लखनऊ। प्रतिष्ठित कारोबारी डीपी बुद्धराजा द्वारा करोड़ों की जमीन हड़पने के संबंध में 11 जून को लिखाई गई एफआईआर में गोसाईगंज थाने की अहमामऊ चौकी के इंचार्ज द्वारा मात्र 18 दिन में एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगाए जाने के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार से पूछा है कि फाइनल रिपोर्ट लगाने की इतनी जल्दी क्या थी? और क्या मामले की निष्पक्ष विवेचना हुई है? डीपी बुद्धराजा की याचिका पर न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी एवं न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अपर महाधिवक्ता वीके शाही को सरकार से जवाब लेकर 5 अगस्त को दाखिल करने को कहा है।
बताते चलें कि इस मामले में बुद्धराजा के प्रार्थना पत्र पर आईजी (कानून-व्यवस्था) प्रवीण कुमार ने लखनऊ पुलिस को 2 फरवरी को कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए थे। एसएसपी कलानिधि नैथानी ने इसकी जांच सीओ बीकेटी बीनू सिंह को सौंपी थी, करीब 4 महीने की लंबी जांच के बाद सीओ की रिपोर्ट के आधार पर 11 जून को गोसाईगंज थाने में एमआई बिल्डर्स के कादिर अली व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी लवी अग्रवाल उर्फ लवी कबीर एवं 4-5 अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस ने कई धाराओं के तहत रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन विवेचनाधिकारी अहमामऊ चौकी इंचार्ज वीके सिंह ने सीओ की जांच को धता बताते हुए मात्र 18 दिनों में ही न्यायालय में एफआर लगाते हुए रिपोर्ट भेज दी।
एफआईआर दर्ज होने के बाद इस मामले में पूर्व मंत्री सांसद एसपी सिंह बघेल ने भी एसएसपी से कार्यवाही के लिए कहा था तथा अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) पीवी रामाशासत्री ने एफआईआर दर्ज किए जाने में हुई देरी का जवाब मांगते हुए समयबद्ध ढंग से जांच किए जाने के लखनऊ पुलिस को निर्देश भी दिए थे। बुद्धराजा ने एसएसपी व एएसपी (ग्रामीण) विक्रांत वीर से मिलकर भी न्याय की गुहार लगाई थी। लखनऊ पुलिस के इसी रवैय्ये के चलते बुद्धराजा ने मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की हाईकोर्ट से अपील की है।
इस मामले का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री का करीबी नामजद आरोपी लवी अग्रवाल एफआईआर दर्ज होने की भनक लगते ही “गायब” हो गया। उसके मुंबई या विदेश होने की बात कही जा रही है फिर भी पुलिस ने एफआर रिपोर्ट न्यायालय में भेज दी।