चाइना में भारतीय राजदूत विक्रम मिस्री ने व्यापार घाटे को लेकर चिंता जाहीर की है. उन्होंने बोला कि भारत- चाइना के बीच चल रही यह समस्या जल्द राजनीतिक रूप ले सकती है. मिस्री हांगकांग में भारतीय दूतावास में छह माह पहले ही नियुक्त हुए हैं. उन्होंने मीडिया से वार्ता के दौरान बोला कि चाइना व अमरीका के बीच व्यापार युद्ध बहुत ज्यादा दिनों से चल रहा है. ऐसे में हिंदुस्तान चाइना की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है.कई प्रोजेक्ट पर मुहर लगनी बाकी
भारत चाहता है उसके कृषि उत्पादों का निर्यात चाइना में हो. चावल, मछली, खाना बनाने वाले तेल,तंबाकू की पत्तियां आदि के निर्यात के लिए कई तरह के समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं.मिस्री का बोलना है कि इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे प्रोजेक्ट पर मुहर लगना बाकी है. मगर यह व्यापार असलीयत में नहीं बदल सका है. उन्होंने बोला कि यह चाइना की सरकार के लिए चुनौती है कि वह व्यापार घाटे को कम करें. हिंदुस्तान से लंबे समय तक व्यापार करने के लिए चाइना को बेहतर कोशिश करने होंगे ताकि ये मामला पॉलिटिक्स रंग न ले ले.
हांगकांग के साथ घाटा बढ़ा
भारत के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि बीते वर्ष चाइना में व्यापार घाटा 10 बिलियन अमरीकी डॉलर घटकर 53.6 बिलियन अमरीकी डॉलर रह गया था, लेकिन हांगकांग के साथ घाटा बढ़कर 5 बिलियन अमरीकी डॉलर बढ़ गया था. दो वर्ष पहले चाइना व हिंदुस्तान डोकलाम में दो महीने के बॉर्डर स्टैंड में तनाव में थे, लेकिन तब से संबंधों को फिर से बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं.
क्या चाहता है भारत
भारत चाहता है कि है कि जिस तरह से चाइना ने हिंदुस्तान में आकर अपना व्यापार फैलाया है. वैसा ही हिंदुस्तान भी चाइना से अपेक्षा रखता है. दोनों के बीच में आयात निर्यात का अंतर बहुत ज्यादा ज्यादा है. एक तरफ चाइना हिंदुस्तान के पारंपरिक त्योहारों में भी सेंध लगा चुका है. वहीं हिंदुस्तान के कृषि उत्पाद भी चाइना में निर्यात नहीं किए जा रहे हैं.