आधुनिक हिंदी काव्य में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले तथा युग चारण नाम से विख्यात कवि Dinkar हैं। उन्होंनेे स्वतंत्रता मिलने के बाद भी देश की बदहाली के लिए जिम्मेदार कांग्रेस पर वार करते हुए कहा था। स्वतंत्रता का उपभोग सत्ता में बैठे लोग कर रहे हैं। आमजन पहले जैसा ही पीड़ित हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए अपनी काव्य वाकपटुता का परिचय दिया है। जो कि नीचे दी गई है। रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म 23 सितम्बर 1908 ई0 को बिहार के तत्कालीन मुंगेर (अब बेगुसराय) जिला के सेमरिया घाट नामक गॉव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नामबाबू रवि सिंह और माता का नाम मनरुप देवी था।
- इनकी शिक्षा मोकामा घाट के स्कूल में हुई थी।
- जबकि उच्च शिक्षा पटना कॉलेज में हुई।
- जहॉ से उन्होने इतिहास विषय लेकर बी ए(आर्नस) किया था।
- दिनकर बाल्यकाल से ही मेधावी थे।
- इन्हें हिन्दी, संस्कृत, मैथिलि, बंगाली, उर्दू और इंगलिश सहित कई भाषा का ज्ञान था।
Dinkar, कई पदों पर किया कार्य
एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, बिहार सरकार के अधीन सब रजिस्टार, जन संपर्क विभाग के उप निदेशक, लंगट सिंह कॉलेज, मुज्जफरपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष, 1952 से 1963 तक राज्य सभा के सदस्य, 1963 में भागलपुर विश्वविद्यालय, 1965 में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार (मृत्युपर्यन्त) आदि जैसे विभिन्न पदों को सुशोभित किया एवं अपने प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया।
पद्मविभूषण से सम्मानित
साहित्य सेवाओं के लिए इन्हें डी लिट् की मानद उपाधि, विभिन्न संस्थाओं से इनकी पुस्तकों पर पुरस्कार। इन्हें 1959 में साहित्य आकादमी एवं पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। 1972 में काव्य संकलन उर्वशी के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
दिनकर के काव्य में परम्मपरा एवं आधुनिकता का मेल
राष्ट्रीयता दिनकर की काव्य चेतना के विकास की एक अपरिहार्य कड़ी है। उनका राष्ट्रीय कृतित्व इसलिए प्राणवान है कि वह भारतवर्ष की सामाजिक, संस्कृतिक और उनकी आशा अकांक्षाओं को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करने में सक्षम हैं। वे वर्तमान के वैताली ही नहीं रहे। बल्कि मृतक विश्व के चारण की भूमिका भी उन्हें निभानी पड़ी थी।
राष्ट्रीय आंदोलन का सुंदर निरूपण
राष्ट्रीय आन्दोलन का जितना सुन्दर निरुपण दिनकर के काव्य में उपलब्ध होता है, उतना अन्यत्र कहीं नहीं है? उन्होंने दक्षिणपंथी और उग्रपंथी दोनों धाराओं को आत्मसात करते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास ही काव्यवद्ध कर दिया है।
कांग्रेस का हुआ था मोहभंग
सन 1929 में 25 अक्टूबर को लॉर्ड इरविनने जब गोलमेज सम्मेलन की घोषणा की तो युवकों ने विरोध किया। तत्कालीन भारत मंत्री वेजवुड के द्वारा उक्त ब्यान को 1917 वाले वक्तव्य का पुर्नरावृति माना। 1929 में कांग्रेस का भी मोह भंग हो गया। तब दिनकर जी ने प्रेरित होकर कहा था-
टुकड़े दिखा-दिखा करते क्यों मृगपति का अपमान ।
ओ मद सत्ता के मतवालों बनों ना यूं नादान ।।
स्वतंत्रता मिलने के बाद भी कवि युगधर्म से जुड़ा रहा। उसने देखा कि स्वतंत्रता उस व्यक्ति के लिए नहीं आई है, जो शोषित है बल्कि उपभोग तो वे कर रहें हैं जो सत्ता के केन्द्र में हैं। आमजन पहले जैसा ही पीड़ित हैं, तो उन्होंने नेताओं पर कठोर व्यंग्य करते हुए राजनीतिक ढ़ांचे को ही आड़े हाथों लिया-
टोपी कहती है मैं थैली बनसकती हू ।
कुरता कहता है मुझेबोरिया ही कर लो।।
ईमान बचाकर कहता हैऑखे सबकी,
बिकने को हू तैयार खुशीसे जो दे दो ।।
राष्ट्रीयता के अनुरूप निभाया दायित्व
दिनकर जी ने राष्ट्रीय काव्य परंपरा के अनुरुप राष्ट्र और राष्ट्रवासियों को जागृत करने का अपना दायित्व सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। उन्होंने अपने पूर्ववर्तीराष्ट्रीय कवियों की राष्ट्रीय चेतना भारतेन्दु से लेकर अपने सामयिक कवियों तक आत्मसात की और उसे अपने व्यक्तित्व में रंग कर प्रस्तुत किया। किन्तु परम्परा के सार्थक निर्वाह के साथ-साथ उन्होने अपने आवाह्न को समसामयिक विचारधारा से जोडकर उसे सृजनात्मक बनाने का प्रयत्न भी किया है। उनकी एक विशेषता थी कि वे साम्राज्यवाद के साथ-साथ सामन्तवाद के भी विरोधी थे। पूंजीवादी शोषण के प्रति उनका दृष्टिकोण अन्त तक विद्रोही रहा। यही कारण है कि उनका आवाह्न आवेग धर्मी होते हुए भी शोषण के प्रति जनता को विद्रोह करने की प्रेरणा देता है। अतः वह आधुनिकता के धारातल का स्पर्श भी करता है।