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विश्व धरोहर दिवस: ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है पूर्वोत्तर रेलवे

रेलवे म्यूजियम एवं गोरखपुर महाप्रबंधक कार्यालय के धरोहर कक्ष में संरक्षित किये गये अनेक धरोहर

विश्व भर में मूल्यवान सम्पत्ति और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और रक्षा हेतु लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता हैं। रेलवे ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी क्रम में पूर्वोत्तर रेलवे पर अनेकों धरोहर, रेलवे म्यूजियम एवं गोरखपुर महाप्रबंधक कार्यालय परिसर के धरोहर कक्ष में संरक्षित किये गये हैं।

दया शंकर चौधरी

पूर्वोत्तर रेलवे पर कई ऐतिहासिक इंजनों को भी धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। गोरखपुर रेल म्यूजियम मे रखा लार्ड लाॅरेन्स इंजन का निर्माण वर्ष 1874 में लंदन में हुआ जो रेलवे के इस क्षेत्र में चलने वाला पहला इंजन था। उस दौर में ‘द ग्रेट फेमाइन‘ के समय राहत समाग्रियों को पीड़ितों तक पहुँचाने के लिए इंजन को लंदन से समुद्री मार्ग से कोलकाता ले आया गया था। लार्ड लाॅरेन्स इंजन को देश की पहली रेल गाड़ी (जोकि बोरीबन्दर-थाणे के मध्य चलाई गई) के इंजन लार्ड फाॅकलैण्ड का ‘‘यंगर सिब्लिंग‘‘ यानि कि छोटा भाई कहा जाता है।

गोरखपुर स्टेशन परिसर में रखा इंजन वाई एल 5001 भी आने-जाने वाले यात्रियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, इस इंजन का निर्माण वर्ष 1952 से 1956 तक वाई एल वाष्प इंजन के नाम से हुआ था जो कि भारतवर्ष मे मीटर गेज की हल्की लाइन पर उपयोग हेतु बनाये गये, वाई एल 5001 इंजन प्रथम 10 निर्मित इंजनों में से एक था जो कि इंग्लैंड के मेसर्स राबर्ट स्टीफेंशन व हाॅथोर्न द्वारा निर्मित किया गया। इस लोको का उपयोग कम क्षमता की यात्री गाड़ियों एवं शंटिंग के लिए किया जाता था। पूर्वोत्तर रेलवे के धरोहर मंे शामिल महाप्रबंधक कार्यालय परिसर मे रखे इंजन टी0बी0-6 नैरोगेज वाष्प इंजन है, जिसका निर्माण मेसर्स डब्लू जी बैगनल स्टाफोर्ड, इंग्लैंड द्वारा किया गया था। इस इंजन को वर्ष 1940 में सेवा में लाया गया।

वर्ष 1875 में दलसिंहसराय से दरभंगा तक की एक 43 मील की रेल लाइन अकालग्रस्त क्षेत्र में बिछायी गई, जो पूर्वाेत्तर रेलवे के इतिहास में एक नींव का पत्थर बन गई। पूर्वाेत्तर रेलवे 14 अप्रैल, 1952 को उस समय अस्तित्व में आई जब अवध तिरहुत रेलवे, असम रेलवे और पुरानी बी.बी. एंड सी.आई. रेलवे के फतेहगढ़ जिले को एक प्रणाली में विलय कर दिया गया और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। इसकी सीमायें पश्चिम में आगरा के निकट अछनेरा से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल की सीमा-रेखा के निकट “लीडो” तक फैली थीं।

15 जनवरी, 1958 को इसे दो जोनों में विभाजित कर दिया गया (।) उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे व (।।) पूर्वाेत्तर रेलवे, जिसका मुख्यालय गोरखपुर में है व जिसमें पांच मण्डल- इज्जतनगर, लखनऊ, वाराणसी, समस्तीपुर एवं सोनपुर थे। 01 अक्टूबर, 2002 को पूर्वाेत्तर रेलवे के सोनपुर एवं समस्तीपुर मण्डलों का विलय, नव-सृजित पूर्व मध्य रेलवे में कर दिया गया जिसका मुख्यालय हाजीपुर में स्थित है।

वर्तमान में पूर्वाेत्तर रेलवे में तीन मण्डल हैं जिनके मुख्यालय वाराणसी, लखनऊ और इज्जतनगर में स्थित हैं। यह रेलवे यात्री प्रधान प्रणाली होने के कारण उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और पश्चिमी बिहार के लोगों को विश्वसनीय यातायात सेवा उपलब्ध कराती है और साथ ही इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है। यह रेलवे पड़ोसी देश नेपाल की यातायात आवश्यकताओं की भी पूर्ति करती है। पूर्वाेत्तर रेलवे प्रणाली उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और बिहार राज्यों से होती हुई पश्चिम से पूर्व की ओर जाती है। इस रेल प्रणाली का अधिकांश भाग गंगा नदी के उत्तर में स्थित है और गंगा के तट से गुजरती हुई नेपाल सीमा के अनेक स्थानों जैसे नेपालगंज रोड, बढ़नी, नौतनवा आदि को जोड़ती है। नेपाल से आरम्भ होने वाली विभिन्न नदियाँ जैसे शारदा, घाघरा, राप्ती, गंडक और उनकी विभिन्न उप-धाराएं इस रेलवे द्वारा सेवित क्षे़त्र से हो कर गुजरती हैं।

गंगा, गोमती, सरयू जैसी प्रमुख नदियां इस रेलवे प्रणाली को अनेक स्थानों पर काटती हुई जाती हैं। यह रेलवे विभिन्न नदियों पर बने अपने पुलों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें से कई महत्वपूर्ण पुल इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना तथा ऐतिहासिक धरोहर हैं। पूर्वाेत्तर रेलवे मुख्यतः एक यात्री प्रधान प्रणाली है जो पश्चिमी बिहार, उत्तर प्रदेश, और उत्तराखण्ड में स्थित विभिन्न ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों जैसे कि वाराणसी, सारनाथ, लखनऊ, प्रयागराज, कुशीनगर, गोरखपुर, लुम्बिनी, अयोध्या, मगहर, मथुरा, जिम कार्बेट एवं दुधवा राष्ट्रीय उद्यान आदि स्थलों को ‘कनेक्ट‘ करती है।

स्वर्णिम अतीत को संजोये हुए है पूर्वोत्तर रेलवे का गोरखपुर स्थित यांत्रिक कारखाना

इसकी औपचारिक स्थापना वर्ष 1903 में हुई थी:  पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर में स्थित यांत्रिक कारखाना की औपचारिक स्थापना वर्ष 1903 में हुई थी जिसे बंगाल एवं असम नाॅर्थ वेस्ट रेलवे लोकोमोटिव एवं कैरेज कारखाना का नाम दिया गया। पूर्वोत्तर रेलवे के संचलन के दृष्टि से यह कारखाना बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह कारखाना कुल 29.8 हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है इसमें से 12.6 हेक्टेयर क्षेत्रफल में विभिन्न वर्कशाॅप तथा कार्यालय स्थित हैं। इससे पहले यह कारखाना सोनपुर में था, जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आ जाने के कारण कई महीनों तक कारखाने का काम बंद हो जाया करता था, वर्ष 1898 के सर्वे के बाद सोनपुर से कारखाने को गोरखपुर स्थानांतरित करने का कार्य प्रारम्भ हुआ, जो लगभग 05 वर्षों के उपरान्त वर्ष 1903 में पूर्ण हुआ। इस कारखाने में बी.जी. (ब्राडगेज) यानों का सावधिकपुनर्कल्पन वर्ष 1984 में प्रारंभ कर दिया गया था तथा स्टीम लोको का सावधिक पुनर्कल्पन वर्ष 1994 में बंद कर दिया गया।

आजादी के बाद भारतीय रेलों का पुनर्गठन हुआ और बदले परिदृश्य में सवारी व माल डिब्बा तथा स्टीम लोको के मरम्मत तथा उत्पादन इकाई के रूप में गोरखपुर कारखाने का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया। तत्कालीन रेलवे प्रशासन द्वारा कारखाने के स्वर्णिम भविष्य का पूर्वानुमान लगाते हुए वर्ष 1952 में इसके आधुनिकीकरण तथा विकास का एक प्रारूप तैयार किया गया। गोरखपुर कारखाने का प्रारूप 50 वर्षों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया गया था। इस योजना के अन्तर्गत कई नये शाॅपों तथा उत्पादन इकाइयों का निर्माण हुआ। यह गर्व की बात है कि वर्ष 1970 में गोरखपुर कारखाने को सबसे पहले नेशनल सेफ्टी (एक्सीडेण्ट फ्री) अवार्ड मिला था, उसके बाद वर्ष 1973, 1977 तथा 1979 में भी यह अवार्ड गोरखपुर कारखाने को ही मिला। कारखाने के भविष्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1998-99 में लगभग 20 करोड़ का वर्कशाॅप प्रोग्राम कारखाने के विस्तार हेतु रेलवे बोर्ड को भेजा गया, इसके तहत कारखाने की ‘सावधिकपुनर्कल्पन’ की क्षमता 75 कोच प्रतिमाह से 125 कोच प्रतिमाह बढ़ाये जाने का प्रस्ताव भेजा गया। रेलवे बोर्ड ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी। धीरे-धीरे इस योजना के अन्तर्गत स्वीकृत राशि से नये निर्माण कार्य पूर्ण हुए। इसी क्रम में वर्ष 2001 में मीटर गेज का पुनर्कल्पन जनवरी मे बंद किया गया और साथ ही यांत्रिक कारखाना गोरखपुर बड़ी लाइन यानों के सर्वाधिक पुनर्कल्पन का कारखाना बन गया।

वर्ष 2003 में यांत्रिक कारखाना गोरखपुर ने अपना शताब्दी वर्ष पूर्ण किया। वर्तमान में यह कारखाना अपनी क्षमताओं में वृद्धि करता हुआ नई-नई मशीनों और संयंत्रों के प्रयोग द्वारा उत्कृष्ट कार्य करता हुआ नई ऊंचाइयों की ओर कदम बढ़ा रहा है। इस प्रकार 20वीं सदी के दौरान कारखाने ने अपनी विकास यात्रा के अनेक महत्वपूर्ण मंजिलों को सफलतापूर्वक पार किया और इस दौरान अपने उत्पादों को लगातार समायानुकूल परिवर्तित कर ओपन लाइन को महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया। वर्तमान में यांत्रिक कारखाने में एल.एच.बी. यानों एवं मेमू यानों का भी पुनर्कल्पन कार्य किया जा रहा है। यह कारखाना अपने स्वर्णिम अतीत को संजोये हुए है।

यात्रियों को स्टेशनों पर विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है भारतीय रेल: अश्विनी वैष्णव

लखनऊ। केन्द्रीय रेल, संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने खजुराहो-झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग/एक्सप्रेस वे के अपने दौरे के दौरान कहा कि भारतीय रेल अपने यात्रियों को रेलवे स्टेशनों पर विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। रेल मंत्री ने इस दौरान बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रधानमंत्री ग्राम योजना में किए गए कार्यों की समीक्षा की। श्री वैष्णव ने महाराजा छत्रसाल कन्वेंशन सेंटर के विकास परियोजनाओं का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेन्द्र कुमार सहित अन्य जनप्रतिनिधि भी उपस्थित थे। आपसी बातचीत के दौरान, रेल मंत्री ने खजुराहो से वंदे भारत एक्सप्रेस के संचलन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि छतरपुर और खजुराहो में दो रेक प्वाइंट अनुमोदित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी कहा कि अब 45,000 डाकघरों से रेल टिकट प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जल्द ही महत्वपूर्ण स्थानों पर आरओबी/आरयूबी का निर्माण किया जाएगा। उन्होंने रामायण एक्सप्रेस जैसी भारत गौरव रेलगाड़ियों के संचलन का भी उल्लेख किया, जिसका विद्युतीकरण अगस्त तक पूरा किया जाना है। उस समय तक वंदे भारत का संचलन भी आरंभ हो जाएगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्र का विकास करते हुए प्रधानमंत्री के विजन ‘सरकार लोगों की सेवा करने के लिए है‘ की भावना का पालन किया जाना चाहिए।

रेल मंत्री ने खजुराहो स्टेशन को विश्व स्तरीय स्टेशन बनाने के लिए उसके पुनर्विकास की भी जानकारी दी। श्री वैष्णव ने स्थानीय प्रशासन और रेलवे के साथ मिलकर किसानों को अपनी भूमि पर सोलर प्लांट लगाने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि उनकी आय में वृद्धि हो सके। यह प्रायोजित परियोजना बुंदेलखंड से आरंभ की जाएगी। शीघ्र ही भूमि की पहचान की जाएगी। किसान मोर्चा, रेलवे और जिला प्रशासन संयुक्त रूप से स्थान की पहचान करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि ‘एक स्टेशन एक उत्पाद योजना‘ का भी विस्तार किया जा रहा है जिससे कि स्टेशनों के माध्यम से स्थानीय स्तर के उत्पादों को बाजार में उपलब्ध कराया जा सके। इस योजना के तहत 1000 स्टेशनों को शामिल किया जाएगा, जिसमें छतरपुर स्टेशन भी होगा। उन्होंने कहा कि पन्ना के पास चूना पत्थर उद्योग महत्वपूर्ण हैं। पन्ना को रेलवे के साथ जोड़ा जाएगा।
इस अवसर पर उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक प्रमोद कुमार, पश्चिम मध्य रेलवे के महाप्रबंधक सुधीर कुमार गुप्ता, मंडल रेल प्रबंधक आशुतोष सहित जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और रेल प्रशासन एवं जिला प्रशासन के अधिकारी भी उपस्थित थे।

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