पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि एक तरफ रामायण काल की घटनाओं को सहेजे खंड-काव्य ‘असुरवंश बनाम राजवंश’ तो दूसरी तरफ महाभारत काल के ‘नायाब नायक कर्ण’ के जीवन के अंतर्द्वंदों को सहेजे खंड-काव्य की रचना, वहीं जीवन की तमाम अनुभूतियों व संवेदनाओं को सहेजता काव्य संग्रह ‘अंतर्बोध’ एक कवि के रूप में राम बचन सिंह यादव की आध्यात्मिक व दार्शनिक प्रवृत्ति, सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव, इतिहास बोध का भरपूर ज्ञान और महापुरुषों से युवा पीढ़ी को जोड़ने का सत्साहस दिखाता है। परिस्थिति और ऐतिहासिक चेतना के द्वंद से उबरते हुए उन्होंने लोग-मंगल से जुड़कर युगीन सत्य को भेदकर मानवीयता को खोजने का प्रयत्न किया। श्री यादव ने कहा कि रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों ने ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी प्रवाहित कर भारतीय जनमानस को जागृत किया। इनमें जिन प्रगतिशील मूल्यों व समानता के भावों पर बल दिया है, उसे आज बार- बार उद्धृत करने की जरूरत है।
पोस्टमास्टर जनरल श्री यादव ने कहा कि सरकारी सेवाओं में रहते हुए भी साहित्य सृजन का कार्य व्यक्ति की दृष्टि को और भी व्यापक बनाता है। शिक्षा व्यक्ति में ज्ञान उत्पन्न करती है तो साहित्य संवेदना की संपोषक है। इसी कड़ी में राम बचन सिंह यादव न केवल एक शिक्षक एवं पथ प्रदर्शक के रूप में रहे, बल्कि साहित्य के विकास एवं उन्नयन में भी महती भूमिका निभाने को तैयार हैं।
आजमगढ़ से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि तमाम ऋषियों-मुनियों, क्रांतिकारियों व साहित्यकारों की पावन धरा रहे आजमगढ़ में साहित्य की समृद्ध परंपरा रही है। राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, आचार्य चंद्रबली, श्याम नारायण पांडेय, अल्लामा शिब्ली नोमानी, कैफी आजमी जैसे यहाँ के साहित्यकारों ने देश-दुनिया में ख्याति अर्जित की है। आज भी आजमगढ़ के तमाम साहित्यकार न सिर्फ उत्कृष्ट रच रहे हैं बल्कि समाज को एक नई राह दिखा रहे हैं।
चंद्रजीत सिंह यादव, उप शिक्षा निदेशक, मिर्जापुर मंडल ने कहा कि राम बचन सिंह यादव की कविताएं पाठक को खुद अपना अंतर्बोध कराती प्रतीत होती हैं। मानवीय मूल्यों के पतन और समाज की वर्तमान स्थिति को उन्होंने अपनी कविताओं में अक्षरक्ष: उतार दिया है। न्यूरोसर्जन डॉ. अनूप कुमार सिंह ने कहा कि अच्छी पुस्तकें जीवन के लिए टॉनिक का कार्य करती हैं। इनके अध्ययन-मनन से एकाकीपन, निराशा और अवसाद से भी बचा जा सकता है। युवाओं में पुस्तकें पढ़ने की आदत विकसित करनी होगी।
अपनी रचना प्रक्रिया पर राम बचन सिंह यादव ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और नायक कर्ण का व्यक्तित्व सदैव से प्रभावित करता रहा है, जिन्होंने तमाम संघर्षों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी जीवन में मूल्यों का साथ नहीं छोड़ा। इन पर खंड-काव्य लिखकर अपने को बेहद सौभाग्यशाली समझता हूँ। पिताजी के अंतिम दिनों की अवस्था देखकर भी मुझे जीवन का अंतर्बोध हुआ, जिसे काव्य संग्रह के रूप में परिणित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अभय प्रताप यादव, प्राचार्य, आर.के फार्मेसी, सठियांव, आजमगढ़ तो आभार ज्ञापन प्रेम प्रकाश यादव ने किया। इस अवसर पर प्रो. आरके यादव, सरोज, ऋषि मुनि राय, मिथिलेश तिवारी, घनश्याम यादव, संजय यादव, आलोक त्रिपाठी, सूर्य प्रकाश सहित तमाम साहित्यकार और गणमान्य जन उपस्थित रहे।