पहले एयरलाइंस पर गहराता आर्थिक संकट व फिर जेट एयरवेज की दुर्गति. पिछले कुछ सालों से भारतीय एयरलाइंस पर आर्थिक बोझ बढ़ता ही जा रहा है.इससे बचने के लिए एविएशन कंपनियां अपने खर्चे को कम कर रही हैं. एयरक्राफ्ट उड़ाने में आने वाले कुल खर्च में से 40 प्रतिशत केवल फ्यूल में खर्च होता है. यही वजह है कि ज्यादातर एविएशन कंपनियां मुनाफा कमाने या घाटा कम करने के लिए फ्यूल की खपत को कम करने की प्रयास कर रही हैं. पढ़िए ऐसे ही कुछ रोचक प्रयासों के बारे में, जो चर्चा में हैं-
1. टैक्सीबोट से प्रति फ्लाइट 213 लीटर फ्यूल बच रहा है
टैक्सीबोट एक सेमी रोबोटिक मशीन है. यह रोबोट 9.5 मीटर लंबा व 4.5 मीटर चौड़ा है. टैक्सीबोट चलाने वाली कंपनी केएसयू एविएशन के कम्युनिकेशन हेड (भारत) संजय बहादुर बताते हैं कि यह प्रति एयरक्राफ्ट 213 लीटर तक फ्यूल बचा रहे हैं. इसमें 400-400 हॉर्स क्षमता के दो इंजन लगे होते हैं. इंजन से इलेक्ट्रिक जनरेटर चलते हैं, जो एयरक्राफ्ट के सभी उपकरणों को बिजली सप्लाई देते हैं. इंजन बंद होने के बावजूद पायलट जैसे-जैसे कमांड देता है, उसी तरह विमान रनवे तक पहुंच जाता है.
दिल्ली में मौजूदा समय दो टैक्सी बोट प्रयोग हो रहे हैं. बेंगलुरु में भी टैक्सीबोट का प्रयोग प्रारम्भ होने वाला है.देश में टैक्सीबोट की आरंभ जेट व स्पाइसजेट ने की थी. मौजूदा समय में स्पाइसजेट इसका इस्तेमाल कर रहा है. एयर एशिया, इंडिगो व एयर इंडिया एक्सप्रेस कंपनियों के एयरक्राफ्ट ने ट्रायल सारे कर लिए हैं. वहीं एयर इंडिया , गो एयरवेज व विस्तारा ने ट्रायल के लिए डीजीसीए से अनुमति मांगी है.
2. छोटे विमानों में कम वजन की एयर होस्टेस रख रहे
एटीआर श्रेणी के यानी छोटे एयरक्राॅफ्ट में कम वजन की एयर होस्टेस तैनात की जा रही हैं,ताकि फ्यूल बचाया जा सके. एयरक्राॅफ्ट में जिनता कम वजन होगा, लैंडिंग व टेकऑफमें फ्यूल की खपत उतनी ही कम होती है. यही वजह है कि 40 से 70 सीटों वाले एयरक्राॅफ्ट में तैनात होने वाली एयर होस्टेज की लंबाई में भी छूट दी गई है. सामान्य रूप से एयरहोस्टेज की न्यूनतम लंबाई 155 सेमीहोनी चाहिए, लेकिन इन विमानों के लिए न्यूनतम लंबाई 155 सेमीरखी गई है. यही वजह है कि इसके लिए पूर्वोत्तर की युवतियों को प्राथमिता दी जाती है.गो एयर ने तो साल 2013 में ही क्रू मेंबर्स की नियुक्ति में सिर्फ स्त्रियों को लेने की बात कही थी.
3. ग्रीन इनीशिएट में अलावा फ्यूल भरना कम किया
आपात स्थिति को देखते हुए सामान्य तौर पर एयरक्राॅफ्ट आवश्यकता से 20 प्रतिशत तक अधिक फ्यूल भर कर उड़ान भरते हैं. लेकिन अब एयरक्राफ्ट उनता ही फ्यूल लेकर उड़ते हैं, जितने कि आवश्यकता हो. ग्रीन इनीशिएट के बारे में बताते हुए एयर इंडिया के प्रवक्ता धनंजय कुमार उदाहरण देते हैं कि एयर इंडिया की फ्लाइट दिल्ली से हैदराबाद पहुंचने पर टीम एटीसी से रिपोर्ट लेती है कि अगले डेढ़ घंटे तक (दिल्ली पहुंचने का समय) दिल्ली के रूट का मौसम कैसे रहेगा, हवा की कितनी स्पीड कितनी रहेगी, लैंडिग के समय मौसम कैसा रहेगा, मौसम कहां कहां बेकार मिल सकता है.
अगर सभी रिपोर्ट सामान्य मिलती है तो ही एयरक्राॅफ्ट दिल्ली वापस आएगा, वरना थोड़ा इंतजार कर लेता है. 777 विमान में फ्यूल कम होने पर 4 टन विमान का कुल वजन कम होता है. इसके अतिरिक्त उड़ान के दौरान एयरक्राफ्ट माइनस तापमान से गुजरता है, अगर फ्यूल टैंक में अधिक होगा तो बर्बाद भी ज्यादा होता है.
4. नियो एयरक्राफ्ट के प्रयोग से भी फ्यूल की बचत
नियो एयरक्राॅफ्ट से 15 प्रतिशत तक फ्यूल की बचत होती है. इसलिए कंपनियां धीरे-धीरे नियो इंजन वाले एयरक्राफ्ट को भी शामिल कर रही हैं. इंडिगो के प्रवक्ता के अनुसार कंपनी ने सभी एयरबसों पर नियो इंजन का प्रयोग प्रारम्भ किया है. विस्तारा भी इनका प्रयोग कर रही हैं. पिछले करीब दो वर्ष से देश में इसका प्रयोग प्रारम्भ हुआ है.
5. वजन कम करने के लिए हल्के कारपेट बिछवाए
एयर एशिया के पीआरओ रोहित ने बताया की हमने कॉकपिट में होने वाली कागज़ी कार्रवाई को पेपरलेस कर दिया गया है. कॉकपिट का सारा कार्य आईपैड से कर दिया है. इसके अतिरिक्त एयरक्राफ्ट में कारपेट या कालीन का वजन भी अधिक रहता था, इसलिए इसे बदलवा कर हल्के कारपेट बिछवाए गए हैं.