संत कबीर दास जी ने एक दोहा लिखा है- ‘कस्तुरी कुंडल बसै,मृग ढूढ़ै वन माहि, ऐसे घट घट राम हैं,दुनिया देखे नाहि। ‘ इसका मतलब है कि जिस तरह से हिरन अपनी नाभि से आती कस्तूरी की खुशबू को सारे जंगल में खोजता है लेकिन खुद में नहीं झांकता , वैसे ही संसार भी भगवान को लेकर ऐसा ही करती है। ‘ ये दोहा आज के समय में भी बेहद प्रासंगिक है। लोग प्रेम व खुशियों की तलाश में पूरी संसार में भटकते हैं लेकिन कभी खुद में झांक कर नहीं देखते हैं। कई बार अनजाने में ही लोग खुद को कमतर आंकते हैं व खुद की खुशियों को कुर्बान कर देते हैं। ऐसे में हम दूसरों से ये उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वो हमें पसंद करें व हमारी तारीफ करें। ऐसे में खुद से प्यार करना बेहद महत्वपूर्ण होता है। आइए जानते हैं किस तरह सीख सकते हैं आप खुद से प्यार करनाभीड़भाड़ से दूर खुद के साथ समय बिताएं। एकांत में अपने जीवन, अपने प्रयत्न व किस तरह से आप ज़िंदगी को नई दिशा दे सकते हैं इस बारे में चिंतन करें। खुद पर विश्वास करें कि आप भगवान द्वारा बनाए गए खूबसूरत दुनिया की एक सुन्दर रचना हैं। जब आप खुद से प्रेम करना व खुद पर विश्वास करना सीख जाते हैं तो ब्रह्मांड की शक्तियां भी आपका साथ देती हैं।
जिस दिन आप खुद पर विश्वास करना व खुद से प्यार करना सीख लेते हैं उस दिन आपका भगवान पर विश्वास ज्यादा गहरा होता चला जाता है। इससे आपका आत्मविश्वास भी मजबूत होता है व मन में सकारात्मक ऊर्जा भर जाती है।
जिस दिन आपने खुद से प्यार करना सीख जाते हैं उस दिन आपके दिल में दया, करुणा व संवेदनशीलता की भावना जन्म लेती है। इसके बाद आप दूसरों के दुख में दुखी महसूस करते हैं व दूसरों के ज़िंदगी में खुशियां देखकर आपको भी ख़ुशी होती है। आपके मन से ईष्या जैसे निगेटिव भाव समाप्त हो जाते हैं।
खुद को अपनी सारी कमियों, अच्छाइयों के साथ जैसे हैं वैसा ही स्वीकार कर लें। ज़िंदगी के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएं। जो लोग आपके बारे में अच्छा नहीं सोचते हैं उनपर ध्यान न दें।