Breaking News

वैश्विक अध्ययन : छह प्रमुख ई-कॉमर्स और पार्सल डिलीवरी कंपनियां 66% लास्ट माइल करती हैं उत्सर्जन

लखनऊ। स्टैंड अर्थ रिसर्च ग्रुप द्वारा किए गए नए शोध, जिसे क्लीन मोबिलिटी कलेक्टिव द्वारा कराया गया है, के अनुसार छह सबसे बड़ी वैश्विक डिलीवरी और ई-कॉमर्स कंपनियां अकेले लगभग 4.5 मेगाटन सीओ-2 (कार्बन डाईऑक्साइड) का लास्ट माइल उत्सर्जन (पार्सल डिलीवरी में वितरण केंद्र से गंतव्य स्थल तक पहुंचने के आखिरी चरण के दौरान होने वाला उत्सर्जन) करती हैं. आने वाले वर्षों में इस आंकड़े में तेज वृद्धि की आशंका है.

वैश्विक अध्ययन : छह प्रमुख ई-कॉमर्स और पार्सल डिलीवरी कंपनियां 66% लास्ट माइल करती हैं उत्सर्जन

रिपोर्ट में समग्र उत्सर्जन करने वाली इन शीर्ष छह कंपनियों पर प्रकाश डाला गया है: यूपीएस, फेडेक्स, अमेजन लॉजिस्टिक्स, डीपीडी, ईकार्ट और डीएचएल ई-कॉमर्स सोल्यूशंस. ये कंपनियां शून्य-उत्सर्जन वितरण प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में बहुत पीछे हैं और इनमें पारदर्शिता की भी कमी है.

स्टैंड.अर्थ रिसर्च ग्रुप के प्रमुख लेखक ग्रेग हिग्स ने कहा, “हमने यूरोप, भारत और उत्तरी अमेरिका में 90 कूरियर कंपनियों पर शोध किया. उनमें कोई भी कंपनी अपने लास्ट माइल उत्सर्जन के बारे में खुल कर नहीं बोलती हैं.”

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि भारत और अन्य क्षेत्रों में होने वाला लास्ट माइल सीओ-2 उत्सर्जन ई-कॉमर्स डिलीवरी से होने वाले कुल उत्सर्जन का कम-से-कम आधा है. शोध में शामिल कुछ प्रमुख भारतीय कूरियर और लास्ट माइल डिलीवरी कंपनियां हैं: डेल्हीवरी, डीटीडीसी इंडिया, ब्लू डार्ट एक्सप्रेस, शैडोफैक्स, ईकॉम एक्सप्रेस.

रिपोर्ट में भारत से संबंधित अन्य विशिष्ट निष्कर्ष बताते हैं कि भारत का लास्ट माइल उत्सर्जन प्रति डिलीवरी (285g सीओ-2) है जो कि वैश्विक भारित औसत (204g सीओ-2) से काफी अधिक है. इसके अलावा, पांच भारतीय शहर – दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर और चेन्नई – फ्रांस और कनाडा जैसे देशों के कुल लास्ट माइल उत्सर्जन की तुलना में लास्ट माइल डिलीवरी से अधिक सीओ-2 उत्सर्जित करते हैं. भारत में ज्यादा उत्सर्जन संभवतः इस कारण हो सकता है क्योंकि अन्य क्षेत्रों की तुलना में भारतीय शहरों में भीड़-भाड़ ज्यादा है. ऐसे में भारत को अपने लास्ट माइल डिलीवरी के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल लिए महत्वाकांक्षी अंतरण (ट्रांजीशन) सुनिश्चित करने से लाभ होगा. इसका मतलब होगा भीड़-भाड़ वाले शहरों में स्वच्छ हवा, कार्बन उत्सर्जन में कमी और अस्थाई कामगारों के लिए बचत. ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों को अपने असर और भविष्य की विकास योजनाओं पर विचार करते हुए यह अंतरण लागू करना चाहिए.

क्लीन मोबिलिटी कलेक्टिव इंडिया कोऑर्डिनेटर सिद्धार्थ श्रीनिवास ने कहा, “लास्ट माइल उत्सर्जन से हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ भविष्य के शून्य-उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की हमारी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि उद्योग और व्यवसाय हमारी सरकारों के साथ मिलकर अपने उत्सर्जन के बारे में पूरी ईमानदारी दिखाएं और इसे कम करने के लिए उपयुक्त एवं समयबद्ध योजनाओं के लिए प्रतिबद्ध हों.”

इस क्षेत्र की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, क्लाइमेट ग्रुप के बिजनेस एक्शन्स इंडिया के प्रमुख अतुल मुदलियार ने कहा, “यह केवल ई-कॉमर्स या डिलीवरी क्षेत्र की समस्या नहीं है, यह विश्व स्तर पर सभी उद्योगों में व्याप्त है. ई-कॉमर्स में स्कोप 3 उत्सर्जन, जिसका अर्थ ठेके पर काम करने वाले लास्ट माइल डिलीवरी साझेदारों सहित विस्तारित आपूर्ति श्रृंखला से होने वाले उत्सर्जन से है, सीओ-2 उत्सर्जन का बड़ा कारण है और उद्योग-जगत को पारदर्शी लेखांकन और प्रकटीकरण में निवेश करना चाहिए.”

भारत में 2030 तक 350 अरब डॉलर का बाजार होगा जो इस समस्या से निपटने का रास्ता दिखा सकता है. साथ ही, केंद्र और कई राज्य सरकारों द्वारा घोषित और कार्यान्वित ढेर सारे नियामकों और पहल के साथ, भारत में इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का अग्रदूत बनने के लिए संदर्भ और अवसर मौजूद हैं.

About reporter

Check Also

75 गरीब बच्चों को पढ़ाने वाले सब इंस्पेक्टर रणजीत यादव छठवीं बार नई दिल्ली में होंगे सम्मानित

अयोध्या, (जय प्रकाश सिंह)। पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय अयोध्या (Inspector General of Police Office, Ayodhya) में ...