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सर्व पितृ अमावस्या विशेष: श्राद्ध व तर्पण करने से पूर्वज होतें हैं प्रसन्न, परिवार आती है सुख समृद्धि

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ अमावस्या है और इस बार यह शुभ तिथि 2 अक्टूबर दिन बुधवार को है। सर्वपितृ अमावस्या पर पितृपक्ष का समापन होता है और पितरों का श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण करके पितरों को विदा किया जाता है। लेकिन इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है, इसकी वजह से अगर आप किसी पवित्र नदी में स्नान तर्पण कर सकते हैं।

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सर्व पितृ अमावस्या विशेष: श्राद्ध व तर्पण करने से पूर्वज होतें हैं प्रसन्न, परिवार आती है सुख समृद्धि

2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या है और इसी दिन साल का अंतिम सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। सूर्य ग्रहण की शुरुआत 2 अक्टूबर की रात 9 बजकर 13 मिनट पर होगी और इसका समापन सुबह 3 बजकर 17 मिनट पर होगा। हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। साथ ही इस ग्रहण का कोई भी धार्मिक महत्व नहीं होगा और मंदिरों के पट भी बंद नहीं किए जाएंगे। साथ ही श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण पर इस ग्रहण का कोई भी असर नहीं पड़ने वाला है इसलिए आप जिस तरह सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करते हैं, वैसे ही सब कार्य करें।

सर्व पितृ अमावस्या विशेष: श्राद्ध व तर्पण करने से पूर्वज होतें हैं प्रसन्न, परिवार आती है सुख समृद्धि

सर्वपितृ अमावस्या पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि के बारे में पता नहीं हो या फिर पितृपक्ष के अन्य दिनों में श्राद्ध ना किया जा सका हो। सर्वपितृ अमावस्या को महालय विसर्जन या महालय समापन के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पितरों के नाम का श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व है, ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और सुख-शांति और समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती रहती है।

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वहीं इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए, मान्यता है कि अमावस्या के दिन पीपल में पितरों का वास होता है इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ के नी दीपक अवश्य जलाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों को तर्पण करने के लिए सुबह साढ़े 6 बजे से लेकर साढ़े 7 बजे तक का समय बहुत शुभ माना जाता है। वहीं आप पितरों का श्राद्ध 12 से लेकर 1 बजे तक के बीच में कर सकते हैं।

सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों को विदाई करते समय तर्पण करने का विशेष महत्व है। जिस तरह भोजन करने के बाद पानी की आवश्यकता होती है, उसी तरह पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण के लिए अक्सर लोग गया, ब्रह्मकपाल, हरिद्वार, प्रयागराज आदि जगहों पर जाते हैं लेकिन सूर्य ग्रहण होने की वजह से अगर आप इन पवित्र स्थलों पर नहीं जा पा रहे हैं तो अपने शहर या गांव की पवित्र नदी या सरोवर के पास भी आप तर्पण कर सकते हैं। अगर आप वहां जाने में भी असमर्थ हैं तो घर पर भी तर्पण विधि को संपन्न किया जा सकता है।अपनी सुविधानुसार किया जा सकता है।

घर पर इस विधि के साथ करें तर्पण

Sarva Pitru Amavasya Special: Performing Shraddha and Tarpan pleases the ancestors, brings happiness and prosperity to the family

सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों पर को तर्पण करने के लिए पीतल या स्टील की परात लेकर उसमें जल, थोड़े काले तिल और दूध भी डाल लें। परात और अन्य खाली बर्तन को अपने पास रख लें। इसके बाद दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्यम दूर्वा या कुश लेकर अंजलि बना लें यानी दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल को भर लें। अब अंजलि से भरा हुए जल को खाली बर्तन में डाल दें। खाली बर्तन में जल डालते समय पितरों के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें। इस तरह आप सर्वपितृ अमावस्या पर घर पर ही तर्पण कर सकते हैं।

सर्वपितृ अमावस्या के दिन घर आए किसी भी व्यक्ति व जानवर को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। गरीब व जरूरतमंद को इस दिन खाना खिलाना चाहिए और भूलकर भी किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पितर नाराज हो जाते हैं और पितृ दोष भी लगता है। इस दिन तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए और मसूर दाल, अलसी आदि चीजों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह

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