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आशुतोष बनें IAS तो बहू प्रज्ञा ने भी बढ़ाया मान

रायबरेली। निराला नगर में रहने वाले आशुतोष द्विवेदी ने आखिर IAS बनने का अपना सपना इस बार पूरा कर ही लिया। इस कामयाबी में पत्नी का सहयोग भी कम नहीं रहा।

आशुतोष के IAS में सिलेक्शन का सपना हुआ पूरा

आशुतोष द्विवेदी का सिविल सर्विस में सिलेक्शन वर्ष 2015 में ही हुआ था, उनकी रैंक 230 आई थी। इस आधार पर वह आईपीएस बन गए लेकिन उन्हें यह सिलेक्शन रास नहीं आया। वर्ष 2016 में आशुतोष फिर परीक्षा में बैठे लेकिन रैंक सुधारने के बजाय और खराब हो गए, उन्हें इंडियन रेवेन्यू सर्विस मैं मौका मिला।

जुनून के धनी आशुतोष ने 2017 की सिविल सर्विस परीक्षा में फिर बैठने का निर्णय लिया। इस बार धुआंधार तैयारी की। इस बार उनकी रैंक 70 आई और IAS में आखिर उनका सिलेक्शन हो ही गया।

पत्नी के सहयोग से मिला मुकाम

अपना सपना पूरा करने वाले आशुतोष बताते हैं कि वर्ष 2017 की IAS मेंस परीक्षा के 15 दिन पहले मैं बीमार पड़ गया। लाखों का पैकेज छोड़ कर गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने वाली इंजीनियर पत्नी प्रज्ञा द्विवेदी ने तैयारी में सहयोग किया। बीमारी के दौरान उसने सारे नोट्स पढ़-पढ़कर सुनाएं। इस तरह वह मेंस की परीक्षा निकालने में सफल रहे। वह यह भी बताते हैं कि वर्ष 2015 में IPS में सिलेक्शन के बाद शादी हुई आईएएस बनने के जुनून में हम दोनों कहीं घूमने तक नहीं गए। प्रज्ञा ने इसमें भी हमें भरपूर सहयोग दिया।

भाई की प्रेरणा काम आई

IAS आशुतोष द्विवेदी के बड़े भाई डॉक्टर संतोष कुमार द्विवेदी जगदीशपुर, अमेठी में वेटरनरी डॉक्टर है। उन्होंने भी IAS की परीक्षा वर्ष 2002 में दी लेकिन दुर्भाग्य से सफल नहीं रहे। बड़े भाई का सपना अधूरा रहने पर आशुतोष ने आईएएस बनने का लक्ष्य तय कर लिया।

आशुतोष बताते हैं कि यह संयोग ही था की 27 अप्रैल 2002 को बड़े भाई साहब का भी रिजल्ट आया था और 27 अप्रैल 2018 को ही हमारा भी रिजल्ट आया।

आशुतोष ने छोड़ी कई नौकरियां

एचबीटीआई कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले आशुतोष द्विवेदी ने गेल इंडिया लिमिटेड में सीनियर इंजीनियर एवं इसरो त्रिवेंद्रम में साइंटिस्ट की नौकरी की। Maruti लिमिटेड में भी थोड़े दिन वह जॉब में रहे।

बहू प्रज्ञा ने भी बढ़ाया मान

जिले की बहू प्रज्ञा ने देश के सामाजिक विज्ञानों के लिए सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुम्बई की प्रवेश परीक्षा में टॉप-20 स्थान हासिल किया है। इसके लिए देशभर से दो लाख से ज़्यादा अभ्यर्थी परीक्षा देते हैं।

राजीव गांधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल से

इलेक्ट्रानिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग से बीटेक करने के बाद प्रज्ञा ने कई साल विश्व की कुछ सर्वश्रेष्ठ मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनियों में लाखों के पैकेज पर नौकरी की लेकिन उन्हें हमेशा से समाजसेवा करने का मन था। प्रज्ञा का मन बहुत दिन तक कॉर्पोरेट चमक दमक में न लग सका। वह नौकरी छोड़ कर गरीब बच्चों के अध्यापन में लग गईं और वर्तमान में वह दिल्ली की झोपड़पट्टी के बच्चों को पढ़ाती हैं।

संस्था स्थापित कर जरूरतमंद लोगों की सेवा का सपना

प्रज्ञा का सपना हमेशा से अपनी संस्था स्थापित कर जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का रहा है। इस क्षेत्र में काम कर के उन्होंने महसूस किया कि अपने सपने को साकार करने के लिए एक समुचित पाठ्यक्रम करना सहायक होगा। फिर उन्होंने ठान लिया कि देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थान से ही यह करना है और पहले ही प्रयास में उन्होंने ये सफलता हासिल की।

प्रज्ञा की इस सफलता पर पिता श्यामनन्द सोनभद्र, माता रमा सोनभद्र के साथ-साथ रायबरेली के निराला नगर निवासी ससुर डॉ एम पी द्विवेदी एवं सास श्रीमती विमला द्विवेदी अत्यंत उत्साहित हैं। प्रज्ञा के ज्येष्ठ ,पशु चिकित्साधिकारी डॉ संतोष कुमार द्विवेदी ने बताया कि परिवार में शिक्षा को हमेशा से महत्व दिया गया है, चाहे वह बेटों की हो या बेटी की या बहू की।

 

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