कोरोना महामारी, वैश्विक स्तर पर पिछले चार साल से अधिक समय से गंभीर स्वास्थ्य जोखिम बना हुआ है। दिसंबर 2019 में पहली बार नोवेल कोरोना वायरस के मामले चीन में सामने आए और समय के साथ ये दुनियाभर में फैल गया।
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वर्ल्डोमीटर के आंकड़ों के मुताबिक अब तक कोरोनावायरस 70.42 करोड़ से अधिक लोगों को अपना शिकार बना चुका है, इस वायरस के संक्रमण के कारण 70 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। टीकाकरण और हर्ड इम्युनिटी ने इस वायरस और इसके कारण होने वाली गंभीर समस्याओं के जोखिमों को तो कम कर दिया है, पर म्यूटेटेड वैरिएंट्स के कारण खतरा अब भी बना हुआ है।
कोरोना महामारी की शुरुआत से ये बड़ा सवाल रहा है कि आखिर कोरोना आया कैसे, कहीं ये मानव निर्मित तो नहीं है? इसी से संबंधित एक हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों की टीम ने बड़ा दावा किया है।
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अध्ययन की रिपोर्ट में शोधकर्ताओं की टीम ने कहा, कोविड-19 महामारी की उत्पत्ति प्राकृतिक से कहीं अधिक अप्राकृतिक जान पड़ती है। संभव है कि ये प्रयोगशाला से रिसाव के कारण फैला वायरस हो सकता है। वैज्ञानिकों के इस दावे ने कोरोना के उद्भव को लेकर एक बार फिर से चर्चा का बाजार गर्म कर दिया है।
एमजीएफटी टूल की ली गई मदद
कोरोना का प्रसार कैसे हुआ ये जानने के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने ग्रुनो-फिन्के टूल (एमजीएफटी) की मदद ली, जिसमें ये जानने की कोशिश की गई कि ये मूल रूप से फैली महामारी थी या फिर जैविक हमला जैसा कुछ।
एमजीएफटी उपकरणों का प्रयोग पहले भी वायरस के स्रोतों का पता लगाने के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने कई मापदंडों के आधार पर डेटा एकत्रित किया।
क्या कहते हैं अध्ययनकर्ता?
ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सार्वजनिक स्रोत से प्राप्त डेटा और केस हिस्ट्री के आधार पर आंकड़ों का अध्ययन किया। लेखकों ने अपने अध्ययन में लिखा, इस अध्ययन में पारंपरिक वायरोलॉजी, महामारी विज्ञान और चिकित्सा कारकों के साथ इसके डेटा एकत्रित किए गए। सार्स-सीओवी-2 की उत्पत्ति के बारे में बहस काफी हद तक चिकित्सा साक्ष्य पर केंद्रित है, जो अप्राकृतिक महामारी की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण है।