मुरादाबाद। बहुभाषाविद डॉ धर्मचंद जैन बतौर एक्सपर्ट बोले, पूरी भारतीय परम्परा में ही अहिंसा का सर्वोच्च स्थान है। महाभारत में कहा गया है, अहिंसा परमो धर्मः यानी अहिंसा परम धर्म है। धर्म को कई तरह से परिभाषित किया गया है। क्षमा भी धर्म है। मार्दव, आर्जव, तप, संयम आदि भी धर्म की कोटि में आते हैं। वास्तव में हमें यह नहीं पता होता कि धर्म क्या है? धर्म का बाहय रूप देखकर ही हम समझते हैं कि यही धर्म है।
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मंदिर में गए अभिषेक किया या पूजा की या भगवान को नमस्कार किया और यह धर्म हो गया। यह एक निमित्त है, जिससे आप उस धर्म की ओर आगे बढ़ सकते हैं, जो वास्तविक धर्म है। डॉ जैन तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद सेंटर फॉर आईकेएस की ओर से रोजमार्रा की जिंदगी में अहिंसावाद की प्रासंगिकता पर आयोजित एक्सपर्ट टॉक पर बतौर एक्सपर्ट बोल रहे थे।
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इससे पहले पूर्व टाक एक्सपर्ट डॉ धर्मचंद जैन ने ऑडी में मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके एक्सपर्ट टाक का शुभारम्भ किया। एक्सपर्ट टाक के मौके पर वीसी प्रो वीके जैन, सीसीएसआईटी के प्रिंसिपल प्रो आरके द्विवेदी, फैकल्टी ऑफ एजुकेशन की प्राचार्या प्रो रश्मि मेहरोत्रा, ज्वाइंट रजिस्ट्रार आरएंडडी डॉ ज्योति पुरी, डीन एग्रीकल्चर कॉलेज प्रो प्रवीन जैन आदि की गरिमामयी मौजूदगी रही। इससे पूर्व एक्सपर्ट वक्ता डॉ जैन समेत अतिथियों का बुके देकर स्वागत किया गया। संचालन कार्यक्रम की कन्वीनर एवम् ज्वाइंट रजिस्ट्रार डॉ अलका अग्रवाल ने किया।
बतौर एक्सपर्ट डॉ जैन बोले, धर्म का एक ही अर्थ होता है न कि छह अर्थ होते हैं। इनमें से एक अभाव है, हिंसा का अभाव अहिंसा कहलाता है। अल्पता का सूत्र भी कहलाता है। अहिंसा को तीन तरह से समझा जा सकता है। पहली पूर्ण अहिंसा इसका पालन वह करते हैं, जो जिन है। अरिहन्त हैं। पूरी तरह से मोह रहित हो गए हैं। इसीलिए पुरूषार्थ सिद्धि उपाय में कहा गया है कि किसी भी प्राणी का वध न करना ही अहिंसा है। कुछ लोग समझते हैं कि हिंसा को अपनाकर वे लोगों पर शासन कर सकते हैं। दूसरों को अपना गुलाम बना सकते हैं।
अपनी शाक्ति का प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन हिंसा का परिणाम अच्छा नहीं होता है। यह दूसरों को भी दुःख देती है और व्यक्ति स्वंय भी दुःखी होता है, इसीलिए हिंसा का त्याग कीजिए। उन्होंने पांच व्यक्तियों और जामुन के पेड़ की बड़ी ही रोचक कथा के माध्यम से बताया कि किस तरह से हम फल प्राप्त करने के लिए अहिंसक मार्ग का पालन कर सकते हैं।
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उन्होंने यह भी बताया की हत्या करना, मारना ही, सिर्फ हिंसा नहीं वाचन और भाविक हिंसा भी एक हिंसा का महत्वपूर्ण रूप है। जिसका हमें ख्याल रखना चाहिए इसलिए हमें अपने आपको मन वचन काय से शुद्ध सात्विक रखकर अच्छे विचारों के साथ जीवन में कर्म करना चाहिए। उन्होंने कहा, हिंसा चार प्रकार की है-संकल्पी, आरंभी, औद्योगिक और विरोधी हिंसा।