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रोहिणी व्रत: इस भगवान की होती है पूजा, मिलता है ऐसा फल…

रोहिणी व्रत धर्म के अनुयायियों द्वारा किया जाता हैं इस दिन व जैन धर्म को मानने वाले भगवान वासुपूज्य की पूजा करते हैं और 3, 5 या 7 सालों तक करने के बाद इसका उद्यापन किया जाता है। जैन समाज में रोहिणी व्रत का खास महत्व है। रोहिणी एक नक्षत्र है। कुल 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें रोहिणी नक्षत्र का विशेष स्थान है।

व्रत का महत्‍व-
रोहिणी व्रत जैन महिलाओं के लिए अधिक महत्व रखता है। जैन परिवारों की महिलाओं को इस व्रत का पालन करना अत्यावश्यक माना गया है। यह व्रत रोहिणी देवी से संबंध रखता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से देवी रोहिणी की पूजा की जाती है। वैसे पुरुष भी इस व्रत को रख सकते हैं। इस पूजा में जैन धर्म के लोग भगवान वासुपूज्य की आराधना करते हैं। महिलायें इस व्रत को अपने पति की लम्बी आयु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए करती हैं। इस व्रत को करने से घर परिवार में धन, धान्‍य, और सुखों में वृद्धि होती है।

व्रत का विधि-विधान-
रोहिणी व्रत के दिन महिलायें सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि निवृत्त होने के बाद पूजा करती है। भगवान वासुपूज्य की पंचरत्न से निर्मित प्रतिमा की स्‍थापना की जाती है। वासुपूज्य की आराधना में दो वस्‍त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का भोग लगाया जाता है। रोहिणी व्रत उदिया तिथि में रोहिणी नक्षत्र के दिन से प्रारंभ होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता है। इस दिन गरीबों को दान करने से भी पुण्य मिलता है।

रोहिणी व्रत कथा-
प्राचीनकाल में चंपापुरी नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्‍मीपति के साथ राजपाट करते थे, राजा-रानी के सात पुत्र और एक रोहिणी नाम की पुत्री थी। एक बार राजा ने एक ज्योतिषी से पूछा, कि मेरी पुत्री का वर कौन होगा? तो ज्योतिष ने बताया कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ उसका विवाह होगा। यह सुनकर राजा ने स्‍वयंवर का आयोजन किया, जिसमें रोहिणी ने राजकुमार अशोक का चयन किया और इस तरह से दोनों का विवाह संपन्‍न हुआ। एक बार हस्तिनापुर में चारण मुनि का आगमन हुआ। राजा अपने परिवार के साथ उनके दर्शन के लिए गया और प्रणाम करके धर्मोपदेश का श्रवण किया और उसके बाद पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्‍यों है? तब मुनि ने कहा, कि इसी नगर में वस्‍तुपाल नाम के राजा का राज था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। धनमित्र की एक दुर्गंधा नाम की कन्‍या थी जिसको लेकर उसके पिता को हमेशा चिंता रहती थी, कि इस कन्‍या से विवाह कौन करेगा। धनमित्र ने काफी सारा धन देकर उसका विवाह अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से कर दिया। इसके बावजूद ये विवाह ज्यादा समय चल नहीं पाया और कन्या की दुर्गंध से पीडि़त होकर उसका पति एक महीने बाद ही उसे छोड़कर कहीं चला गया।

इसी समय अमृतसेन नाम के ऋषि भ्रमण करते हुए नगर में आये, तो धनमित्र अपनी पुत्री के साथ उन्हें प्रणाम करने गया और अपनी बेटी के दुख की वजह को बताया और उसको दूर करने का उपाय पूछा। तब ऋषि ने राजा को बताया कि उसकी बेटी पूर्व जन्म में गिरनार पर्वत के नजदीक एक नगर में राजा भूपाल की सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा ने जंगल जाते वक्त रास्ते में एक मुनि को देखा तो रानी से उनके भोजन की व्यवस्था करने का बोलकर आगे चला गया। अपने आनंद में विघ्न होने की वजह से रानी को काफी गुस्सा आया और संत के भोजन में कड़वी तुम्‍बी को परोस दिया। मुनि को इस भोजन से काफी तकलीफ हुई और उन्‍होंने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने रानी का त्याग कर दिया।

ऋषि हत्या के पाप लगने की वजह से रानी के शरीर में कोढ़ हो गया और बड़ी तकलीफ और वेदना को भोगते हुए मरने के बाद रानी को नर्क की प्राप्ति हुई और फिर दुर्गंध युक्त कन्या के रूप में धनमित्र के घर पैदा हुई। तब धनमित्र ने पूछा कि किस व्रत और धार्मिक अनुष्ठान करने से इस पाप से मुक्ति मिल सकती है। तब ऋषि ने बताया कि सम्‍यग्दर्शन सहित रोहिणी कापालन करो, यानी हर महीने में रोहिणी नक्षत्र पर आहार त्‍याग कर श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान सहित सोलह प्रहर बिताएं। यानि सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय व्यतीत करें औरक्षमता के मुताबिक दान धर्म करें। इस प्रकार इस व्रत को पांच साल तक करने से इस तकलीफ से मुक्ति हो सकती है।

मुनि की सलाह मानकर दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और अंत में देहवसान के बाद प्रथम स्‍वर्ग में देवी बनी। इसके बादअगला जन्म लेने पर वह राजा अशोक की रानी बनी। तब अशोक ने अपने संबंध में पूछा, तो मुनि ने कहा कि पूर्व जन्म में भील होते हुए उसने एक मुनि पर घोर अत्याचार किया था। इसलिए मरने के बाद नरक मिला और उसके बाद अनेक कुयोनियों में भ्रमण करता हुआ एक वणिक के घर अत्‍यंत घृणित और कुरुप शरीर वाले पुत्र के रूप में जन्म लिया।

इसके बाद एक साधु के उपदेश पर उसने रोहिण व्रत किया जिसकी वजह से स्वर्ग प्राप्त करके राजा बन कर हस्तिनापुर में जन्म लिया। तब से मान्यता बनी जैसे राजा अशोक और रानी रोहिणी ने रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्‍वर्गादि सुख भोगकर मोक्ष प्राप्‍त किया उसी प्रकार जो भी श्रद्धासहित यह व्रत करेगा वे सभी उत्‍तम सुख को प्राप्त करेंगे।

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