किया था, लेकिन अब कोहरा जैसा सौंदर्य इस समय शायद ही दिखता है। खूबसूरती ...

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