लखनऊ। आज बीएसएनवी पीजी काॅलेज लखनऊ के समाजशास्त्र विभाग द्वारा राष्ट्रीय जेंडर अभियान के अंतर्गत महिला सशक्तिकरण पर सेमिनार-हाॅल में एक व्याख्यान कराया गया। व्याख्यान देने हेतु अंग्रेजी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर शोभा बाजपेई को आमंत्रित किया गया।
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कार्यक्रम का संचालन समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार ने किया तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर सीएल बाजपेई ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए सर्वप्रथम मुख्य अतिथि और महाविद्यालय के प्राचार्य को बुके देकर सम्मानित किया गया।
समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार ने मुख्य अतिथि का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया, उसके बाद प्रोफ़ेसर शोभा बाजपेई को बोलने के लिए डायस पर आमंत्रित किया गया। प्रोफेसर शोभा बाजपेई ने जॉन स्टुअर्ट मिल, सिमोन डी बुवा, ज्या पाल सार्त्र, वर्जिनिया वूल्फ की पुस्तकों का जिक्र कर विस्तृत रूप से महिलाओं के सशक्तिकरण पर प्रकाश डाला।
प्रोफेसर शोभा बाजपेई ने पितृसत्तात्मक और मातृसत्तात्मक मुद्दों पर तथा महिलाओं के राजनीतिक, शैक्षिक तथा आर्थिक अधिकारों पर अपना प्रकाश डाला। स्टुअर्ट मिल का जिक्र करते हुए महिलाओं के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे पर प्रकाश डाला सिमोन डी बुवा की पुस्तक द सेकंड सेक्स (1949) का उद्धरण देते हुए महिलाओं के उत्पीड़न पर प्रकाश डाला और उन्होंने कहा कि आर्थिक स्वतंत्रता शिक्षा के बिना नहीं आ सकती।
प्रोफेसर शोभा बाजपेई ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज का समय सिस्टरहुड का समय है, जब सब का हाथ मिलेगा तभी समाज बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और बेटी को समृद्ध बनाओ, तभी एक सशक्त समाज बन सकता है। इसके बाद प्रोफेसर सविता सक्सेना, पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग ने कहा कि मुक्ति सबके लिए होनी चाहिए वह केवल स्त्री के लिए ही नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी होनी चाहिए, जिनसे हम आक्रान्त रहे हैं अब हम उनको आक्रांत करेंगे ऐसी सोच नहीं होनी चाहिए। प्रोफेसर सविता सक्सेना ने बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में भारतीय स्त्री आन्दोलन को पश्चिमी नारीवादी आंदोलन से भिन्न और यहां की विशेष राजनीतिक आर्थिक परिस्थितियों से संबंधित बताया।
अवध के किसान आन्दोलन में जग्गी जैसी स्त्रियों की नेतृत्वकारी भूमिका बताते हुए कहा कि वे क्रमशः वंचित स्त्री,दुखी किसान और गुलाम भारतीय के रुप में लड़ रही थीं। महारानी छिमनाबाई (बड़ौदा की महारानी) ने यूरोप से लौट कर स्त्रियों को लघु उद्योग धंधों से आत्मनिर्भर बनने हेतु किताब लिखी। ताराबाई शिंदे, चन्द्रावती लखनपाल, सुमति कुमारी, तपस्विनी पार्वती देवी, एक अज्ञात हिंदू औरत, महादेवी वर्मा इत्यादि के लेखन में स्त्री प्रश्नों के साथ देशोन्नति की चिन्ता थी। यही महिला सशक्तिकरण का सही और सार्थक चेहरा है।
हमें उन पुरुषों और स्त्रियों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जिनकी तपस्या के कारण हम आज यहां पहुंचे। रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानी स्त्रीर पत्र, शरत साहित्य का मूल मंत्र” सतीत्व ही नारीत्व नहीं है, संपूर्ण मनुष्यत्व इससे बढ़कर है”, प्रेमचंद की धनिया और मालती-क्रमशः उच्च कुलीन वधू, नर्तकी, किसान और शिक्षित महिला हैं पर यह सभी महिला सशक्तिकरण के विस्तृत उद्देश्य को चित्रित करते हैं।
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इसी क्रम में प्राचीन भारतीय इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ उमेश सिंह ने भी महिला सशक्तिकरण पर अपना पक्ष प्रस्तुत किया। महाविद्यालय के प्राचार्य ने महिला सशक्तिकरण पर अपना पक्ष प्रस्तुत किया। समाजशास्त्र विभाग के सदस्य प्रोफ़ेसर जयशंकर प्रसाद पांडेय ने भी अपना इस विषय पर विचार रखा।
कार्यक्रम में प्रोफेसर संजय मिश्रा, प्रोफेसर गुंजन पांडेय, प्रोफेसर वंदना, प्रोफेसर डी lके राय, डॉक्टर सीएम शर्मा, डा एम एल मौर्य, डॉ संजय शुक्ला तथा अन्य शिक्षकों ने व्याख्यान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर सीएल बाजपेई ने सेमिनार में आए हुए सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों को धन्यवाद दे कर कार्यक्रम का समापन किया।