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गणेश शंकर “विद्यार्थी” एक प्रखर पत्रकार एवं सुधारवादी नेता

गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर 1890 ईo को इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ। अतरसुइया में उनका ननिहाल था। पिता मुंशी जयनारायण उत्तर प्रदेश के हथगाँव फतेहपुर के निवासी थे। वे ग्वालियर रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे। माता गोमती देवी के साथ विद्यार्थी जी का बाल्यकाल बीता व शिक्षा-दीक्षा हुई।

हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी में संपादन सहयोग 

वर्ष 1907 में वो कानपुर से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चले गये और यहीं से पत्रकारिता की ओर उनका झुकाव हुआ। बाद में उन्हे यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल का सानिध्य मिला। विद्यार्थी उनके हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सहयोग देने लगे। करीब एक साल इलाहाबाद में रहने के बाद वो कानपुर आ गये और करेंसी आफिस में 30 रु0 मासिक की नौकरी करने लगे। उसके बाद उन्होंने पृथ्वीनाथ हाई स्कूल कानपुर में अध्यापन किया। इसी अवधि में सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) के लिए लेख लिखने लगे।

हिंदी साप्ताहिक “प्रताप”

विद्यार्थी जी 1911 में “सरस्वती” में पं0 महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए। बाद में वे “अभ्युदय” में सहायक संपादक बने,लेकिन दो ही महीने बाद 9 नवम्बर 1913 को कानपुर से उन्होने स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक “प्रताप” नाम से अखबार निकालाना शुरू कर दिया। इसी समय से ‘विद्यार्थी’ जी का राजनीतिक, सामाजिक और प्रौढ़ साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ।

25 मार्च 1931 ई0 को 

गणेश शंकर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर अपने अखबार “प्रताप” में लेख लिखने के संबंध में कई बार जेल भी गए। साप्ताहिक “प्रताप” के प्रकाशन के 7 वर्ष बाद 1920 ई0 में विद्यार्थी जी ने उसे दैनिक कर दिया और इसी के साथ “प्रभा” नाम की एक साहित्यिक तथा राजनीतिक मासिक पत्रिका भी निकलना शुरू कर दिया। बाद में उन्हे हिंदी साहित्य सम्मलेन के गोरखपुर अधिवेशन का सभापति बनाया गया। विद्यार्थी जी बड़े सुधारवादी किंतु साथ ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त थे। गणेश शंकर जी उच्च कोटि के प्रभावशाली वक्ता थे और स्वभाव के अत्यंत सरल, किंतु क्रोधी और हठी भी थे। दुर्भाग्यवश कानपुर के सांप्रदायिक दंगे में 25 मार्च 1931 ई0 को इनकी हत्या कर दी गयी। इसी के साथ भारतीय पत्रकारिता के उदयीमान स्तम्भ का दुर्भाग्यपूर्ण अंत हो गया।

प्रस्तुति-गिरीश अवस्थी

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