इसमें कोई शक नहीं है कि 30 जुलाई 2019 का दिन इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया। इस दिन तीन तलाक विधेयक को राज्य सभा ने अपनी मंजूरी दे दी। करीब 34 साल के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने देश की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिला दिया। असल में यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम है,जो मुस्लिम महिलाओं को आदिकाल से उनके पैरों में लगी बेड़ियों से आजादी दिलाएगा। तुष्टीकरण के चलते जो न्याय पिछली सरकारें शाहबानो जैसी महिलाओं को नहीं दे पायीं थीं वह चिरप्रतीक्षित न्याय वर्तमान भाजपा सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को दिलाया है।
यहां ये सवाल उठाना भी बेहद जरूरी है कि किस तरह से नारी की अस्मिता, आत्मनिर्भरता, स्वतंत्रता और सशक्तिकरण का दम भरने वाले राजनेता महज वोट की खातिर ही देश की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के पैरों में बंधी बेड़ियों को तोड़ने का साहस नहीं जुटा पाए। आजादी के बाद करीब चार दशक तक देश की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के शासन में शाहबानो नाम की एक मुस्लिम महिला की हिम्मत ने आज मुस्लिम समाज की करोड़ों महिलाओं को उनका असल हक़ दिलवाया। तब शाहबानो को उसके शौहर ने 3 बार ‘तलाक़’ ‘तलाक़’ ‘तलाक़’ कहते हुए घर से बाहर निकाल दिया था। शाहबानो अपने शौहर की इस हरकत पर उसे कोर्ट में घसीट ले गयी। उसका सवाल था कोई ऐसे कैसे तलाक़ दे देगा? खर्चा दो, गुज़ारा भत्ता दो! शाहबानो के शौहर ने शरीयत के नियमों का हवाला देते हुए सवाल का जवाब दिया….कैसा खर्च? शरीयत में जो लिखा है उस हिसाब से ये लो ₹100 मेहर की रकम के और चलती बनो। शौहर की ज्यादतियों से आहत शाहबानो ने हिम्मत नहीं हारी और मामला कोर्ट में चला गया। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया और अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के हक़ में फैसला सुनाते हुए उनके शौहर को अपनी बीवी को गुज़ारा भत्ता देने का फैसला सुनाया। सच कहा जाए तो माननीय न्यायालय का अपने आप में एक ऐतिहासिक था। क्योंकि भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने सीधे तौर पर इस्लामिक शरीयत के खिलाफ एक मज़लूम औरत के हक़ में फैसला सुनाया था। देखते ही देखते देशभर के इस्लामिक समुदाय में हड़कंप मच गया। क्योंकि इस फैसले के द्वारा भारत की न्याय व्यवस्था ने शरियत को चुनौती खुली चनौती दे डाली थी।
तब देश में कांग्रेस का राज था और स्व. राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे। वोट बैंक की खातिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी मुस्लिम नेताओं और कठमुल्लाओं के दबाव में आ गए और उन्होंने फटाफट अपने प्रचंड बहुमत के बल पर संविधान में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटवा दिया और एक कानून बना कर मुस्लिम औरतों को तब मिलने वाले न्याय को पलटते हुए मुस्लिम शरीयत में न्यायपालिका के हस्तक्षेप को रोक दिया। कांग्रेस की उस ग़लती का खामियाजा ना जाने अबतक कितनी शाहबानो को भुगतना पड़ा। अंततोगत्वा शरीयत कानून के नाम पर अबतक बेबस और लाचार मुस्लिम महिलाओं को उनका हक़ मिल गया,जो उनके अधिकारों और सम्मान की लड़ाई में मील का पत्थर साबित होगा।