बीजिंग। चीन की तीन दिवसीय यात्रा पर वहां पहुंचे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया अनिश्चितता की स्थिति का सामना कर रही है तब भारत-चीन संबंधों को स्थिरता का परिचायक होना चाहिए। रविवार को यहां पहुंचे जयशंकर ने चीनी उपराष्ट्रपति वांग क्विशान से झोंग्ननहाई से उनके आवासीय परिसर में मुलाकात की।
राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भरोसेमंद समझे जाने वाले वांग
विदेश मंत्री वांग यी के साथ बैठक के बाद एक प्रतिनिधिमंडल स्तर की बैठक की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भरोसेमंद समझे जाने वाले वांग के साथ मुलाकात के दौरान अपनी शुरुआती टिप्पणी में जयशंकर ने कहा, हम दो साल पहले अस्ताना में एक आम सहमति पर पहुंचे थे कि ऐसे समय में जब दुनिया में पहले से अधिक अनिश्चितता है, हमारे संबंध स्थिरता के परिचायक होने चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी के बीच हुई शिखर बैठक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, मैं, उस वुहान शिखर सम्मेलन के बाद यहां आ कर आज बहुत खुश हूं, जहां वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर हमारे नेताओं के बीच आम सहमति और व्यापक हुई थी।
जयशंकर ने कहा, ”चीन में पुन: आना बहुत खुशी की बात है और मैं अपने पिछले वर्षों को बड़े उत्साह के साथ याद करता हूं। मैं बहुत खुश हूं कि मेरे कार्यकाल की शुरुआत में ही मुझे यहां आने और हमारे दो नेताओं के बीच अनौपचारिक शिखर सम्मेलन की तैयारी करने का अवसर मिला, जिसे हम शीघ्र ही देखने की उम्मीद करते हैं।”जयशंकर का स्वागत करते हुए, उपराष्ट्रपति वांग ने कहा, ”मुझे यह भी पता है कि आप चीन में सबसे लंबे समय तक रहने वाले भारतीय राजदूत हैं और आपने हमारे दोनों देशों के संबंधों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को और आगे बढ़ाएगी। बाद में, जयशंकर और विदेश मंत्री वांग यी ने सांस्कृतिक और दोनों देशों के लोगों के आपसी संपर्क पर उच्च-स्तरीय तंत्र की दूसरी बैठक की सह-अध्यक्षता की। पहली बैठक पिछले साल नई दिल्ली में हुई थी।
जयशंकर की यात्रा के दौरान चार सहमति पत्रों (MOU) पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीनी नेतृत्व के साथ वार्ता के लिए तीन दिवसीय दौरे पर रविवार को बीजिंग पहुंचे। उनकी यात्रा के दौरान इस साल राष्ट्रपति शी के भारत दौरे की तैयारियों को अंतिम रूप देने सहित कई मुद्दों पर बातचीत होगी। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद जयशंकर चीन का दौरा करने वाले पहले भारतीय मंत्री हैं। यह दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब भारत ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करते हुए उसे दो केंद्रशासित क्षेत्रों में बांट दिया है। हालांकि उनका दौरा संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के भारत के फैसले से बहुत पहले तय हो चुका था। राजनयिक से विदेश मंत्री बने जयशंकर 2009 से 2013 तक चीन में भारत के राजदूत रहे थे। किसी भारतीय दूत का यह सबसे लंबा कार्यकाल था। वर्ष 2017 में डोकलाम में 73 दिनों तक दोनों देशों की सेनाओं के बीच रही गतिरोध की स्थिति के बाद मोदी और शी ने पिछले साल वुहान में पहली अनौपचारिक वार्ता कर द्विपक्षीय संबंधों को गति दी थी। अधिकारियों को इस साल पहली बार द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर पार करने की उम्मीद है।
चीनी अधिकारी अपने समकक्षों के साथ विशेष रूप से कृषि उत्पादों के अलावा फार्मास्यूटिकल्स और आईटी में भारत के निर्यात को बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं। भारत भी मोदी के ‘मेक इन इंडियाÓ अभियान में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश का आकांक्षी है। जयशंकर की यात्रा ऐसे समय में हुई जब कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत द्वारा कश्मीर को विशेष दर्जा खत्म करने के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने को लेकर चीन से समर्थन मांगने के लिए 9 अगस्त को बीजिंग की यात्रा की थी। भारत ने लगातार कहा है कि जम्मू-कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और यह देश का एकदम आंतरिक मामला है।