पर्वों का देश कहे जानेवाले भारत में छठ व्रत सूर्यदेव को समर्पित एक विशेष पर्व है। भारत के कई हिस्सों में खासकर उत्तरभारत में इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है। आदिकाल से मनाए जाने वाले छठ व्रत में भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा की जाती है और उनसे अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने का वर मांगा जाता है। अगर बात सूर्योपनिषद की करें तो इसमें सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन-पोषण सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है।
कब और कैसे शुरू हुई छठ व्रत की परंपरा-
लोक मान्यताओं के अनुसार हर वर्ष कार्तिक महिने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ व्रत की शुरुआत रामायण काल से हुई थी। कहा जाता है कि इस व्रत को त्रेतायुग में माता सीता ने तथा द्वापर युग में पांडव पत्नी द्रौपदी ने किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्यदेव थे। इसलिए भगवान राम जब लंका से रावण वध करके अयोध्या वापस लौटे तो अपने कुलदेवता का आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरु किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्यषष्ठी पकका पर्व मनाने लगे ।
अन्य एक मान्यता के अनुसार महाभारत का एक प्रमुख पात्र है कर्ण जिसे दुर्योधन ने अपना मित्र बनाकर अंग देश (भागलपुर) का राजा बना दिया था और अंग राज कर्ण के विषय में कथा है कि, वे पाण्डवों की माता कुंती और सूर्य देव की संतान हैं । कर्ण अपना आराध्य सूर्यदेव को मानता था, और वह सदा नियम पूर्वक कमर तक पानी में खड़ा होकर सूर्य देव की आराधना करता था और माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिन कर्ण सूर्य देव की विशेष पूजा किया करता था। अपने राजा की सूर्य भक्ति से प्रभावित होकर अंग देश के निवासी सूर्य देव की पूजा करने लगे। फिर धीरे-धीरे सूर्य पूजा का विस्तार पूरे बिहार और पूर्वांचल तक हो गया।
वैसे ही एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा प्रियव्रत थे उनकी पत्नी थी मालिनी। राजा रानी नि:संतान होने से बहुत दु:खी थे। उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई परंतु नौ महीने बाद जब उन्होंने बालक को जन्म दिया तो वह मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत इस से अत्यंत दु:खी हुए और आत्म हत्या करने हेतु तत्पर हुए। प्रियव्रत जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुईं। देवी ने कहा प्रियव्रत मैं षष्टी देवी हूं। मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं। अत: तुम मेरी पूजा करो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि को देवी षष्टी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई और उसी दिन से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य एक प्रत्यक्ष देवता हैं। वास्तव में इनकी रोशनी से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है। इनकी किरणों से धरती में फल, फूल, अनाज उत्पन्न होता है। सूर्य षष्टी या छठ व्रत इन्हीं भगवान सूर्य को समर्पित है। इस महापर्व में सूर्य नारायण के साथ देवी षष्टी की भी पूजा होती है। छठ पुजन कथानुसार छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं।
क्या है पूजा की संपूर्ण विधि-
इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है, दूसरे दिन खरना का कार्यक्रम होता है, तीसरे दिन भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन भक्त उदियमान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। छठ व्रत को लेकर मान्यता है कि यदि कोई निःसंतान इस व्रत को विधिपूर्वक करता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है तथा इस व्रत को करने वाले सभी प्राणीयों को समस्त प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।
इस त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हर्षोल्लास एवं नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार की यहां बड़ी मान्यता है। इस महापर्व में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं। व्रत चार दिनो का होता है पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा खाते हैं यानी शुद्ध आहार लेते हैं। इस दिन व्रत करने वाले स्त्री या पुरुष गंगा स्नान के बाद सेंधा नमक में पका दाल-चावल और कद्दू खाते हैं। व्रती इस दिन बस एक वक्त का खाना खाते हैं। पंचमी के दिन खरना होता है अर्थात इस दिन सभी व्रतधारी स्नान करके पूजा पाठ करके संध्या काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और बनाकर फल और मिष्ठान्न से छठी माता की पूजा करते हैं फिर इसी खीर को प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। इस दिन आस-पड़ोस के लोगों को भी बुलाया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है।
तत्पश्चात षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। पूजा के लिए खास तौर पर बांस की टोकरी में सूप तैयार की जाती है जिसमें गुड़ से बना ठेकुआ, ईख, फल, केले,दीए और चावल के लड्डू प्रमुख तौर पर शामिल किए जाते हैं और संध्या समय नदी, तालाब, सरोवर आदि के किनारे ले जाकर डूबते हुए सूर्य को पानी या दूध से अर्घ्य दिया जाता है तथा गीत गाए जाते हैं। फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत के दौरान रात भर जागरण किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं। अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है। कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने-अपने घर लौट आते हैं तथा व्रत करने वाले इस दिन पारण करते हैं।
क्यों करते हैं छठव्रत-
इस पर्व के विषय में मान्यता है कि षष्टी माता और सूर्य देव से इस दिन (छठ पूजा के दौरान) जो भी मांगा जाता है वह मनोकामना पूरी होती है। पौराणिक मान्यताओंन के अनुसार, षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ एवं दीघार्यु बनाती हैं। अतः संतान की रक्षा एवं दीर्घायु कामना हेतु छठव्रत का प्रचलन आरंभ हुआ। साथ ही भगवान सूर्य भी सभी पर उपकार करने वाले, अत्यंत दयालु माने जाते हैं। वे उपासक को आयु, आरोग्य, धन-धान्य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्य प्रदान करते हैं। वे सभी को चेतना देते हैं। सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्त और अंधे नहीं होते। सूर्य को ब्रह्म का ही तेज बताया गया है। सूर्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को देने वाले तथा पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं और यही कारण है कि लोग छठ व्रत के दौरान भगवान सूर्य की उपासना करते हैं और उनसे सर्वमनोकामनाओं को पूरा करने का वर प्राप्त करते हैं।
इस अवसर पर मनोकामना पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं। सूर्य को दंडवत प्रणाम करने का व्रत बहुत ही कठिन होता है, लोग अपने घर में कुल देवी या देवता को प्रणाम कर नदी तट तक दंड देते हुए जाते हैं। दंड प्रक्रिया के अनुसार पहले सीधे खडे होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से ज़मीन पर लेटकर दाहिने हाथ से ज़मीन पर एक रेखा खींची जाती है। यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार बार दुहरायी जाती है ।
ज्योतिष के अनुसार, अगर कुंडली में किसी ग्रह का दोष हो और छठ पूजा में सूर्य का पूजन किया जाए तो उसका निवारण होता है। साथ ही सूर्य को अर्घ्य देने से भाग्योदय की प्राप्ति होती है।
छठ के वैज्ञानिक महत्व-
छठ पूजा सिर्फ आस्था का ही प्रतीक नहीं है बल्कि इस व्रत के वैज्ञानिक पहलू भी हैं, जो इस पर्व के महत्व को और अधिक बढ़ा देते हैं। विज्ञान के अनुसार षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर होता है। इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने का सामर्थ्य छठव्रत के परंपरा में सम्माहित है। वैज्ञानिक रूप से देखें तो दीपावली के बाद सूर्य का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है, ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे। इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं। खास तौर से पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन।
छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है. इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है.छठ में दिए जाने वाले अर्घ्य का भी विशेष महत्व है। सुबह और शाम दोनों समय सूर्य विशेष रूप से प्रभावी होता हैं। अतः अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कमर तक पानी में डूबकर सूर्य की ओर देखना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इससे टॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है। पानी में खड़े होकर अघ्र्य दिया जाता है। इससे सूर्य की किरणों में 16 कलाएं होती हैं। जैसे- रिफ्लेक्शन, रिफ्रेक्शन, डेविस्मन, स्कैटरिंग, डिस्पर्शन, वाइब्रेशन इत्यादि। लोटे से आड़े तिरछे जल की धारा से सूर्य की किरणों परावर्तित होकर जितनी बार आंखों तक पहुंचती हैं, उससे स्नायुतंत्र जो शरीर को कंट्रोल करते हैं, सक्रिय हो जाता है और दिमाग की कार्य क्षमता बढ़ जाती है।
प्रकृति से है खास नाता-
यह पर्व स्वच्छता के साथ-साथ प्रकृति को संरक्षित करने का संदेश देता है। छठ पूजा के आयोजन से जुड़ी हरेक वस्तु कृषि, मिट्टी और किसान से संबंधित है। चूंकि छठपर्व पर नदियों, जलाशयों तथा पोखर और कुओं को साफ कर दिया जाता है। धरती से उपजी हुई फसल, फल तथा सब्जियों को ही इसमें प्रसाद बनाया जाता है। छठ में सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए जो भी वस्तुयें लाई जाती हैं, वे सभी एक किसान के घर में सहज ही उपलब्ध होनेवाली वस्तुएं होती हैं। जैसे, केला, मूली, नींबू, नारियल, अदरक, ईख, गेहूं के आटे से बना ठेकुआ, सबकुछ किसान खुद ही उपजाता है। मिट्टी से बने चूल्हे पर और मिट्टी के बर्तन में नहाय-खाय, खरना और पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। बांस से बने सूप में पूजन सामग्री रखकर अर्घ्य दिया जाता है। छठ में सूर्य की पूजा की जाती है, जो प्रकृति और जीवन का आधार है। इस पर्व में आदमी प्रकृति के काफी करीब पहुंच जाता है और उसमें देवत्व स्थापित करते हुए उसे सुरक्षित रखने की कोशिश करता है।
भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। इस साल छठ पर्व 31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक मनाया जाएगा और नहाय खाय के साथ ये व्रत आरंभ होगा। दिवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जानेवाले इस महाव्रत की सबसे कठिन और साधकों हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है, जिस कारण हिन्दुओं के इस परम पवित्र व्रत का नाम छठ (Chhath Puja) पड़ा। चार दिनों तक मनाया जानेवाला सूर्योपासना का यह अनुपम महापर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही धूमधाम और हर्सोल्लास से मनाया जाता है। इस महाव्रत के दौरान हर तरफ लोग भक्ति में सराबोर हो जाते हैं। हर ओर बस आपसी प्रेम, अपनापन, सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण छा जाता है।
जाति और धर्म का बंधन भी टूट जाता है। ऐसा लगता है मानो हर कोई इससे जुड़ गया हो। छठ जहां एक ओर लोक आस्था को मजबूती प्रदान करता है और हमारे सांस्कृतिक मूल्यों एवं संस्कारों को पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाने की कवायद करता है तो वहीं यह सामाजिक एकजुटता तथा सौहार्द का भी संदेश देता है।
छठ पूजा 2019 का पूरा विवरण
• 31 अक्टूबर 2019- नहाय-खाय
• 1 नवंबर 2019- खरना पूजा
• 2 नवंबर 2019- संध्या अर्घ्य
• 3 नवंबर 2019- प्रातः अर्घ्य
मुकेश सिंह