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जाने मंदिर में शादी करना उचित हैं या नहीं…

बरेली के विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी मिश्रा ने प्रयागराज के राम जानकी मंदिर में अजितेश कुमार से विवाह कर ली अपनी विवाह के समर्थन में उन्होंने मंदिर के किसी कर्मकांड विशेषज्ञ की एक चिट्ठी पेश की इसे उन्होंने विवाह का प्रमाण लेटर कहा जब मुद्दा मीडिया में आई तो मंदिर के गद्दीनशीन महंत से पूछा गया इस पर महंत ने कह दिया कि उनके मंदिर में विवाह हुई ही नहीं है इसके बाद से एक सवाल उठने लगा था कि क्या मंदिर में विवाह होती है इस बारे में कानून क्या कहता है इसे समझने के लिए देश के कानून में हिंदू विधि है हिंदुओं की शादी-व्याह के मुद्दे इसी विधि के अनुसार निपटाए जाते हैं हिंदू शादी अधिनियम 1955 नाम के इस कानून की धारा 7 में शादी के लिए सिर्फ एक तथ्य को महत्वपूर्ण बताया गया है इसके मुताबिक सप्तपदी होनी चाहिए धारा 7 में शादी  तलाक के बारे बहुत विस्तार से लिखा गया है इसी के मुताबिक शादी को वैध  गैरकानूनी माना जाता है

उच्च न्यायालय के एडवोकेट विक्रांत पांडेय के मुताबिक “विवाह के वैध होने के लिए सप्तपदी होनी चाहिए ” सप्तपदी को  स्पष्ट किया जाए तो अग्नि जला कर उसके चारो ओर सात फेरे लेना महत्वपूर्ण हैं व्रिकांत पांडेय  साफ करते हैं कि सप्तपदी का प्रमाण पुरोहित की गवाही होती है पुरोहित जिसने विवाह कराई हो

फिर मंदिर में विवाह कराए जाने या न कराए जाने के सवाल पर इस कानून में कोई व्यवस्था नहीं है एडवोकेट विक्रांत के मुतबिक आज के दौर में जब कहीं भी किसी गेस्ट-हाउस से लेकर किसी पंडाल में विवाह कराई जा रही है तो वहीं वेदिका बना कर आग के सात फेरे कराए जाते हैं इसमें लोकल प्रचलित रीति-नीति के अनुसार छोटी फेरबदल होता है, लेकिन मूल सात फेरे ही होते हैं ये फेरे किसी भी जगह पर हो सकते हैं कोई चाहे तो मंदिर में भी कर सकता है

उन्होंने बोला कि अब मंदिर के संचालक  प्रबंधक उसे करने देते हैं या नहीं ये उनका विषय है, लेकिन कोई विवाह सिर्फ इस कारण गैरकानूनी या अमान्य नहीं हो सकती कि वो मंदिर में कराई गई है मंदिर के गद्दीनशीन मठाधीश की मीडिया में आई बात पर एडवोकेट विक्रांत का बोलना है कि “शादी कराने वाले पंडित की गवाही महत्वपूर्ण है मंदिर के मठाधीश की नहीं ” उनके मुताबिक ये सवाल बाद का है  अलग है कि उस मठाधीश के मंदिर में कोई दूसरा पुजारी या पुरोहित कैसे गया इसका विवाह से कोई मतलब नहीं है विवाह कराने वाला अगर ये प्रमाणित कर पाता है कि उसने विवाह कराई थी  सात फेरे लिए गए, तो विवाह वैध होगी अगर वो पुरोहित कहता है कि सात फेरे नहीं लिए गए तो विवाह शून्य  गैरकानूनीहोगी मतलब मान लिया जाएगा कि विवाह हुई ही नहीं

यहां ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि कुछ क्षेत्रों में लोग वर वधु को आगे पीछे करके अग्नि के फेरे लगाते हैं तो कुछ स्थानों पर उनके किसी कपड़े को लेकर उन्हीं से फेरे करा दिए जाते हैं दोनो स्थितियों में अपनी अपनी परंपरा के अनुसार सप्तपदी पूरी मानी जाती है लेकिन इसका मुख्य साक्षी पंडित या पुरोहित ही होता है

इससे अलग आर्यसमाज मंदिरों को शादी कराने  शादी का प्रमाण लेटर देने का विशेष अधिकार है इसे आर्य मंदिर वैलिडेशन एक्ट के तहत अधिकार दिए गए हैं ये अलग कानून है जो लोग लंबी हिंदू परंपराओं से बच कर विवाह  दूसरी रीतियां करना चाहते हैं वे इसके तहत भी करते है उन्हें आर्यसमाज मंदिर की ओर से प्रमाण लेटर भी दिए जाते हैं

फिलहाल साक्षी की विवाह में अब तक जो कुछ देखने सुनने को मिला है उसके अनुसार साक्षी  उसका पति चाहे जो भी गुहार लेकर उच्च न्यायालय गया हो दूसरे पक्ष की ओर से उसकी विवाह पर सवाल उठने की ज्यादा आसार है इस मुद्दे में उच्च न्यायालय का आने वाला फैसला भी इस तरह की शादियों के एक नजीर बन सकता है

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