समूचे दुनिया के लिये चिंता का विषय है। मौसम विभाग के महानिदेशक के जे रमेश का बोलना है कि दक्षिण एशिया, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र, बारिश की मात्रा के लिहाज से ग्लोबल वार्मिंग से बहुत अधिक प्रभावित नहीं होगा। यह स्थिति हिंदुस्तान के लिये वरदान साबित हो सकती है बशर्ते जल प्रबंधन को दुरुस्त किया जाये। पेश हैं संसार की इस आसन्न चुनौती पर डॉ रमेश से ‘भाषा’ के पांच सवाल व उनके सवाल : जलवायु बदलाव व ग्लोबल वार्मिंग का हिंदुस्तान में क्या प्रभाव है?
जवाब : पिछली एक सदी में हुयी बारिश व दैनिक तापमान के केन्द्रीय जल आयोग को हाल ही में मौसम विभाग की ओर से मुहैया कराये गये आंकड़ों पर आधारित अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि हिंदुस्तान के औसत तापमान में छोटी बढ़ेातरी जरूर हुई, लेकिन बारिश अपने सामान्य स्तर पर बरकरार है। जलवायु बदलाव के संभावित असर के कारण बारिश के क्षेत्रीय वितरण में परिवर्तन आया है। मसलन, अधिक वर्षा वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में बारिश की मात्रा में छोटी कमी आयी तो राजस्थान जैसे सूखे इलाकों में बारिश की मात्रा अपेक्षाकृत बढ़ी है। राष्ट्रीय स्तर पर वर्षाजल की उपलब्धता यथावत है। हिंदुस्तान में जलवायु बदलाव की वजह से चक्रवाती तूफान, वज्रपात, अधिक बर्फबारी, भीषण गर्मी वकड़ाके की ठंड जैसी मौसमी गतिविधियां बढ़ी हैं।
सवाल : मौसम के बदलते मिजाज को देखते हुये क्या इसे हिंदुस्तान के लिये भविष्य की गंभीर चुनौती माना जाये?
जवाब : यह स्थिति हिंदुस्तान के लिये चुनौती भी है, मौका भी है व वरदान भी है। वैश्विक स्तर पर गठित जलवायु बदलाव संबंधी अंतर सरकारी समूह (आईपीसीसी) का अनुमान है कि दक्षिण एशिया, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप में अगले 50 वर्षों में कार्बन उत्सर्जन घटे या बढ़े, बारिश की मात्रा स्थिर रहेगी, इसमें कमी नहीं होगी। इसलिये हिंदुस्तान के लिये यह वरदान है व एक मौका भी है कि तत्काल असर से जल प्रबंधन को दुरुस्त कर पानी के उपयोग को नियंत्रित एवं संतुलित वितरण के दायरे में लाया जाये। ऐसा करना हिंदुस्तान के लिये सबसे बड़ी चुनौती भी है।